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मेसनरी पियर्स : परिभाषा , प्रकार तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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Masonary Piers क्या है ? बिल्डिंग स्ट्रक्चर मे मजबूती और सहारा देने के लिए पत्थर या ईंटो की चिनाई से बने मजबूत स्तंभो को Masonry Piers कहते है। ये भारी भार उठाने मे सक्षम होते है और अक्सर मेहराब, बीम, लिनटेल या छत को सपोर्ट करते है।ये आम तौर पर ईंट, पत्थर या कंक्रीट ब्लॉको से बने होते है जो मजबूत मोर्टार से जुड़े होते है।सनरी पियर्स विभिन्न आकार के होते है लेकिन आम तौर पर आयताकार, वर्गाकार या गोलाकार आकार मे देखने को मिलते हैं। उनके निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री और तकनीक भिन्न हो सकती है लेकिन आम तौर पर वे ठोस चिनाई से बने होते है जिसमे पत्थर या ईंट के ब्लॉक को मोर्टार से जोड़ा जाता है।  मेसनरी पियर्स के प्रकार  सॉलिड पियर्स ये सबसे प्रचलित मेसनरी पियर्स है जो पूर्ण रूप से ईंट, पत्थर या कंक्रीट ब्लॉक से बने होते है। ये मजबूत और टिकाऊ होते है और बड़े भार को सपोर्ट करने में सक्षम होते है। जैसे निचे चित्र में दिखाया गया है। कम्पोजिट पियर्स ये  ऐसा पियर्स होता है जिसके केंद्र में मजबूत पिलर्स होते है और ये चारो तरफ से चिनाई से घिरा होता है। ये  ठोस पियर्स ...

पियर फाउंडेशन: परिभाषा, प्रकार, लाभ तथा अनुप्रयोग

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Pier Foundation क्या है ? पियर फाउंडेशन एक गहरी नीव है जो स्ट्रक्चर के भार को गहरी, मजबूत मिट्टी या चट्टान तक पहुंचाने के लिए उपयोग की जाती है। इसकी संरचना स्तंभ के समान होती है जो जमीन के नीचे गहराई तक जाता है और ऊपर से स्ट्रक्चर को सहारा देती है। पियर फाउंडेशन का उपयोग अक्सर कमजोर मिट्टी, ढलान वाली जमीन या जल निकायो के ऊपर संरचना के लिए किया जाता है। पियर फाउंडेशन के प्रकार सिविल इंजीनियरिंग में विभिन्न प्रकार के पियर फाउंडेशन का उपयोग किया जाता है। उनमे से कुछ विशेष प्रकार के पियर फाउंडेशन निचे बताये गए है : कंक्रीट पियर ये सबसे प्रचलित  पियर है जो  कंक्रीट से बने होते है। इनका निर्माण निरंतर अंतराल पर स्ट्रक्चर को सपोर्ट करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के पियर्स का उपयोग ओवर ब्रिज में अधिक देखने को मिलता है। मेट्रो या शहर में ओवर ब्रिज सपोर्ट के लिए इस पियर का उपयोग किया जाता है। चूँकि यह कंक्रीट का बना हुआ होता है इसलिए इसमें दीमक या जंग लगने की समस्या नहीं होती है। यह लम्बे समय तक टिके रहते है।  स्टील पियर जैसे नाम से ज्ञात होता है की ये स्टील के बने होते है। स्...

डीसी जनरेटर में होने वाली विभिन्न प्रकार की हानि एवं दक्षता - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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डीसी जनरेटर में होने वाली हानि क्या है ? डीसी जनरेटर यांत्रिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। जनरेटर को जो यांत्रिक ऊर्जा प्रवाहित की जाती है वह सभी ऊर्जा विधुत ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती है। उसका कुछ भाग मशीन में व्यर्थ हो जाता है। व्यर्थ होने वाली ऊर्जा के इस भाग को हानि कहते है। डीसी जनरेटर के अंदर होने वाली ऊर्जा हानि को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है : कॉपर लॉस  यह हानि जनरेटर के विभिन्न भाग में बहने वाली विधुत धारा की वजह से होती है। कॉपर लॉस को हिंदी में ताम्र हानि कहते है।  चूँकि जनरेटर के अंदर विधुत धारा का प्रवाह आर्मेचर तथा फील्ड वाइंडिंग में होता है। अतः कॉपर लॉस आर्मेचर तथा फील्ड वाइंडिंग में ही होती है। कॉपर लॉस को निम्न फार्मूला द्वारा ज्ञात किया जाता है : आर्मेचर कॉपर लॉस  = Ia^2 * Ra फील्ड वाइंडिंग कॉपर  = Ise^2 * Rse आयरन लॉस  डीसी जनरेटर के अंदर होने वाला दूसरी हानि आयरन लॉस है। यह हानि जनरेटर को बनाने वाली लोहे की बॉडी में होती है। इसलिए इसे आयरन लॉस कहते है। इसे हिंदी में लौह हानि कहते है। ये हानियाँ मुख्य रूप से आर्...

