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मेसनरी पियर्स : परिभाषा , प्रकार तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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Masonary Piers क्या है ? बिल्डिंग स्ट्रक्चर मे मजबूती और सहारा देने के लिए पत्थर या ईंटो की चिनाई से बने मजबूत स्तंभो को Masonry Piers कहते है। ये भारी भार उठाने मे सक्षम होते है और अक्सर मेहराब, बीम, लिनटेल या छत को सपोर्ट करते है।ये आम तौर पर ईंट, पत्थर या कंक्रीट ब्लॉको से बने होते है जो मजबूत मोर्टार से जुड़े होते है।सनरी पियर्स विभिन्न आकार के होते है लेकिन आम तौर पर आयताकार, वर्गाकार या गोलाकार आकार मे देखने को मिलते हैं। उनके निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री और तकनीक भिन्न हो सकती है लेकिन आम तौर पर वे ठोस चिनाई से बने होते है जिसमे पत्थर या ईंट के ब्लॉक को मोर्टार से जोड़ा जाता है।  मेसनरी पियर्स के प्रकार  सॉलिड पियर्स ये सबसे प्रचलित मेसनरी पियर्स है जो पूर्ण रूप से ईंट, पत्थर या कंक्रीट ब्लॉक से बने होते है। ये मजबूत और टिकाऊ होते है और बड़े भार को सपोर्ट करने में सक्षम होते है। जैसे निचे चित्र में दिखाया गया है। कम्पोजिट पियर्स ये  ऐसा पियर्स होता है जिसके केंद्र में मजबूत पिलर्स होते है और ये चारो तरफ से चिनाई से घिरा होता है। ये  ठोस पियर्स ...

पियर फाउंडेशन: परिभाषा, प्रकार, लाभ तथा अनुप्रयोग

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Pier Foundation क्या है ? पियर फाउंडेशन एक गहरी नीव है जो स्ट्रक्चर के भार को गहरी, मजबूत मिट्टी या चट्टान तक पहुंचाने के लिए उपयोग की जाती है। इसकी संरचना स्तंभ के समान होती है जो जमीन के नीचे गहराई तक जाता है और ऊपर से स्ट्रक्चर को सहारा देती है। पियर फाउंडेशन का उपयोग अक्सर कमजोर मिट्टी, ढलान वाली जमीन या जल निकायो के ऊपर संरचना के लिए किया जाता है। पियर फाउंडेशन के प्रकार सिविल इंजीनियरिंग में विभिन्न प्रकार के पियर फाउंडेशन का उपयोग किया जाता है। उनमे से कुछ विशेष प्रकार के पियर फाउंडेशन निचे बताये गए है : कंक्रीट पियर ये सबसे प्रचलित  पियर है जो  कंक्रीट से बने होते है। इनका निर्माण निरंतर अंतराल पर स्ट्रक्चर को सपोर्ट करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के पियर्स का उपयोग ओवर ब्रिज में अधिक देखने को मिलता है। मेट्रो या शहर में ओवर ब्रिज सपोर्ट के लिए इस पियर का उपयोग किया जाता है। चूँकि यह कंक्रीट का बना हुआ होता है इसलिए इसमें दीमक या जंग लगने की समस्या नहीं होती है। यह लम्बे समय तक टिके रहते है।  स्टील पियर जैसे नाम से ज्ञात होता है की ये स्टील के बने होते है। स्...

