पॉवर फैक्टर क्या होता है?
जब किसी electrical circuit में कोई DC करंट प्रवाहीत की जाती है तब इस सर्किट में वोल्टेज तथा करंट एक ही फेज में होते है। अगर सरल भाषा में बोले तो करंट तथा वोल्टेज एक साथ होते है। जब वोल्टेज तथा करंट एक ही फेज में होते है तब सर्किट में किसी भी प्रकार की आवाज़ (kocking) नहीं होती है और सर्किट से जुड़े लोड द्वारा इलेक्ट्रिकल पॉवर का maximum उपयोग (utilization) होता है। पॉवर फैक्ट को Real Power तथा Apparent Power के अनुपात से परिभाषित किया जाता है जैसे
जब सर्किट में Capacitor या Inductor लगा हो और इस सर्किट को किसी AC वोल्टेज source से जोड़ा जाता है तब इस इलेक्ट्रिकल सर्किट में लगाया गया वोल्टेज तथा करंट एक फेज में न होकर आउट ऑफ़ फेज हो जाते है। करंट और वोल्टेज जितने कोण से आउट ऑफ़ फेज होते है ,उस कोण के Cosine का Numerical Value को ही सर्किट का पॉवर फैक्टर कहते है।
Explanation of Power Factor
किसी भी इलेक्ट्रिकल सर्किट के पॉवर फैक्टर से मालूम होता है की यह सर्किट विधुत श्रोत से लिए गए कुल इलेक्ट्रिक पावर का कितना हिस्सा Useful Work में परिवर्तित करेगा। जिस इलेक्ट्रिकल सर्किट का Power factor जितना अधिक वह सर्किट उतना ही ज्यादा इलेक्ट्रिकल एनर्जी का बढ़िया उपयोग करता है और उस सर्किट में बहुत ही कम आवाज़ (Knocking) होता है। पॉवर फैक्टर दो शब्द से मिलकर बना हुआ है पॉवर तथा फैक्टर। यहाँ फैक्टर का अर्थ उपयोग वाला भाग होता है। अर्थात इलेक्ट्रिकल डिवाइस या मशीन को दी जाने वाली कुल विधुत उर्जा का कितना भाग Useful कार्य में बदलेगा। जिस मशीन का पॉवर फैक्टर जितना ही अधिक होता है वह मशीन उतनी ज्यदा अच्छी होती है क्योकि वह ज्यादा मात्रा में विधुत ऊर्जा को Useful कार्य में बदलती है। उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी सर्किट या इलेक्ट्रिकल मशीन या किसी अन्य इलेक्ट्रिकल डिवाइस का पावर फैक्टर 0.9 है और इस लोड को किसी बाह्य विधुत ऊर्जा श्रोत से 100 वाट पावर दिया गया तो यह लोड कुल दिए गए पावर का 90 वाट ही Useful Work में बदल पायेगा। अतिरिक्त 10 वाट को विधुत उर्जा श्रोत को वापस कर देगा। अर्थात 100 X 0.9 = 90
किसी भी electrical Circuit या Electrical मशीन का Power Factor Maximum कब और कितना हो सकता है ?
किसी भी इलेक्ट्रिकल सर्किट या मशीन के लिए Power Factor का मान उस सर्किट या मशीन में प्रवाहीत होने वाली विधुत धारा तथा वोल्टेज के बीच के कोण के Cosine के Numerical Value के बराबर होता है अर्थात इसे निम्न फार्मूला द्वारा दिखाया जाता है
Power Factor = CosΦ
जहाँ
Φ = वोल्टेज तथा करंट के बीच का कोण है।
फार्मूला से ज्ञात होता है की CosΦ का अधिकतम मान ही ,अधिकतम Power Factor होगा और CosΦ का अधिकतम मान 1 होता है। इसका मतलब यह हुआ की किसी भी सर्किट या विधुत मशीन का अधिकतम पॉवर फैक्टर 1 हो सकता है। trigonometry से हम जानते है की Cos शून्य डिग्री का मान एक होता है अर्थात (Cos0 = 1) यानि कोण Φ = 0 डिग्री।
अर्थात किसी भी सर्किट में Power Factor का मान (Value) अधिकतम होने के लिए वोल्टेज तथा करंट के बीच के कोण को न्यूनतम (minimum) होना चाहिए। जिसका मतलब यह हुआ की वोल्टेज तथा विधुत धारा (Current) को एक ही फेज में होना चाहिए।
पॉवर फैक्टर कितने प्रकार के होते है ?