डीसी सीरीज जनरेटर : परिभाषा , कार्य सिद्धांत , कंस्ट्रक्शन तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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डीसी सीरीज जनरेटर क्या है ? डीसी श्रेणी जनरेटर एक विधुत मशीन है जो यांत्रिक ऊर्जा को दिष्ट  धारा (DC) के रूप मे विधुत ऊर्जा मे परिवर्तित करता है। इसकी विशेषता यह है कि इसके आर्मेचर कुंडली और चुंबकीय क्षेत्र कुंडली दोनों सीरीज में जुडी हुई होती है।  इसका मतलब है कि दोनों कुंडलियो से समान धारा प्रवाहित होती है। डीसी जनरेटर के समतुल्य परिपथ को निचे चित्र में दिखाया गया है।  डीसी सीरीज जनरेटर का कंस्ट्रक्शन  डीसी श्रेणी जनरेटर के मुख्य भाग है: आर्मेचर: यह  जनरेटर का घूमने वाला बेलनाकार भाग  है जिस पर तारो की कुंडली बनी होती है। आर्मेचर में ही विधुत धारा उत्पन्न होती है।  क्षेत्र चुम्बक:  यह जनरेटर के आंतरिक भाग में लगा हुआ होता है  जिसमे कुंडली लपेटी हुई होती है यह  आर्मेचर के चारों तरफ  एक मजबूत चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करता है।  कम्यूटेटर: यह धातु के खंडों का एक रिंग होता है जो आर्मेचर की कुंडलियो से जुड़ा होता है। कम्यूटेटर का काम  आर्मेचर में उत्पन्न हुई विधुत धारा को दिष्ट धारा में परिवर्तित करना होता है।  ब्रश: ये स्थ...

डीसी शंट जनरेटर : परिभाषा , कंस्ट्रक्शन , कार्य सिद्धांत तथा अनुप्रयोग

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डीसी शंट जनरेटर क्या है ? यह एक प्रकार का सेल्फ एक्ससाइटेड डीसी जनरेटर है जिसमे आर्मेचर में उत्पन्न हुए विधुत धारा का एक हिस्सा फील्ड सिस्टम में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे डीसी शंट जनरेटर इसलिए कहते है क्योकि इसमें फील्ड COIL आर्मेचर COIL के समांतर क्रम में जुड़ा हुआ होता है। डीसी शंट जनरेटर के समतुल्य सर्किट को निचे चित्र में दिखाया गया है डीसी जनरेटर का निर्माण  डीसी शंट जनरेटर में निम्नलिखित मुख्य भाग होते है: आर्मेचर: यह एक बेलनाकार घूर्णन करने वाला हिस्सा है जिसमे चालको  का एक सेट होता है। आर्मेचर में प्रेरित विधुत धारा उत्पन्न होती है। फील्ड फ्रेम: यह चुंबकीय फील्ड सिस्टम के सुपोर्ट के लिए एक स्थिर ढांचा है।  चुंबकीय क्षेत्र कुंडल: ये तांबे के तारो से बने कॉइल होते है जिसमे  चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने  के लिए  विधुत धारा प्रवाहित होती है। डीसी शंट जनरेटर मे चुंबकीय क्षेत्र कुंडली आर्मेचर के साथ समांतर क्रम में जुडी हुई होती है।  कम्यूटेटर: यह एक रिंग के आकार का उपकरण है जो आर्मेचर में प्रेरित प्रत्यावर्ती...