डीसी जनरेटर में होने वाली विभिन्न प्रकार की हानि एवं दक्षता - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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डीसी जनरेटर में होने वाली हानि क्या है ? डीसी जनरेटर यांत्रिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। जनरेटर को जो यांत्रिक ऊर्जा प्रवाहित की जाती है वह सभी ऊर्जा विधुत ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती है। उसका कुछ भाग मशीन में व्यर्थ हो जाता है। व्यर्थ होने वाली ऊर्जा के इस भाग को हानि कहते है। डीसी जनरेटर के अंदर होने वाली ऊर्जा हानि को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है : कॉपर लॉस  यह हानि जनरेटर के विभिन्न भाग में बहने वाली विधुत धारा की वजह से होती है। कॉपर लॉस को हिंदी में ताम्र हानि कहते है।  चूँकि जनरेटर के अंदर विधुत धारा का प्रवाह आर्मेचर तथा फील्ड वाइंडिंग में होता है। अतः कॉपर लॉस आर्मेचर तथा फील्ड वाइंडिंग में ही होती है। कॉपर लॉस को निम्न फार्मूला द्वारा ज्ञात किया जाता है : आर्मेचर कॉपर लॉस  = Ia^2 * Ra फील्ड वाइंडिंग कॉपर  = Ise^2 * Rse आयरन लॉस  डीसी जनरेटर के अंदर होने वाला दूसरी हानि आयरन लॉस है। यह हानि जनरेटर को बनाने वाली लोहे की बॉडी में होती है। इसलिए इसे आयरन लॉस कहते है। इसे हिंदी में लौह हानि कहते है। ये हानियाँ मुख्य रूप से आर्...

डीसी सीरीज जनरेटर : परिभाषा , कार्य सिद्धांत , कंस्ट्रक्शन तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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डीसी सीरीज जनरेटर क्या है ? डीसी श्रेणी जनरेटर एक विधुत मशीन है जो यांत्रिक ऊर्जा को दिष्ट  धारा (DC) के रूप मे विधुत ऊर्जा मे परिवर्तित करता है। इसकी विशेषता यह है कि इसके आर्मेचर कुंडली और चुंबकीय क्षेत्र कुंडली दोनों सीरीज में जुडी हुई होती है।  इसका मतलब है कि दोनों कुंडलियो से समान धारा प्रवाहित होती है। डीसी जनरेटर के समतुल्य परिपथ को निचे चित्र में दिखाया गया है।  डीसी सीरीज जनरेटर का कंस्ट्रक्शन  डीसी श्रेणी जनरेटर के मुख्य भाग है: आर्मेचर: यह  जनरेटर का घूमने वाला बेलनाकार भाग  है जिस पर तारो की कुंडली बनी होती है। आर्मेचर में ही विधुत धारा उत्पन्न होती है।  क्षेत्र चुम्बक:  यह जनरेटर के आंतरिक भाग में लगा हुआ होता है  जिसमे कुंडली लपेटी हुई होती है यह  आर्मेचर के चारों तरफ  एक मजबूत चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करता है।  कम्यूटेटर: यह धातु के खंडों का एक रिंग होता है जो आर्मेचर की कुंडलियो से जुड़ा होता है। कम्यूटेटर का काम  आर्मेचर में उत्पन्न हुई विधुत धारा को दिष्ट धारा में परिवर्तित करना होता है।  ब्रश: ये स्थ...

डीसी शंट जनरेटर : परिभाषा , कंस्ट्रक्शन , कार्य सिद्धांत तथा अनुप्रयोग

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डीसी शंट जनरेटर क्या है ? यह एक प्रकार का सेल्फ एक्ससाइटेड डीसी जनरेटर है जिसमे आर्मेचर में उत्पन्न हुए विधुत धारा का एक हिस्सा फील्ड सिस्टम में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे डीसी शंट जनरेटर इसलिए कहते है क्योकि इसमें फील्ड COIL आर्मेचर COIL के समांतर क्रम में जुड़ा हुआ होता है। डीसी शंट जनरेटर के समतुल्य सर्किट को निचे चित्र में दिखाया गया है डीसी जनरेटर का निर्माण  डीसी शंट जनरेटर में निम्नलिखित मुख्य भाग होते है: आर्मेचर: यह एक बेलनाकार घूर्णन करने वाला हिस्सा है जिसमे चालको  का एक सेट होता है। आर्मेचर में प्रेरित विधुत धारा उत्पन्न होती है। फील्ड फ्रेम: यह चुंबकीय फील्ड सिस्टम के सुपोर्ट के लिए एक स्थिर ढांचा है।  चुंबकीय क्षेत्र कुंडल: ये तांबे के तारो से बने कॉइल होते है जिसमे  चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने  के लिए  विधुत धारा प्रवाहित होती है। डीसी शंट जनरेटर मे चुंबकीय क्षेत्र कुंडली आर्मेचर के साथ समांतर क्रम में जुडी हुई होती है।  कम्यूटेटर: यह एक रिंग के आकार का उपकरण है जो आर्मेचर में प्रेरित प्रत्यावर्ती...

