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फोटो वोल्टेइक : परिभाषा , कार्य सिद्धांत तथा उपयोग -हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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फोटो वोल्टेइक सेल क्या है ? फोटो वोल्टेइक सेल को हिंदी में प्रकाश विधुत कहते है। यह अर्द्धचालक उपकरण है जो प्रकाश को सीधे विधुत में परिवर्तित कर देता है। इसे सोलर सेल भी कहते है। अर्द्धचालक एक विशेष प्रकार का पदार्थ है जिसमे विधुत चालकता चालक तथा कुचालक के मध्य होती है। जब सोलर सेल पर प्रकाश की किरणे पड़ती है तो अर्द्धचालक के अंदर इलेक्ट्रान - होल्स पेअर बनते है जो बाहरी सर्किट में विधुत प्रवाह बनाते है।  सोलर सेल का निर्माण कैसे किया जाता है ? सोलर सेल के निर्माण में अशुद्ध (P - टाइप तथा N - टाइप ) अर्द्धचालक का उपयोग किया जाता है। सोलर सेल एक प्रकार का डायोड ही होता है लेकिन इसके PN जंक्शन के निर्माण में थोड़ा अंतर होता है। P-टाइप सेमीकंडक्टर की बहुत ही पतली परत को अपेक्षाकृत मोटी N-टाइप परत के ऊपर चढ़ाई जाती है। इसके बाद PN जंक्शन के ऊपर इलेक्ट्रोड सेट किया जाता है। जंक्शन के ऊपर इलेक्ट्रोड को ऐसे सेट किया जाता है की यह प्रकाश के लिए अवरोध उत्पन्न न करे। सोलर सेल का निर्माण एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। सोलर सेल के निर्माण को निचे दिए गए चित्र में दिखाया गया है।  image source ...

इन्ट्रिंसिक तथा एक्सट्रिन्सिक सेमीकंडक्टर पदार्थ क्या होते है। यहाँ जाने सब कुछ - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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अर्द्धचालक पदार्थ : इन्ट्रिंसिक तथा एक्सट्रिंसिक्स  आज के तकनीकी युग में सेमीकंडक्टर इंसानी जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुके हैं। कंप्यूटर, स्मार्टफोन, सोलर पैनल जैसे अनगिनत इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण इन्हीं अर्ध्दचालक से बनाये जा रहे है लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये अर्द्धचालक दो तरह के होते हैं जिन्हे न्ट्रिंसिक तथा एक्सट्रिन्सिक अर्द्धचालक कहते है। इस पोस्ट में हम इन्ही दोनों अर्द्धचालक की व्याख्या करने वाले है। इन्ट्रिंसिक सेमीकंडक्टर क्या है ? इन्ट्रिंसिक सेमीकंडक्टर को हिंदी में स्वयंसंचालक कहते है। ये धरती से प्राप्त शुद्ध अर्द्धचालक होते है। लेकिन इनकी विधुत चालकता बहुत ही कम होती है। जिससे इनमे विधुत धारा को प्रवाहित करने की क्षमता बहुत कम होती है। जैसे ,सिलिकॉन और जर्मेनियम ऐसे ही स्वयंसंचालक अर्द्धचालक हैं। इन पदार्थों में इलेक्ट्रॉन और होल की संख्या लगभग बराबर होती है। इलेक्ट्रॉन पर ऋणात्मक आवेश तथा होल पर धन आवेश होता हैं। सामान्य तापमान पर इन पदार्थों में वैलेंस बैंड और कंडक्शन बैंड के बीच पर्याप्त ऊर्जा अंतर होता है। इस वजह से वैलेंस बैंड में अधिकांश इलेक्ट्रॉन बंधे ह...

ऑप्टिकल फाइबर : परिभाषा , कंस्ट्रक्शन , कार्य सिद्धांत ,फार्मूला ,लाभ ,हानि तथा उपयोग

