अर्द्धचालक पदार्थ : इन्ट्रिंसिक तथा एक्सट्रिंसिक्स
आज के तकनीकी युग में सेमीकंडक्टर इंसानी जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुके हैं। कंप्यूटर, स्मार्टफोन, सोलर पैनल जैसे अनगिनत इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण इन्हीं अर्ध्दचालक से बनाये जा रहे है लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये अर्द्धचालक दो तरह के होते हैं जिन्हे न्ट्रिंसिक तथा एक्सट्रिन्सिक अर्द्धचालक कहते है। इस पोस्ट में हम इन्ही दोनों अर्द्धचालक की व्याख्या करने वाले है।इन्ट्रिंसिक सेमीकंडक्टर क्या है ?
इन्ट्रिंसिक सेमीकंडक्टर को हिंदी में स्वयंसंचालक कहते है। ये धरती से प्राप्त शुद्ध अर्द्धचालक होते है। लेकिन इनकी विधुत चालकता बहुत ही कम होती है। जिससे इनमे विधुत धारा को प्रवाहित करने की क्षमता बहुत कम होती है। जैसे ,सिलिकॉन और जर्मेनियम ऐसे ही स्वयंसंचालक अर्द्धचालक हैं। इन पदार्थों में इलेक्ट्रॉन और होल की संख्या लगभग बराबर होती है। इलेक्ट्रॉन पर ऋणात्मक आवेश तथा होल पर धन आवेश होता हैं। सामान्य तापमान पर इन पदार्थों में वैलेंस बैंड और कंडक्शन बैंड के बीच पर्याप्त ऊर्जा अंतर होता है। इस वजह से वैलेंस बैंड में अधिकांश इलेक्ट्रॉन बंधे होते हैं और चालन के लिए स्वतंत्र नहीं होते। वैलेंस बैंड और कंडक्शन बैंड के बीच ज्यादा दुरी होने की वजह से इलेक्ट्रान आसनी से कंडक्शन बैंड में नहीं आ पाते है। जब शुद्ध अर्द्धचालक को गर्म किया जाता है तब कुछ इलेक्ट्रान वैलेंस बैंड से निकलकर कंडक्शन बैंड के तरफ भागने लगते है जिससे अर्द्धचालक की चालकता बढ़ने लगती है।
जैसे एक शुद्ध सिलिकॉन क्रिस्टल को स्वयंसंचालक अर्ध्दचालक का उदाहरण माना जा सकता है। शुद्ध सिलिकॉन में प्रत्येक सिलिकॉन परमाणु चार अन्य सिलिकॉन परमाणुओं के साथ सहसंयोजक बंधन बनाता है। फिर भी सामान्य तापमान पर कुछ बहुत इलेक्ट्रॉन ऊर्जा अवरोध को पार करके वैलेंस बैंड से कंडक्शन बैंड में जाते हैं। जिससे सामान्य तापमान पर सिलिकॉन थोड़ा चालक की तरह कार्य करता है लेकिन इतना भी नहीं करता है की इसे चालक कह सकते है। शुद्ध सिलिकॉन या जर्मेनियम के अंदर स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन्स की संख्या बहुत ही कम होती है। इसलिए इनसे विधुत धारा का चालन आसानी से नहीं होता है।
एक्सट्रिन्सिक सेमीकंडक्टर क्या है ?
यदि हम शुद्ध अर्द्धचालक में मुक्त इलेक्ट्रॉन्स की संख्या बढ़ा दे तो वह भी सामान्य तापमान पर विधुत धारा का अच्छा चालक बन सकता है। शुद्ध अर्द्धचालक के चालकत को बढ़ाने के लिए नियंत्रित तरीके से उसमे चार से अधिक या चार से कम इलेक्ट्रान वाले दूसरे पदार्थ को मिलाया जाता है। शुद्ध अर्द्धचालक में दूसरा पदार्थ मिलाने की प्रक्रिया डोपिंग कहलाती है। डोपिंग के बाद प्राप्त अशुद्ध अर्द्धचालक को एक्सट्रिन्सिक सेमीकंडक्टर कहते है। एक्सट्रिन्सिक सेमीकंडक्टर को हिंदी में दूषित अर्द्धचालक कहते है। एक्सट्रिन्सिक सेमीकंडक्टर दो प्रकार के होते है जैसे
- एन-टाइप (N-type) अर्द्धचालक: जब शुद्ध अर्द्धचालक में पंचसंयोजी तत्व (जैसे फॉस्फोरस या आर्सेनिक) के परमाणु मिलाए जाते हैं। तब इनका चार इलेक्ट्रान अर्द्धचालक के चार इलेक्ट्रान से संयोजन कर बंधन बना लेते है तथा पांचवा इलेक्ट्रान अशुद्ध अर्द्धचालक के क्रिस्टल में मुक्त रूप में उपलब्ध रहता है। इस पांचवे मुक्त इलेक्ट्रान की वजह से अशुद्ध अर्द्धचालक की चालकत बढ़ जाती है। और इस प्रकार से प्राप्त अर्द्धचालक को एन-टाइप अर्द्धचालक कहते है।
- पी-टाइप (P -Type) अर्द्धचालक : जब शुद्ध अर्द्धचालक में त्रिसंयोजी तत्व (जैसे बोरॉन या गैलियम) के परमाणु मिलाए जाते हैं। तब इनका तीन इलेक्ट्रान अर्द्धचालक के तीन इलेक्ट्रान से संयोजन कर बंधन बना लेते है तथा चौथे इलेक्ट्रान लिए जगह खाली रह जाती है। इस खली जगह को होल्स कहते है जो एक आवेश की तरह अशुद्ध अर्द्धचालक के क्रिस्टल में मुक्त रूप में उपलब्ध रहता है। इस होल्स की वजह से अशुद्ध अर्द्धचालक की चालकत बढ़ जाती है। और इस प्रकार से प्राप्त अर्द्धचालक को पी -टाइप अर्द्धचालक कहते है।
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