विभिन्न प्रकार के डीसी जनरेटर तथा उसके गुण , उपयोग तथा दक्षता - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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विभिन्न प्रकार के डीसी जनरेटर  डीसी जनरेटर दिष्ट धारा के रूप में विधुत ऊर्जा का उत्पादन करते है।डीसी जनरेटर वर्गीकरण Excitation System के आधार पर दो प्रकार से किया जाता है जैसे  सेल्फ एक्साइटेड डीसी जनरेटर  सेपेरेटली एक्साइटेड डीसी जनरेटर  सेपेरेटली एक्साइटेड डीसी जनरेटर  यह ऐसा डीसी जनरेटर है जिसमे विधुत चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए बाहरी किसी दूसरे विधुत ऊर्जा श्रोत की जरुरत पड़ती है। इसके फील्ड वाइंडिंग में बाहर से विधुत धारा प्रवाहित की जाती है। यह स्रोत एक बैटरी, एक अलग डीसी जनरेटर, या एक रेक्टिफायर हो सकता है। इसे हिंदी में अलग से उत्तेजित डीसी जनरेटर कहते है। इसका समतुल्य विधुत परिपथ नीचे दिया गया है।  image credit :https://circuitglobe.com/ सेपेरेटली एक्साइटेड डीसी जनरेटर का कार्य सिद्धांत  बाहरी विधुत ऊर्जा स्रोत(बैटरी , डीसी जनरेटर आदि) से इसके फील्ड वाइंडिंग में एक डीसी विधुत  धारा भेजता है जिससे एक स्थिर चुंबकीय क्षेत्र बनता है। जब आर्मेचर को घुमाया जाता है तब आर्मेचर कंडक्टर इस चुंबकीय क्षेत्र को काटते हैं। विधुत चुम्बकीय प...

कम्यूटेशन , इंटरपोल तथा कम्पेन्सेटिंग वाइंडिंग | RGPV डिप्लोमा सेमेस्टर -3 मशीन -1

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कम्यूटेशन क्या होता है ? कम्यूटेशन का शाब्दिक अर्थ बदलना या रूपान्तरित करना होता है। डीसी जनरेटर में आर्मेचर चुंबकीय क्षेत्र में घूमता है। आर्मेचर चालक चुंबकीय क्षेत्र को काटते है जिससे चालक के सिरों के बीच वोल्टेज (EMF) उत्पन्न हो जाता है। चूँकि आर्मेचर चालक आवर्ती रूप से नार्थ पोल तथा साउथ पोल के बीच घूमते रहते है इसलिए चालक में उत्पन्न विधुत धारा भी आवर्ती रूप से अपनी दिशा बदलती रहती है। अर्थात आर्मेचर में उत्पन्न विधुत धारा DC नहीं AC होती है। AC धारा को डीसी में बदलने की प्रक्रिया कम्यूटेशन कहलाती है।  डीसी जनरेटर में कम्यूटेशन कैसे होता है ?  जब आर्मेचर को चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तब विधुत चुम्बकीय प्रेरण  सिद्धांत के अनुसार आर्मेचर के  कुंडलियों में AC उत्पन्न होती है। यह AC धारा हर आधे घूर्णन के बाद अपनी दिशा बदलती है।  कम्यूटेटर एक तांबे के सिलेंडर पर बने हुए तांबे के खंडों (segments) का एक सेट होता है जो आर्मेचर के शाफ्ट से जुड़ा रहता है। यह आर्मेचर के साथ-साथ घूमता है। कम्यूटेटर के खंडों से कार्बन ब्रश संपर्क करते हैं। ये ब्रश एक स्थिर स्थित...