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ऑप्टिकल फाइबर क्या है ? ऑप्टिकल फाइबर को हिंदी में प्रकाश तंतु कहते है। यह  एक पतला और लचीला तंतु होता है जो  कांच (सिलिका) या प्लास्टिक से बना हुआ होता है। प्रकाश तंतु का उपयोग सूचना को प्रकाश के रूप में  भेजने के लिए किया जाता है। ऑप्टिकल फाइबर इंसान के बाल से थोड़ा मोटा होता है। लेकिन इसके पास सूचना को लम्बे दुरी तक भेजने की असीम क्षमता होती है।  ऑप्टिकल फाइबर का कंस्ट्रक्शन  ऑप्टिकल फाइबर के निर्माण में सिलिका या उच्च किस्म के ग्लास (सीसा) का उपयोग किया जाता है। इसका आकर इससे होकर प्रवाहित होने वाले सूचना के अनुपाती होता है। जितना ज्यादा मोटा ऑप्टिकल फाइबर होगा उतना ज्यादा सूचना उससे प्रशारित होगी। ऑप्टिकल फाइबर का निर्माण तीन भाग में किया जाता है जो निम्न है : कोर (Core): यह ऑप्टिकल फाइबर के केंद्र में स्थित परत होती है जो प्रकाश(सूचना) को प्रसारित करती है। इसका निर्माण उच्च किस्म के सीसा से किया जाता है जिसे अपवर्तनांक उच्च  होता है।  क्लैडिंग (Cladding): यह कोर के चारों ओर की परत होती है जिसका अपवर्तनांक कोर के तुलना में  कम होता है।...

माइक्रोकंट्रोलर : परिभाषा , प्रकार , कार्य सिद्धांत तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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माइक्रोकंट्रोलर क्या है ? माइक्रोकंट्रोलर (Microcontroller) को एक छोटा सा कंप्यूटर के रूप में समझा जा सकता है  यह  किसी डिवाइस के दिमाग के रूप में काम करता है। यह एक इंटीग्रेटेड सर्किट(IC) है जिसमें एक सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU), मेमोरी, इनपुट-आउटपुट (I/O) पिन तथा अन्य दूसरे उपकरण शामिल होते हैं। माइक्रोकंट्रोलर  सबसे पहले सेंसर से डेटा पढ़ता है उसके बाद प्रोसेसर के माध्यम से निर्देशों (Instruction) को चलाता है और परिणामों के आधार पर डिवाइस को नियंत्रित करता है। दूसरे शब्दों में, एक माइक्रोकंट्रोलर किसी उपकरण को आटोमेटिक रूप से चलाने का ज़रिया है। यह उपकरण को निर्देश देता है कि कब चालू होना है, कब बंद होना है और किस तरह से काम करना है। जैसे उदाहरण के लिए, एक वॉशिंग मशीन में माइक्रोकंट्रोलर होता है जो वॉश साइकल के विभिन्न चरणों को नियंत्रित करता है। यह पानी भरने, धोने, धुलाने और सुखाने के लिए समय और तापमान को निर्धारित करता है। माइक्रोकंट्रोलर के प्रकार  माइक्रोकंट्रोलर को विभिन्न कारकों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है जैसे  आर्किटेक्चर के आधार पर (Based On ...

ऑप्टोकप्लर : परिभाषा ,कार्य सिध्दांत तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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ऑप्टोकप्लर  क्या है ? यह एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो एक प्रकाशकीय स्विच की तरह कार्य करता है। जब इसपर प्रकाश पड़ता है तब यह दो परिपथ को आपस में जोड़ देता है। इसके आंतरिक भाग में एक अवरक्त किरण उत्पन्न करने वाला LED तथा एक प्रकाश संवेदी डिवाइस होता है। जब LED से प्रकाश उत्पन्न होता है तब प्रकाश संवेदी डिवाइस उसे अवशोषित कर ऑन हो जाता  है जिससे बाहरी विधुत परिपथ कार्य करने लगता है। इसके आंतरिक संरचना को निचे दिए गए चित्र में दिखाया गया है।  ऑप्टोकप्लर की संरचना कैसी होती है ?  जैसे की ऊपर के चित्र में दिखाया गया है की इसके आंतरिक भाग में दो विधुत सर्किट एक दूसरे से दूर स्थित है। पहली विधुत सर्किट एक अवरक्त किरण उत्पन्न करने वाली LED तथा दूसरी डिवाइस अवरक्त किरण को डिटेक्ट करने वाली है। यह एक फोटो ट्रांजिस्टर ,फोटो डायोड ,या फोटो TRAIC हो सकती है। इन दोनों के बीच मौजूद खाली जगह में पारदर्शी सीसा ,पारदर्शी प्लास्टिक या हवा हो सकता है। इसमें कुल चार पिन होता है जिसमे पहले दो पिन LED के कैथोड एंड एनोड होते है जबकि अन्य दो फोटो ट्रांजिस्टर के एमिटर तथा कलेक्टर होते है। ...

