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माइकल फैराडे का विधुत चुंबकीय प्रेरण सिध्दांत की व्याख्या तथा विशेषता - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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फैराडे का विधुत चुंबकीय प्रेरण सिध्दांत  क्या है?

1820 में  ओर्स्टेड ने विधुत धारा के चुम्बकीय प्रभाव का खोज किया। Oersted के इस खोज के बाद फैराडे ने सोचा कि यदि विधुत धारा से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो सकता है तब चुम्बकीय क्षेत्र से विधुत धारा भी उत्पन्न होना चाहिए। अपने इस क्रांति सोच को साबित करने के लिए फैराडे ने एक कुंडली तथा चुंबक के साथ 11 वर्षो तक रिसर्च करते रहे है। इतने लंबे समय तक रिसर्च करने के बाद फैराडे ने चुंबकीय क्षेत्र से विधुत धारा उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त कर लिया। अपने इस रिसर्च के दौरान फैराडे ने देखा की जब कुंडली तथा चुंबकीय क्षेत्र के बीच सापेक्षिक गति होती है तब कुंडली के दोनों सिरों के बीच विधुत वाहक बल (EMF) अर्थात वोल्टेज उत्पन्न होने लगता है। चुंबकीय क्षेत्र के कारण उत्पन्न विधुत वाहक बल के इस घटना को एक सिध्दांत के रूप में प्रतिपादित किया जिसे फैराडे का विधुत चुंबकीय प्रेरण सिध्दांत कहा जाता है। जिस कुंडली में विधुत वाहक बल उत्पन्न होता है उसको जब किसी बाहरी विधुत लोड से जोड़ा जाता है तब उसमे विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है। 

विधुत चुंबकीय प्रेरण सिध्दांत की व्याख्या 

किसी कुंडली में प्रेरित होने वाली विधुत धारा को चुंबकीय बल रेखाओ के आधार पर समझा जा सकता है। जब किसी कुंडली को किसी चुम्बक के ध्रुव के नजदीक लाया जाता है तब उस ध्रुव से निकलने वाली चुंबकीय बल रेखाओ की एक निश्चित संख्या कुंडली से होकर निकलती है। जब कुंडली तथा चुम्बक के बीच आपेक्षिक गति होता है तब कुंडली से होकर गुजरने वाली चुंबकीय बल रेखाओ की संख्या में परिवर्तन होने लगता है। जब कुंडली कुंडली चुम्बक के नजदीक आती है तब उससे गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओ की संख्या में वृध्दि होने लगती तथा इसके विपरीत जब कुंडली चुम्बक से दूर जाती है तब चुम्बकीय बल रेखाओ की संख्या में कमी होने लगती है तब इन दोनों ही स्थितियों में विधुत धारा कुंडली में प्रेरित होती है।  

हम सभी जानते है की दुनिया के सभी पदार्थ में ऋणआवेशित इलेक्ट्रान होते है। कुंडली को जब चुम्बकीय बल रेखाओ के बीच लाया जाता है तब इसके परमणु में उपस्थिति इलेक्ट्रान पर चुम्बकीय क्षेत्र तथा गति के लम्बवत दिशा में एक बल कार्य करने लगता है जिससे ये लोरेन्ज बल कहा जाता है। इस लोरेन्ज बल का परिमाण कुंडली की गति तथा चुम्बकीय क्षेत्र के परिमाण पर निर्भर करता है। इस लोरेन्ज बल के कारण इलेक्ट्रान कुंडली के टर्मिनल पर आकर एकत्रित होने लगते है। चूँकि इलेक्ट्रान ऋण आवेशित होते है इसलिए जिस टर्मिनल पर इलेक्ट्रान एकत्रित होते है उस टर्मिनल का विभव बढ़ने लगता है। जब कुंडली चुम्बक के नजदीक होता है तब इलेक्ट्रॉन्स पर ज्यादा बल लगता है और ज्यादा मात्रा में इलेक्ट्रान एकत्रित हो जाते है जिसके वजह से विभव का परिमाण भी ज्यादा होता है इसके विपरीत जब कुंडली चुम्बक से दूर होती है तब बल कम लगता है और इलेक्ट्रान भी कम मात्रा में एकत्रित होते है और विभव भी कम होता है। 

विधुत चुंबकीय प्रेरण से प्रेरित विधुत वाहक बल की विशेषता 

  • कुंडली में केवल विधुत वाहक बल प्रेरित होता है। 
  • कुंडली में प्रेरित विधुत वाहक बल का परिमाण कुंडली के कुल फेरो की संख्या पर निर्भर करता है। 
  • कुंडली में विधुत वाहक बल तभी प्रेरित होता है जब कुंडली तथा चुम्बक के बीच आपेक्षिक गति होती है। 
  • जब कुंडली को बाहरी विधुत लोड से जोड़ा जाता है तब कुंडली में विधुत धारा प्रवाहित होने लगती है। 
  • जब कुंडली को तेजी से घुमाया जाता है तब प्रेरित विधुत धारा का परिमाण बढ़ने लगता है। 
  • कुंडली से सम्बंधित चुम्बक की शक्ति बढ़ाने पर भी प्रेरित विधुत धारा बढती है। 
  • कुंडली तथा चुंबकीय क्षेत्र के बीच सापेक्षित गति नहीं होने पर विधुत धारा प्रेरित नहीं होती है। 

फैराडे के विधुत चुंबकीय प्रेरण सिध्दांत का गणितीय रूप 

चुम्बक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय बल रेखाए जब कुंडली के सतह से लम्बवत गुजरती है तब चुम्बकीय क्षेत्र तथा कुंडली के गुणनफल को चुंबकीय फ्लक्स कहा जाता है तथा इसे फाई (φ) से सूचित किया जाता है। फैराडे के विधुत चुंबकीय प्रेरण सिध्दांत को निम्न तरीके से परिभाषित किया जाता है 
जब किसी कुंडली से संबंधित चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तब उस कुंडली में विधुत वाहक बल प्रेरित हो जाता है। 

यदि किसी समय अन्तराल △t  में चुम्बकिय फ्लक्स में  कुल परिवर्तन △φ होता है तब प्रेरित विधुत वाहक बल  E को गणितीय रूप में निम्न तरीके से लिखा जा सकता है। 

प्रेरित विधुत वाहक बल
E =\frac{\Delta \phi}{\Delta t }
यदि कुंडली से सम्बंधित फ्लक्स में क्षणिक परिवर्तन होता है तब इसे कैलकुलस के रूप में निम्न तरीके से लिखा जाता है :
E =\frac{d \phi}{d t }

फैराडे के इस विधुत चुम्बकीय प्रेरण सिध्दांत के मदद से ही आज विधुत जनरेटर ,ट्रांसफार्मर तथा विधुत मोटर बनाये जाते है। 

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