ज्वारीय ऊर्जा क्या है?
समुन्द्र में उठने वाले ज्वार के कारण पानी में गति उत्पन्न हो जाती है जिससे समुन्द्र का पानी तेजी से किनारों के तरफ भागता है और जब ज्वार समाप्त हो जाता है तब पुनः दुबारा किनारों के तरफ गति करने लगता है। ज्वार के कारण पानी में उत्पन्न गति की वजह से गतिज उर्जा आ जाती है। समुन्द्र के जल में मौजूद इस उर्जा को ज्वारीय उर्जा कहते है जिसका उपयोग कर विधुत ऊर्जा उत्पन्न या अन्य दुसरे कार्य किया जा सकता है। ज्वारीय उर्जा को अंग्रेजी में टिडल एनर्जी कहा जाता है। यह उर्जा का एक नवीकरणीय श्रोत है।
ज्वार क्या होता है?
पृथ्वी के घूर्णन तथा सूर्य और चन्द्रमा के गुरत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी पर मौजूद समुन्द्र तथा महासागरों के पानी के स्तर में उतराव चढाव होता रहता है जिसे ज्वार कहते है। जब समुंद्री पानी उतरकर अपने निचले स्तर पर पहुचता है तब उसे निम्न ज्वार (Low Tides) कहते है इसके विपरीत जब पानी का स्तर अपने अधिक उचाई को प्राप्त करता है तब उसे उच्च ज्वार(High Tides) कहते है।
कार्य सिद्धांत - ज्वारीय उर्जा को विधुत उर्जा में परिवर्तित करना
ज्वारीय उर्जा को विधुत उर्जा में परिवर्तित करना ज्यादा जटिल कार्य नहीं है। यह बिलकुल जल विधुत संयंत्र की तरह ही कार्य करता है। जब समुन्द्र में ज्वार उत्पन्न होता है तब समुंद्री जल में निहित गतिज उर्जा को बांध द्वारा रोककर स्थितिज उर्जा में परिवर्तित कर लिया जाता है। जब ज्वार समाप्त हो जाता है तब बांध से होकर बहने वाली उच्च स्थितिज ऊर्जा वाले पानी की मदद से टरबाइन को चलाया जाता है जो एक विधुत जनित्र से जुडा हुआ होता है। इस प्रकार से यह विधुत जनित्र विधुत उर्जा उत्पन्न करता है।
भारत में ज्वारीय ऊर्जा का भविष्य क्या है ?
दिसंबर 2014 में क्रिसिल रिस्क एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सॉल्यूशंस लिमिटेड के सहयोग से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चेन्नई द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में ज्वारीय बिजली की कुल क्षमता क्षमता लगभग 12,455 मेगावाट होने का अनुमान है। कम या मध्यम ज्वारीय ऊर्जा वाले संभावित क्षेत्र खंभात की खाड़ी, गुजरात में कच्छ की खाड़ी ,दक्षिणी भारत में तमिलनाडु तथा पश्चिम बंगाल में हुगली नदी, दक्षिण हल्दिया और सुंदरबन में हैं। ज्वारीय ऊर्जा अभी भी अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) चरण में है और इसे भारत में व्यावसायिक स्तर पर लागू नहीं किया गया है। हाल ही में गुजरात सरकार ने 25 करोड़ के लागत से 50 मेगा वाट का ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के ऐलान किया है जो कछ में स्थापित होगा। यह इंडिया का पहला तिडल एनर्जी प्लांट होगा। पुरे विश्व में साउथ कोरिया में सबसे बड़ा टिडल प्लांट स्थापित किया गया है जिसकी क्षमता 254 मेगावाट है।
ज्वारीय ऊर्जा की सीमाए क्या है ?
यह एक उर्जा का स्वच्छ रूप है लेकिन इसकी भी कुछ सीमाए है जो निम्न है :
- यह उसी जगह पर उच्च दक्षता से कार्य करता है जहा पर उच्च ज्वार 5 मीटर या इससे ज्यादा हो।
- इससे निरन्तर सामान परिमाण के ऊर्जा का उत्पादन नहीं किया जा सकता है।
- इसमें ऐसे टरबाइन की जरुरत पड़ती है जो आसानी से कम स्तर वाले ज्वार पर भी कार्य कर सके।
ज्वारीय उर्जा के लाभ तथा हानि क्या है?
ज्वारीय उर्जा के निम्न लाभ एवं हानि है :
लाभ
- यह उर्जा का स्वच्छ रूप है।
- यह नवीकरणीय श्रोत है।
- इससे किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं उत्पन्न होता है।
- इससे ऊर्जा उत्पादन पुरे वर्ष किया जा सकता है।
- इससे उर्जा उत्पादन मानसून पर निर्भर नहीं करता है।
हानि
- इससे ज्यादा मात्रा में विधुत उर्जा का उत्पादन नहीं किया जा सकता है।
- इसके निर्माण का प्रारंभिक लागत बहुत ज्यादा होता है।
- इसका निर्माण पृथ्वी के सभी भागो में नही किया जा सकता है।
- इससे समुंद्री जनजीवन प्रभावित होता है।
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