Phototransistor in hindi : परिभाषा ,कार्य सिध्दांत ,कंस्ट्रक्शन तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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फोटो ट्रांजिस्टर क्या होता है? यह एक विशेष प्रकार का ट्रांजिस्टर होता है जिसमे Base टर्मिनल नहीं होता है। इसमें केवल कलेक्टर (C) तथा एमिटर (E) टर्मिनल ही होता है। इसका मतलब यह नहीं की इसमें Base जंक्शन नही होता है। फोटो ट्रांजिस्टर भी P तथा N टाइप सेमीकंडक्टर से बनाया जाता है। इसका निर्माण एक साधारण ट्रांजिस्टर की तरह ही किया जाता है लेकिन इसके बेस को प्रकाश संवेदी बनाया जाता है। जब प्रकाश पड़ता है तब इसके कलेक्टर तथा एमिटर के बीच विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है। अर्थात इस ट्रांजिस्टर को ऑन करने के लिए प्रकाश उर्जा की आवश्यकता होती है। प्रकाश द्वारा संचालित होने की वजह से इसे फोटो ट्रांजिस्टर कहा जाता है।  फोटो ट्रांजिस्टर का प्रतिक (Symbol) क्या होता है?  अन्य दुसरे ट्रांजिस्टर की तरह ही फोटो ट्रांजिस्टर को भी पेपर पर एक चित्र द्वारा दिखाया जाता है। इस चित्र को ही फोटो ट्रांजिस्टर को प्रतीक कहा जाता है जिसे निचे के चित्र में दिखाया गया है : फोटो ट्रांजिस्टर का कंस्ट्रक्शन कैसा होता है ? फोटो ट्रांजिस्टर का निर्माण एक साधारण ट्रांजिस्टर के जैसा ही होता है जिसमे बेस प्रकाश संव...

thyristor in hindi : परिभाषा ,कंस्ट्रक्शन ,कार्य सिध्दांत तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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 thyristor क्या होता है ? यह एक विशेष प्रकार का चार परत(लेयर)वालाअर्ध्दचालक इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस  है जिसमे तीन टर्मिनल होते है। ये तीन टर्मिनल एनोड (A) ,कैथोड (K) तथा गेट (G) कहलाते है। इसे SCR भी कहा जाता है जिसका मतलब सिलिकॉन कंट्रोल्ड रेक्टी फायर होता  है। यह एक यूनिडायरेक्शनल डिवाइस होता है अर्थात इससे एक ही दिशा में विधुत धारा का प्रवाह होता है। चूँकि इसमें अर्ध्दचालक की चार परते होती है इसलिए इसमें तीन PN जंक्शन होता है जो आपस में श्रेणी क्रम में जुडा हुआ होता है। जब गेट पर छोटे परिमाण का वोल्टेज आरोपित किया जाता है तब एनोड तथा कैथोड के बीच विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है। इसलिए यह विधुत सर्किट में ट्रांजिस्टर की तरह स्विच की तरह कार्य करता है।   Thyristor का Symbol क्या होता है? अन्य दुसरे इलेक्ट्रॉनिक्स कॉम्पोनेन्ट की तरह thyristor को भी कागज पर एक चिन्ह द्वारा दिखाया जाता है जिसे सिंबल कहते है। Thyristor के सिंबल को निचे दिए गए चित्र में दिखाया गया है।  Thyristor का कंस्ट्रक्शन कैसा होता है? Thyristor चार परत से बना हुआ इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस होता है ...

LED Bulb कैसे कार्य करता है ? | संरचना तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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LED बल्ब क्या होता है? यह एक विशेष प्रकार का प्रकाश उत्पन्न करने वाला विधुत डायोड होता है। जब इस डायोड को फॉरवर्ड बायस किया जाता है तब यह दृश्य प्रकाश उत्पन्न करता है। चूँकि यह फॉरवर्ड बायस की दशा में प्रकाश उत्पन्न करता है। इसलिए इसे संचालित करने के लिए बहुत ही कम मात्रा में विधुत उर्जा की जरूरत पड़ती है। आज के वर्तमान समय में LED Bulb का ही उपयोग किया जा रहा है।   Led Bulb से प्रकाश कैसे उत्पन्न होता है? जब भी किसी PN Junction को फॉरवर्ड बायस किया जाता है तब N - टाइप अर्द्धचालक से इलेक्ट्रान निकलकर PN जंक्शन को पार करते हुए P - टाइप अर्द्धचलक में पहुच जाते है और इस P क्षेत्र में मौजूद होल्स के साथ  Recombine होने लगते है। उर्जा बैंड सिद्धांत के अनुसार फ्री इलेक्ट्रान Conduction बैंड में तथा होल्स वैलेंस बैंड में रहते है। जिससे यह साबित होता है की इलेक्ट्रान का उर्जा स्तर ,होल्स की तुलना में बहुत ज्यादा होता है। जब कोई इलेक्ट्रान होल्स के साथ Recombine होता है तब वह Conduction बैंड से वैलेंस बैंड में चला जाता है। अर्थात इस प्रक्रिया के दौरान इलेक्ट्रान का उर्जा स्तर ,Higher वै...