पॉवर फैक्टर को तीन मुख्य वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। ये तीन प्रकार के पॉवर फैक्टर निम्न है :-
- यूनिट पॉवर फैक्टर (Unit Power Factor)
- लीडिंग पॉवर फैक्टर(Leading Power Factor)
- लैगिंग पॉवर फैक्टर (laggiing Power Factor)
यूनिट पॉवर फैक्टर क्या होता है?
जैसे नाम से ज्ञात होता की जब किसी मशीन या विधुत परिपथ का पॉवर फैक्टर एक होता है तब उसे यूनिट पॉवर फैक्टर कहते है। पॉवर फैक्टर एक होने का मतलब यह हुआ की जितनी मात्रा में विधुत उर्जा परिपथ या विधुत मशीन को दिया जाता है वह सभी Useful कार्य में परिवर्तित होता है। यूनिट पॉवर फैक्टर होने का मतलब यह हुआ की परिपथ से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा तथा वोल्टेज के बीच फेज अंतर शून्य है अर्थात दोनों एक साथ फ्लो हो रहे है। जब विधुत परिपथ में केवल Resistive लोड जुड़ा रहता है तब उस परिपथ का पॉवर फैक्टर एक होता है।
लीडिंग पॉवर फैक्टर क्या होता है?
लीडिंग का मतलब होता है आगे निकलना। विधुत परिपथ में जब विधुत धारा आरोपित वोल्टेज से आगे निकल जाता है तब परिपथ या मशीन के पॉवर फैक्टर को लीडिंग पॉवर फैक्टर कहा जाता है। इसका आंकिक मान -1 से 0 के बीच बदलता रहता है। विधुत परिपथ में लीडिंग पॉवर फैक्टर होने का मुख्य वजह Capacitive लोड होता है। कैपासिटर किसी भी परिपथ में वोल्टेज को ब्लॉक करता है जिससे वोल्टेज विधुत धारा (Current) से पिछड़ जाता है। इस प्रकार वोल्टेज तथा करंट में फेज अंतर (Phase Difference) उत्पन्न हो जाता है। वोल्टेज तथा करंट में उत्पन्न इस फेज अंतर का Cos वैल्यू ही लीडिंग पॉवर फैक्टर कहलाता है।
लैगिंग पॉवर फैक्टर क्या होता है?
लैगिंग का मतलब होता है पिछड़ जाना। विधुत परिपथ में जब विधुत धारा वोल्टेज से पिछड़ जाता है तब विधुत परिपथ के पॉवर फैक्टर को लैगिंग पॉवर फैक्टर कहते है। इसका आंकिक मान 0 से 1 के बीच बदलता रहता है। लैगिंग पॉवर फैक्टर के दशा में आरोपित वोल्टेज करंट से आगे रहता है। विधुत परिपथ में लैगिंग पॉवर फैक्टर होने का मुख्य वजह Inductive लोड होता है। Inductive लोड किसी भी परिपथ में करंट को ब्लॉक करता है जिससे वोल्टेज विधुत धारा (Current) से आगे निकल जाता है। इस प्रकार वोल्टेज तथा करंट में फेज अंतर (Phase Difference) उत्पन्न हो जाता है। वोल्टेज तथा करंट में उत्पन्न इस फेज अंतर का Cos वैल्यू ही लीडिंग पॉवर फैक्टर कहलाता है।
लो पॉवर फैक्टर के क्या हानि है?
विधुत परिपथ के पॉवर फैक्टर लो होने से निम्न प्रकार के हानि होती है :-
- विधुत परिपथ के पॉवर फैक्टर लो होने की वजह से परिपथ से जुड़े विधुत उपकरण ज्यादा विधुत धारा श्रोत से लेते है जिससे मोटे चालक को परिपथ में जोड़ना पड़ता है।
- लो पॉवर फैक्टर पर प्रवाहित विधुत धारा का मान उच्च होता है जिससे चालक में विधुत उर्जा का ह्रास ज्यादा होता है जिससे परिपथ की Efficiency कम हो जाती है।
- विधुत धारा ज्यादा होने की वजह से सर्किट में ज्यादा वोल्टेज ड्राप होता है जिससे टर्मिनल वोल्टेज कम हो जाता है।
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