Tunnel Diode क्या होता है?
Tunnel डायोड एक विशेष प्रकार का PN Junction डायोड होता है जिसे Esaki Diode भी कहा जाता है। यह Tunnel Effect पर कार्य करता है इसलिए इसे Tunnel डायोड कहा जाता है। Tunnel Diode में उपयोग किये जाने वाले PN Junction Heavily Doped होते है।
Tunnel Diode अन्य डायोड के तुलना में बहुत तेजी से कार्य करते है इसलिए इसका उपयोग फ़ास्ट switching वाले विधुत उपकरण (कंप्यूटर ,कैलकुलेटर अदि) में किया जाता है। सामान्य PN Junction डायोड में अशुद्ध पदार्थ (Impurity) की सांद्रता प्रत्येक 108 शुद्ध परमाणु पर एक अशुद्ध पदार्थ का परमाणु होता है।
जबकि Tunnel Diode में अशुद्ध पदार्थ (Impurity) की सांद्रता प्रत्येक 103 शुद्ध परमाणु पर एक अशुद्ध पदार्थ का परमाणु होता है। इतना मजबूत डोपिंग की वजह से Tunnel Diode फॉरवर्ड बायस तथा रिवर्स बायस दोनों मोड़ में कार्य करता है।
Tunnel Diode का Symbol
Tunnel Diode के symbol को नीचे दिखाया गया है। अन्य डायोड की तरह Tunnel डायोड के भी दो टर्मिनल होते है जिसे एनोड तथा कैथोड कहते है। P टाइप पदार्थ से बना हुआ टर्मिनल ऋण आवेशित इलेक्ट्रॉन्स को अपनी तरफ आकर्षित करता है इसलिए इसे एनोड कहा जाता है जबकि N टाइप पदार्थ से बना हुआ टर्मिनल ऋण आवेशित इलेक्ट्रान उत्सर्जित करता है इसलिए इसे कैथोड कहा जाता है।
Tunneling Effect क्या होता है?
कोई आवेशित कण जिसकी गतिज उर्जा किसी Barrier Potential से कम होने के बावजूद जब उस Barrier Potential को भेद कर पार कर जाता है तब इस प्रभाव को Tunneling effect कहा जाता है। इस effect को लियो एसाकी नाम के वैज्ञानिक ने 1958 में खोजा था। उनके इस खोज के लिए 1973 में नोबेल पुरस्कार भी दिया गया।
Tunnel Diode को कैसे बनाया जाता है?
Tunnel diode का निर्माण hevily doped N तथा P टाइप पदार्थ से बनाया जाता है। P टाइप पदार्थ से बने हुए टर्मिनल को एनोड कहा जाता है जबकि N टाइप पदार्थ से बने हुए टर्मिनल को कैथोड कहा जाता है। N टाइप तथा P टाइप पदार्थ के रूप में गैलियम आर्सेनाइड ,जर्मेनियम तथा गैलियम एंटीमोनाइड का प्रयोग किया जाता है।
जर्मेनियम से बनाए गए Tunnel डायोड में ,डायोड से प्रवाहित होने वाली अधिकतम तथा न्यूनतम विधुत धारा का अनुपात ज्यादा होता है इसलिए Tunnel डायोड के निर्माण के लिए सिलिकॉन के बजाये जर्मेनियम का उपयोग किया जाता है। Tunnel डायोड में उपयोग किये गए P तथा N टाइप पदार्थ की doping अन्य साधारण डायोड की तुलना में 1000 गुणा ज्यादा होता है।
Tunnel Diode का कार्य सिद्धांत
Tunnel डायोड का कार्य सिधांत Tunneling प्रभाव निर्भर है। Tunneling अर्द्धचालक पदार्थ में विधुत धारा प्रवाह की घटना है जिसमे आवेश वाहक अपने बीच में पड़ने वाली बाधा (Barrier) जिसे Depletion लेयर कहते है,को लाँघ कर जाने की बजाए उसमे एक सुरंग (Tunnel) बनाकर पार कर जाता है जिससे विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है।
Tunnel Diode कैसे कार्य करता है?
