विधुत धारा का उष्मीय प्रभाव क्या होता है?
हम अक्सर देखते है की विधुत से संचालित होने वाले विधुतीय उपकरण जैसे विधुत आयरन , विधुत बल्ब आदि गर्म हो जाते है जिसका सीधा सा मतलब है की जब चालक से विधुत धारा का प्रवाह होता है तब ऊष्मा उत्पन्न होती है। विधुत धारा के कारण चालक में इस प्रकार उष्मीय उर्जा उत्पन्न होना विधुत धारा का उष्मीय प्रभाव कहलाता है।
ऊष्मा उत्पन्न होने का कारण
चालक के दोनों छोरो पर वोल्टेज लगाने पर तार में धन सिरे से ऋण सिरे की ओर एक विधुत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जिससे ऋणआवेशित इलेक्ट्रान विधुत क्षेत्र के विपरीत दिशा में भागने लगते है जिससे इनकी गतिज उर्जा बढ़ने लगती है। ये गतिशील इलेक्ट्रान चालक में मौजूद एनी दुसरे परमाणु या धन आयन ,इलेक्ट्रान से टकराकर अपनी उर्जा उन्हें दे देते है। इस उर्जा के कारण धन आयनों का कम्पन बढ़ जाता है। इस प्रकार बार बार इलेक्ट्रान के टकराहट की वजह से धन आयन अनियमित रूप से कम्पन करने लगते है जिससे उनकी गति बढ़ने लगती है। आयनों की यही उर्जा ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है जिससे चालक तार का सतह गर्म होने लगता है। इस प्रकार किसी बैटरी में निहित रासायनिक उर्जा को उष्मीय उर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
विधुत कार्य क्या होता है?
किसी चालक में प्रवाहित होने वाली विधुत ऊर्जा ही उष्मीय उर्जा के रूप में परिवर्तित होती है। जो विधुत ऊर्जा चालक को दी जाती है वह उर्जा चालक के अन्दर धन आयन और इलेक्ट्रान को एक सिरे से दुसरे सिरे के तरफ ले जाने में किये गए कार्य के बराबर होती है। आवेश पर इस प्रकार किये गए कार्य को विधुत कार्य कहते है। अर्थात चालक के अन्दर विधुत धारा को परिपथ में प्रवाहित करने में विधुत श्रोत द्वारा कार्य किया जाता है और यही कार्य ऊष्मा के रूप में प्रकट होता है।
यदि किसी R प्रतिरोध वाले परिपथ में V वोल्ट का वोल्टेज आरोपित करने से चालक से I एम्पीयर की विधुत धारा प्रवाहित होती है तब t सेकंड में चालक से होकर प्रवाहित होने वाले कुल आवेश Q को निम्न तरीके से ज्ञात किया जा सकता है :-
हम जानते है कि V वोल्टेज में किसी आवेश को प्रवाहित करने में किये गए कार्य W को निम्न तरीके से ज्ञात किया जाता है :-
ऊपर दिए गए समीकरण में Q के मान को रखने पर
ओम के नियम से जानते है की
चूँकि आवेश पर किया गया कार्य ही उष्मीय उर्जा के रूप मे व्यक्त होता है इसलिए उष्मीय उर्जा को H से निरुपित किया जाए तब इसे निम्न तरीके से लिखा जा सकता है
इस सूत्र से ज्ञात ऊष्मा की मात्रा जूल में प्राप्त होती है लेकिन ऊष्मा का व्यहारिक मात्रक कैलोरी होता है। इसलिए जूल में प्राप्त उष्मीय उर्जा को 4.186 से भाग देकर कैलोरी में बदला जा सकता है।
विधुत शक्ति क्या होता है?
किसी विधुत परिपथ में उर्जा व्यय या कार्य होने की दर को विधुत शक्ति (Electric power) कहा जाता है। यदि किसी विधुत परिपथ में t सेकंड में W जूल कार्य किया गया है तो परिपथ से संबंधित विधुत शक्ति को निम्न तरीके से व्यक्त किया जा सकता है :-
यदि इस फार्मूला में उपर दिए गए सूत्र से W का मान रखा जाए तब यह कुछ ऐसा होगा
या
विधुत शक्ति का SI मात्रक वाट होता है जिसे W से सूचित किया जाता है।
विधुत उपकरण में व्यय होने वाली विधुत उर्जा (Energy Co nsumed In Electrical Circuit)
प्रायः हम देखते है की विधुत उपकरण पर उसकी शक्ति तथा वोल्टेज लिखे हुए होते है। यदि किसी विधुत बल्ब पर 230 V तथा 100 W लिखा हो तो इसका मतलब यह है की यह विधुत बल्ब 230 वोल्ट वोल्टेज पर उपयोग होने के लिए बनाया गया है और जब इसे 230 वोल्ट वोल्टेज पर उपयोग किया जायेगा तब इसमें शक्ति व्यय 100 वाट अर्थात 100 जूल उर्जा प्रति सेकंड व्यय होगी। यदि हम इस विधुत बल्ब का प्रतिरोध ज्ञात करना चाहे तो इसे उपर दिए गए सूत्र के मदद से निम्न प्रकार से ज्ञात कर सकते है :
इस समीकरण के मदद से किसी नियत शक्ति वाले विधुत बल्ब में प्रवाहित होने वाली विधुत धारा तथा वोल्टेज के बीच संबंध स्थापित कर सकते है।
इस समीकरण से यह स्पष्ट है की विधुत उपकरण में व्यय शक्ति उसके प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती होती है। ए०सी पर कार्य करने वाले सभी विधुत उपकरण सामान वोल्टेज पर कार्य करने के लिए बनाये जाते है अतः सभी उपकरणों पर सामान वोल्टेज लगाने के लिए ऊन्हे समान्तर क्रम में जोड़ा जाता है। स्पष्ट है की उनमे बहने वाली विधुत धारा उनकी शक्ति के अनुक्रमानुपती होती है इसलिए समान्तर क्रम में अधिक शक्ति का बल्ब अधिक प्रकाश तथा कम शक्ति का बल्ब कम प्रकाश उत्पन्न करता है। इसके विपरीत सभी बल्ब को श्रेणी क्रम में जोड़ दिया जाए तो कम शक्ति वाला बल्ब अधिक शक्ति वाले विधुत बल्ब की तुलना में अधिक प्रकाश उत्पन्न करता है।
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