डीसी`जनरेटरआर्मेचर वाइंडिंग तथा वाइंडिंग प्रकार | RGPV डिप्लोमा - 3 सेमेस्टर Machine -1

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आर्मेचर वाइंडिंग क्या होती है? आर्मेचर वाइंडिंग तांबे या अल्लुमिनियम के तारों से बनी कुंडलियों का जटिल नेटवर्क है जो आर्मेचर कोर पर व्यवस्थित रूप से लपेटी हुई होती हैं। जब  ये कुंडलियां चुंबकीय क्षेत्र में घूमती हैं तब इनमे  विधुत  धारा उत्पन्न होती है। आर्मेचर वाइंडिंग के प्रकार और डिजाइन डीसी जनरेटर की वोल्टेज, धारा और अन्य  दूसरी विशेषताओं पर निर्भर करता है। डीसी मोटर या जनरेटर , दोनों में दो प्रकार से वाइंडिंग की जाती है।  आर्मेचर वाइंडिंग के प्रकार  डीसी मशीन में होने वाली वाइंडिंग को दो वर्गों में बाटा गया है : लैप वाइंडिंग (lap Winding) वेव वाइंडिंग (Wave Winding) कंपाउंड वाइंडिंग (CompoundWinding) लैप वाइंडिंग  लैप वाइंडिंग एक विशेष प्रकार की वाइंडिंग है। इस वाइंडिंग में आर्मेचर के स्लॉट में लगे COIL हुए इस प्रकार से जुड़े होते है जैसे की एक दूसरे के गोद में है। इसलिए इसे लैप वाइंडिंग कहते है। इस वाइंडिंग में पहले कुंडली का अंतिम सिरा और उसके बाद वाले कुंडली का पहला सिरा आपस में जुड़कर कम्यूटेटर से जुड़े हुए होते है। दोनों कुंडली में उत्पन्न वोल्ट...

डीसी जनरेटर : RGPV Diploma सेमेस्टर -3 Unit -2 (Machine-1)

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डीसी जनरेटर क्या है ? डीसी जनरेटर एक विधुत मशीन है जो यांत्रिक ऊर्जा को डीसी (Direct Current) विधुत ऊर्जा  में बदलता है। यह एक ऐसा उपकरण है जो यांत्रिक घूर्णन को दिष्ट विधुत धारा में रूपांतरित करता है।  डीसी जनरेटर के मुख्य भाग  डीसी जनरेटर के निर्माण में विभिन्न प्रकार के कल पुर्जो का उपयोग किया जाता है। इसमें उपयोग होने वाले कुछ महत्वपूर्ण भाग की चर्चा की जा रही है।  आर्मेचर (Armature):   यह एक घूमने वाला हिस्सा है जिसमें तांबे के तार की कुंडली लगी होती है। जब यह कुंडली चुंबकीय क्षेत्र में घूमती है,   तो उसमें विधुत धारा उत्पन्न होती है। क्षेत्र चुंबक (Field Magnet):   यह एक स्थायी चुंबक या विधुत चुंबक होता है जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। कम्यूटेटर (Commutator) :   यह एक यांत्रिक स्विच है जो आर्मेचर में उत्पन्न होने वाली विधुत धारा  इकठ्ठा कर एक  ही दिशा में प्रवाहित करता है   जिससे डीसी धारा बनती है। ब्रश (Brushes):   ये कार्बन या ग्रेफाइट के बने होते हैं और कम्यूटेटर से संपर्क करते हुए बाहरी सर्किट को विधुत धारा प्रद...

ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत : ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत के नियम | RGPV Diploma 3 सेमेस्टर Machine -1 (Unit-1)

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ऊर्जा संरक्षण का नियम: ब्रह्मांड का बुनियादी सच हम सभी जानते हैं कि ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती है वह सिर्फ अपना रूप बदलती है। यही ऊर्जा संरक्षण का नियम है। भौतिकी का मूल सिद्धांत  कहता है कि किसी बंद सिस्टम में ऊर्जा की कुल मात्रा हमेशा स्थिर रहती है। यह नियम  ब्रह्मांड के काम करने के तरीका को समझने में मदद करता है। ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत का प्रभाव विभिन्न क्षेत्र  जैसे कि इंजीनियरिंग, रसायन विज्ञान, और पर्यावरण विज्ञान में  देखने को मिलता है।   ऊर्जा संरक्षण का नियम कैसे काम करता है? ऊर्जा संरक्षण का नियम कहने में सरल लगता है लेकिन इसके मूल को समझना जटिल होता है। ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत कैसे कार्य  करता है। इसका सार यह है कि किसी बंद सिस्टम में ऊर्जा के विभिन्न रूपों का आपस में  परिवर्तन होता रहता है लेकिन सिस्टम की  कुल ऊर्जा की मात्रा स्थिर रहती है। उदाहरण के लिए, जब आप एक गेंद को हवा में फेंकते हैं, तो गेंद की गतिज ऊर्जा  गुरुत्वाकर्षण के कारण स्थितिज ऊर्जा  में परिवर्तित हो जाती है। जब गेंद अपने उच्चतम बिंदु पर पहुँचती है तो उस ...

थ्री फेज वोल्टेज तथा करंट का उत्पादन कैसे किया जाता है ?

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  थ्री फेज वोल्टेज सिस्टम क्या है ? विधुत पावर के संसार में विधुत ऊर्जा का उत्पादन और सम्प्रेषण थ्री फेज प्रणाली द्वारा किया जाता है। थ्री फेज वोल्टेज को तीन अलग अलग वायर में उत्पन्न कर सुदूर उपभोगता के लिए तीन वायर सिस्टम द्वारा भेजा जाता है। थ्री फेज विधुत पावर को उत्पन्न करना एवं एक स्थान से दूसरे स्थान पर उपयोग के लिए भेजना एक जटिल प्रक्रिया है लेकिन उत्तम इंजीनियरिंगके कारण आज यह संभव हो पाया है।  थ्री फेज़ वोल्टेज क्या है? थ्री फेज़ वोल्टेज सिस्टम में तीन अलग-अलग वोल्टेज होते हैं जिन्हें R ,Y और B कहते है। इन तीनो वोल्टेज की आवृत्ति तथा परिमाण समान होते हैं लेकिन तीनो वोल्टेज एक-दूसरे से 120 डिग्री के कोण पर विस्थापित होते हैं। जिसका मतलब है कि जब R वोल्टेज मैक्सिमम वैल्यू को प्राप्त है उस समय Y वोल्टेज बीच में होता है तथा B वोल्टेज अपने न्यूनतम मान पर होता है।तीनो वोल्टेज में यह विस्थापन महत्वपूर्ण है क्योंकि ये तीन वोल्टेज एक साथ मिलकर एक निरंतर शक्ति प्रवाह बनाये रखते है। थ्री फेज़ वोल्टेज कैसे उत्पन्न होता है? थ्री फेज़ वोल्टेज का उत्पादन दो तरीके से किया जाता है। पह...

विधुत इंजीनियरिंग में बहुफेज ( 2 फेज,3 फेज ,4 फेज ) क्या होता है ?