जैसे की हम जानते है की Tunnel diode में प्रयुक्त N तथा P पदार्थ हाइली डोप्ड होते है ,इसी कारन से N तथा P टाइप पदार्थ को आपस में मिलाने पर जो Depletion लेयर बनता है उसकी चौड़ाई बहुत कम होती है। Depletion लेयर की चौड़ाई कम होने की वजह से आवेश वाहक के पास कम उर्जा होने के बाद भी वे depletion लेयर को आसानी से भेद कर पार कर जाते है
Tunnel डायोड के कार्य करने की प्रक्रिया को दो चरण में समझा जा सकता है (1) जब डायोड पर किसी भी प्रकार का वोल्टेज न आरोपित किया गया हो (2) जब डायोड के दोनों टर्मिनल के बीच वोल्टेज आरोपित किया गया हो।
(1) जब डायोड पर किसी भी प्रकार का कोई वोल्टेज आरोपित नहीं किया गया हो
जब डायोड के दोनों टर्मिनल के बीच किसी भी प्रकार का कोई वोल्टेज आरोपित नहीं होता है उस दशा में N क्षेत्र का चालन बैंड (Conduction Band) तथा P क्षेत्र का संयोजी बैंड (Valence Band) एक दुसरे के ऊपर चढ़े हुए (Overlap) होते है जिससे दोनों की उर्जा स्तर सामान होता है। चूँकि Depletion लेयर की चौड़ाई बहुत कम होती है इसलिए वातावरण के तापमान में वृद्धि के कारण कुछ इलेक्ट्रॉन्स N क्षेत्र से निकलकर P क्षेत्र में चले जाते है तथा कुछ होल्स P क्षेत्र से निकलकर N क्षेत्र में चले जाते है। चूँकि P तथा N क्षेत्र में होल्स तथा इलेक्ट्रॉन्स की संख्या सामान होती है इसलिए बिना किसी वोल्टेज पर डायोड से किसी भी प्रकार विधुत धारा प्रवाहित नहीं होता है।
(2) जब डायोड पर वोल्टेज आरोपित किया गया हो
जब डायोड के दोनों टर्मिनल के बीच उसके barrier Potential से कम का वोल्टेज (Forward Voltage) आरोपित किया जाता है तब भी डायोड से विधुत धारा का प्रवाह नहीं होता है लेकिन आरोपित क्षीण वोल्टेज के कारण कुछ इलेक्ट्रान N क्षेत्र के चालन बैंड से निकलकर पतले Depeltion लेयर को पार करते हुए P क्षेत्र के संयोजी बैंड में चले जाते है जिससे डायोड से एक क्षीण करंट का प्रवाह देखने को मिलता है।
जब आरोपित फॉरवर्ड वोल्टेज का मान Barrier Potential से थोडा सा ज्यादा होता है तब डायोड से ज्यादा मात्रा में विधुत धारा प्रवाह होने लगता है क्योकि चालन बैंड तथा संयोजी बैंड एक दुसरे के समांतर हो जाते है। जिससे आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन्स की उर्जा इतनी ज्यादा हो जाती है की वे depletion लेयर को आसानी से सुरंग बनाकर पार कर जाते है। इस दशा में डायोड से प्रवाहित विधुत धारा, आरोपित वोल्टेज (Vp) के एक मान पर अपने शिखर मान(Peak Value) को प्राप्त करता है। जिसे द्वारा Ip सूचित किया जाता है।
आरोपित फॉरवर्ड वोल्टेज का (Vp) से ज्यादा आगे बढाने पर चालन बैंड (Conduction Band) तथा संयोजी बैंड (Valence Band) एक दुसरे पर पुनः चढ़ने (Overlap) लगते है जिससे डायोड से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा का मान कम होने लगता है। प्रवाहित होने वाली विधुत धारा कम होते हुए अपने एक न्यूनतम मान(Minimum Value) को प्राप्त करता है जिसे Valley Current कहा जाता है। Valley Current प्राप्त करने बाद जब दुबारा फॉरवर्ड वोल्टेज को बढाया जाता है तब दुबारा चालन बैंड तथा संयोजी बैंड एक दुसरे के समांतर हो जाते है और इस दशा में डायोड से विधुत धारा का प्रवाह एक सामान्य डायोड की तरह होने लगता है।
Tunnel Diode के लाभ
- अन्य डायोड की तुलना में Tunnel डायोड में विधुत उर्जा की हानि कम होती है।
- यह अन्य डायोड की तुलना में सस्ता होता है।
- अन्य डायोड की तुलना में टनल डायोड का उपयोग करना आसान होता है।
- टनल डायोड High Switching प्रोवाइड करता है।
Tunnel Diode के हानि
- टनल डायोड में आउटपुट वोल्टेज स्विंग करता है।
- चूँकि टनल डायोड दो टर्मिनल वाला इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस है इसलिए इसके इनपुट तथा आउटपुट को अलग से मेन्टेन नहीं किया जा सकता है।
Tunnel Diode के उपयोग
- इसका उपयोग कंप्यूटर में किया जाता है।
- इसका उपयोग Oscillator में किया जाता है।
- इसका उपयोग एम्पलीफायर में किया जाता है।
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