विभिन्न प्रकार के डीसी जनरेटर तथा उसके गुण , उपयोग तथा दक्षता - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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विभिन्न प्रकार के डीसी जनरेटर  डीसी जनरेटर दिष्ट धारा के रूप में विधुत ऊर्जा का उत्पादन करते है।डीसी जनरेटर वर्गीकरण Excitation System के आधार पर दो प्रकार से किया जाता है जैसे  सेल्फ एक्साइटेड डीसी जनरेटर  सेपेरेटली एक्साइटेड डीसी जनरेटर  सेपेरेटली एक्साइटेड डीसी जनरेटर  यह ऐसा डीसी जनरेटर है जिसमे विधुत चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए बाहरी किसी दूसरे विधुत ऊर्जा श्रोत की जरुरत पड़ती है। इसके फील्ड वाइंडिंग में बाहर से विधुत धारा प्रवाहित की जाती है। यह स्रोत एक बैटरी, एक अलग डीसी जनरेटर, या एक रेक्टिफायर हो सकता है। इसे हिंदी में अलग से उत्तेजित डीसी जनरेटर कहते है। इसका समतुल्य विधुत परिपथ नीचे दिया गया है।  image credit :https://circuitglobe.com/ सेपेरेटली एक्साइटेड डीसी जनरेटर का कार्य सिद्धांत  बाहरी विधुत ऊर्जा स्रोत(बैटरी , डीसी जनरेटर आदि) से इसके फील्ड वाइंडिंग में एक डीसी विधुत  धारा भेजता है जिससे एक स्थिर चुंबकीय क्षेत्र बनता है। जब आर्मेचर को घुमाया जाता है तब आर्मेचर कंडक्टर इस चुंबकीय क्षेत्र को काटते हैं। विधुत चुम्बकीय प...

कम्यूटेशन , इंटरपोल तथा कम्पेन्सेटिंग वाइंडिंग | RGPV डिप्लोमा सेमेस्टर -3 मशीन -1

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कम्यूटेशन क्या होता है ? कम्यूटेशन का शाब्दिक अर्थ बदलना या रूपान्तरित करना होता है। डीसी जनरेटर में आर्मेचर चुंबकीय क्षेत्र में घूमता है। आर्मेचर चालक चुंबकीय क्षेत्र को काटते है जिससे चालक के सिरों के बीच वोल्टेज (EMF) उत्पन्न हो जाता है। चूँकि आर्मेचर चालक आवर्ती रूप से नार्थ पोल तथा साउथ पोल के बीच घूमते रहते है इसलिए चालक में उत्पन्न विधुत धारा भी आवर्ती रूप से अपनी दिशा बदलती रहती है। अर्थात आर्मेचर में उत्पन्न विधुत धारा DC नहीं AC होती है। AC धारा को डीसी में बदलने की प्रक्रिया कम्यूटेशन कहलाती है।  डीसी जनरेटर में कम्यूटेशन कैसे होता है ?  जब आर्मेचर को चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तब विधुत चुम्बकीय प्रेरण  सिद्धांत के अनुसार आर्मेचर के  कुंडलियों में AC उत्पन्न होती है। यह AC धारा हर आधे घूर्णन के बाद अपनी दिशा बदलती है।  कम्यूटेटर एक तांबे के सिलेंडर पर बने हुए तांबे के खंडों (segments) का एक सेट होता है जो आर्मेचर के शाफ्ट से जुड़ा रहता है। यह आर्मेचर के साथ-साथ घूमता है। कम्यूटेटर के खंडों से कार्बन ब्रश संपर्क करते हैं। ये ब्रश एक स्थिर स्थित...

डीसी`जनरेटरआर्मेचर वाइंडिंग तथा वाइंडिंग प्रकार | RGPV डिप्लोमा - 3 सेमेस्टर Machine -1

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आर्मेचर वाइंडिंग क्या होती है? आर्मेचर वाइंडिंग तांबे या अल्लुमिनियम के तारों से बनी कुंडलियों का जटिल नेटवर्क है जो आर्मेचर कोर पर व्यवस्थित रूप से लपेटी हुई होती हैं। जब  ये कुंडलियां चुंबकीय क्षेत्र में घूमती हैं तब इनमे  विधुत  धारा उत्पन्न होती है। आर्मेचर वाइंडिंग के प्रकार और डिजाइन डीसी जनरेटर की वोल्टेज, धारा और अन्य  दूसरी विशेषताओं पर निर्भर करता है। डीसी मोटर या जनरेटर , दोनों में दो प्रकार से वाइंडिंग की जाती है।  आर्मेचर वाइंडिंग के प्रकार  डीसी मशीन में होने वाली वाइंडिंग को दो वर्गों में बाटा गया है : लैप वाइंडिंग (lap Winding) वेव वाइंडिंग (Wave Winding) कंपाउंड वाइंडिंग (CompoundWinding) लैप वाइंडिंग  लैप वाइंडिंग एक विशेष प्रकार की वाइंडिंग है। इस वाइंडिंग में आर्मेचर के स्लॉट में लगे COIL हुए इस प्रकार से जुड़े होते है जैसे की एक दूसरे के गोद में है। इसलिए इसे लैप वाइंडिंग कहते है। इस वाइंडिंग में पहले कुंडली का अंतिम सिरा और उसके बाद वाले कुंडली का पहला सिरा आपस में जुड़कर कम्यूटेटर से जुड़े हुए होते है। दोनों कुंडली में उत्पन्न वोल्ट...