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बहुफेज एसी सर्किट की अवधारणा तथा सिंगल फेज के तुलना में उसके लाभ विधुत  इंजीनियरिंग में विधुत ऊर्जा के दो मुख्य स्वरूप होते है : दिष्ट धारा (DC) और प्रत्यावर्ती धारा (AC)। एसी का मतलब है कि विधुत धारा और वोल्टेज का परिमाण  समय के साथ दिशा बदलते रहते हैं। सिंगल फेज AC सर्किट सबसे सिंपल  प्रकार के AC सर्किट होते है जिसमे एक ही वोल्टेज और करंट एक तार से गुजरते हैं। जबकि हाई पावर के अनुप्रयोग के लिए बहुफेज AC सर्किट अधिक कुशल और लाभप्रद होते है। Poly Phase क्या है? पोली फेज को हिंदी में बहुफेज कहते है। बहुफेज सर्किट दो या दो से अधिक एसी वोल्टेज का उपयोग करते है जिसमे दोनो या तीनो वोल्टेज की आवृत्ति समान होती है लेकिन एक-दूसरे से एक निश्चित फेज कोण से विस्थापित होते है। दुनिया में सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला बहुफेज सर्किट थ्री फेज सर्किट है जिसमें तीन वोल्टेज होते है जो एक-दूसरे से 120 डिग्री के कोण पर विस्थापित होते है।थ्री फेज के अतिरिक्त अन्य बहुफेज सर्किट भी होते है जिनमे दो फेज (Two-Phase) और छह फेज (Six-Phase) शामिल हैं लेकिन ये बहुत प्रचलित नही हैं। बहुफेज सर्किट...

मैक्सिमम पावर ट्रांसफर थ्योरम : परिभाषा , अप्लाई करने की प्रक्रिया , फार्मूला तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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मैक्सिमम पावर ट्रांसफर थ्योरम क्या है ? मैक्सिमम पावर ट्रांसफर थ्योरम को हिंदी में अधिकतम शक्ति अन्तरण प्रमेय कहते है। यह प्रमेय विधुत ऊर्जा श्रोत से विधुत लोड के तरफ अधिकतम प्रवाहित होने वाली विधुत ऊर्जा की व्याख्या करता है। इस प्रमेय के अनुसार विधुत ऊर्जा श्रोत से जुड़े हुए लोड का कुल आंतरिक प्रतिरोध , विधुत ऊर्जा श्रोत के आंतरिक प्रतिरोध के बराबर हो जाये तो ऊर्जा श्रोत से अधिकतम मात्रा में ऊर्जा का परवाह लोड के तरफ होने लगता है। किसी सर्किट में मैक्सिमम पावर ट्रांसफर थ्योरम उपयोग करने की प्रक्रिया स्रोत का  थेवेनिन समतुल्य प्रतिरोध (Rth) ज्ञात करें। लोड प्रतिरोध (RL) को Rth के बराबर समायोजित करें। सर्किट का विश्लेषण करके शक्ति का मान ज्ञात करें। विधुत परिपथ द्वारा प्रवाहित अधिकतम ऊर्जा का फार्मूला  सर्किट से जुड़े लोड में प्रवाहित होने वाली अधिकतम विधुत ऊर्जा के मात्रा को निचे दिए गए फार्मूला का मदद से ज्ञात किया जाता है।  जहाँ, Vth = थेवेनिन समतुल्य वोल्टेज मैक्सिमम पावर ट्रांसफर थ्योरम का उपयोग  कम्युनिकेशन सिस्टम में एंटीना से रिसीवर को अधिकतम ऊर्जा ज्ञात करने ...

कंपनसेशन थ्योरम क्या है ? परिभाषा ,उपयोग के नियम ,व्याख्या तथा उदहारण - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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कंपनसेशन थ्योरम क्या है ? कंपनसेशन थ्योरम को हिंदी में क्षतिरपूर्ति प्रमेय कहते है। यह  प्रमेय विधुत परिपथ के विश्लेषण में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसके मदद से जटिल परिपथ को सरल बनाकर प्रवाहित विधुत धाराओं और वोल्टेजों का पता लगाया जाता है। इस प्रमेय के अनुसार  यदि किसी रैखिक विधुत परिपथ के  किसी ब्रांच  में परिवर्तन किया जाता है तब  उस ब्रांच  में विधुत धारा या वोल्टेज में होने वाले परिवर्तन को परिपथ के अन्य हिस्सों में परिवर्तित करके ठीक किया जा सकता है बशर्ते कि परिवर्तन  के बाद  परिपथ के कुल प्रतिरोध में कोई परिवर्तन न हो। दूसरे शब्दों में, यदि आप सर्किट के  किसी ब्रांच  में कुछ बदलते हैं, तो आप सर्किट  के अन्य हिस्सों में बदलाव करके उस बदलाव के प्रभाव को संतुलित कर सकते हैं जिससे सर्किट का समग्र व्यवहार पहले  जैसा बना रहे। कंपनसेशन प्रमेय उपयोग करने के नियम  सबसे पहले उस ब्रांच का चयन करे जिसमे  बदलाव करना  हैं। उस  ब्राँच का प्रतिरोध बदलें। परिपथ के अन्य हिस्सों में प्रतिरोधों को इस तरह बदलें कि परिप...

फैराडे के विधुतचुंबकीय प्रेरण सिद्धांत : परिभाषा ,प्रकार ,सूत्र तथा उपयोग -हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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फैराडे के विधुतचुंबकीय प्रेरण सिद्धांत क्या हैं? फैराडे के विधुतचुंबकीय प्रेरण सिद्धांत विधुतचुंबकत्व (Electromagnetism) के दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं जो विधुत धारा तथा चुंबक के बीच के संबंध को दर्शाते है। इस नियम से यह ज्ञात होता है की कैसे एक बदलते हुए चुंबकीय क्षेत्र से विधुत क्षेत्र (Electric Field) और धारा उत्पन्न होते हैं। विधुतचुंबकत्व  में फैराडे के दो नियम है जो निम्न है : फैराडे का पहला नियम पहला नियम यह बताता है कि जब किसी कुंडली से संबंधित चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होता है, तो कुंडली में एक विधुत वाहक बल (EMF) प्रेरित हो जाता है। दूसरे शब्दों में, चुंबकीय क्षेत्र में होने वाला परिवर्तन(चाहे वह बढ़ रहा हो, घट रहा हो या दिशा में परिवर्तन हो रहा हो) उससे सम्बंधित कुंडली में वोल्टेज उत्पन्न करता है। यदि कुंडली को किसी विधुत लोड से जोड़ा जाए तब उसमे विधुत धारा का परवाह होने लगता है। इस नियम को गणितीय रूप में निम्न तरीके से प्रदर्शित किया जाता है : E = -N(dΦ/dt) जहां: E = कुंडली में प्रेरित ईएमएफ है(वोल्ट में) N =कुंडली में फेरों की संख्या है Φ =कुंडली से गुजरने वाला चुंबक...

lenz's law in hindi : परिभाषा , फार्मूला तथा प्रयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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लेन्ज़ का नियम क्या है? किसी कुंडली से संबंधित चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन करने पर उस  कुंडली में एक विधुत धारा प्रेरित अर्थात उत्पन्न  हो जाती है। लेन्ज़ का नियम यह बताता है कि प्रेरित धारा की दिशा ऐसी होती है कि वह उस परिवर्तन का विरोध करती है जिसने उसे प्रेरित अर्थात उत्पन्न कियाथा।  दूसरे शब्दों में,प्रेरित धारा(Induced Current) एक ऐसा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है जो पहले वाले  चुंबकीय क्षेत्र के परिवर्तन का विरोध करता है। लेन्ज़ के नियम का सूत्र क्या है? लेन्ज़ के नियम का सूत्र फैराडे के प्रेरण सिद्धांत का विस्तारित रूप है जिससे यह ज्ञात होता है कि किसी कुंडली में प्रेरित विद्युतवाहक बल (EMF) चुंबकीय क्षेत्र के परिवर्तन की दर के ऋणात्मक के बराबर होता है जैसे निचे दिया गया है E = -N(dΦ/dt) जहां E = कुंडली में प्रेरित EMF है, वोल्ट में N= कुंडली में फेरों की संख्या है Φ=कुंडली से गुजरने वाला चुंबकीय फ्लक्स है, वेबर में t = समय है, सेकंड में लेन्ज़ के नियम के अनुप्रयोग(Application of Lenz's Law) लेन्ज़ के नियम दैनिक जीवन और टेक्नोलॉजी में कई प्रकार से...

वेन ब्रिज Oscillator : परिभाषा ,सर्किट डायग्राम ,कार्य सिध्दांत तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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वेन ब्रिज Oscillator क्या है ? यह एक खास प्रकार का दोलित्र है जिसमे आवर्ती प्रकृति का तरंग उत्पन्न करने के लिए मैक्स वेन द्वारा विकशित वेन ब्रिज सर्किट का उपयोग किया जाता है।इससे साइन वेव उत्पन्न किया जाता है। वेन ब्रिज सर्किट में चार प्रतिरोध तथा दो कैपेसिटर एक दूसरे के साथ चतुर्भुज के आकार जुड़े हुए होते है जैसे की निचे के चित्र में दिखाया गया है।  जैसे की निचे के परिपथ में दिखाया गया है चतुर्भुज के दो भुजा में केवल प्रतिरोध  जुड़े हुए है त था अन्य दो भुजा के में प्रतिरोध तथा कैपेसिटर जुड़े जुड़े हुए है जिनमे  (R 1  तथा C 1 ) श्रेणी तथा  (R 2   तथा C 2  ) समान्तर क्रम में जुड़े हुए है। श्रेणी क्रम में जुड़े हुए कैपेसिटर तथा प्रतिरोध एक High Pass Filter तथा समांतर क्रम वाला कैपेसिटर तथा प्रतिरोध Low Pass Filter की तरह कार्य करता है। इसलिए इन दोनों भुजाओ को Frequency सेंसिटिव  भुजा कहते है क्योकि ये दोनों भुजा एक निश्चित Frequency पर ही इनपुट को एम्पलीफायर में प्रवेश करने देती है। जिस Frequency पर वेन ब्रिज Oscillator कार्य करता है उसे Resonant Fre...

त्रुटि : परिभाषा ,विभिन्न प्रकार के त्रुटी ,सूत्र तथा उदहारण - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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 एरर क्या होता है? विज्ञानं तथा इंजीनियरिंग में मापन का बहुत ही महत्व है। इंजीनियरिंग में उपयोग की जाने वाली सभी प्रकार के भौतिक राशियों को मापना बहुत ही जरुरी होता है। यदि मापी गई राशियों में किसी भी प्रकार गलती हो जाती है तब परिमाण में त्रुटी देखने को मिलती है अर्थात हमारी उपेक्षा के अनुसार परिमाण नहीं मिलता है। मापन के बाद परिमाण या तो बढ़ जाता है या घट जाता है। मापी गई राशि का इस प्रकार से अपने वास्तविक मान से विचलित होना ही ही एरर अर्थात त्रुटी कहलाता है।  त्रुटी को साधारण भाषा में इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है : किसी भौतिक राशि के वास्तविक मान तथा मापे गए मान के अंतर को त्रुटी कहा जाता है ।  यदि किसी भौतिक राशि (जैसे विधुत धारा) को दो अलग अलग धारामापी से मापा जाए तब इसकी कोई गारंटी नहीं है की दोनों धारामापी एक ही रीडिंग दिखाए। इस प्रकार दोनों धारामापी के रीडिंग में आए हुए अंतर को त्रुटी कहा जाता है। किसी भौतिक राशि में उत्पन्न हुए त्रुटी को समझने के लिए हमें भौतिक राशि से संबंधित दो पद को के बारे में जानना पड़ेगा। ये दो पद है : भौतिक राशि का वास्तविक मान (Tru...