अतिचालकता क्या है?
यदि किसी पदार्थ की चालकताअनंत हो जाए तब इस पदार्थ को अतिचालक कहा जायेगा और इसके गुण को अतिचालकत कहते है। अतिचालकता प्रदर्शित करने वाले पदार्थ का आंतरिक प्रतिरोध शून्य होता है लेकिन वास्तव में अभी तक ऐसा कोई पदार्थ नहीं पाया गया है जिसकी आन्तरिक प्रतिरोधकता शून्य होती है लेकिन कुछ ऐसे पदार्थ पाए गए है जिनकी प्रतिरोधकता तापमान कम करने पर असामान्य रूप से घटती है तथा एक विशेष तापमान आने पर आचानक शून्य हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ की इस तापमान पर पदार्थ की चालकता अनंत हो जाती है। जिस तापमान पर पदार्थ की चालकता अनंत हो जाती है उस तापमान को क्रांतिक ताप कहते है। अतिचालकता की घटना सामान्यतः बहुत ही कम तापमान पर देखने को मिलता है। अतिचालकता को निम्न तरीके से परिभाषित किया जा सकता है :-
कम ताप पर किसी पदार्थ की प्रतिरोधकता के शून्य हो जाने की घटना अतिचालकता कहलाती है। इसे अंग्रेजी में Super-Conductivity कहा जाता है।
अति-चालकता की खोज किसने किया?
सर्वप्रथम नीदरलैंड के भौतिक वैज्ञानिक केमरलिंग ओन्नेस ने सन 1911 में अतिचालकता की खोज किया था। जिन पदार्थो में अतिचालकता का गुण होता है उसे अति-चालक पदार्थ कहा जाता है। प्रयोगों द्वारा यह देखा गया है की 4.2 केल्विन ताप पर पारे की प्रतिरोधकता ,2.19 केल्विन ताप पर हीलियम की प्रतिरोधकता तथा 3.72 ताप पर टिन की प्रतिरोधकता शून्य हो जाती है।
अति-चालकता के कारण क्या है?
जैसे हमने ऊपर देखा की जैसे जैसे किसी पदार्थ के चारो तरफ का तापमान कम किया जाता है वैसे वैसे उस पदार्थ का आंतरिक प्रतिरोध कम होने लगता है और क्रांतिक तापमान पर प्रतिरोध शून्य हो जाता है। अर्थात किसी पदार्थ में प्रतिरोध का शून्य हो जाना ही अतिचालकता है। अर्थात अतिचालकता को आसानी से समझने के लिए प्रतिरोध को समझना बहुत ही जरुरी है। किसी पदार्थ का वह गुण जो आवेश प्रवाह का विरोध करे उसे ही प्रतिरोध कहते है। हम सभी जानते है की ठोस पदार्थ परमाणुओं के परस्पर आपस में जुड़े होने की वजह से निर्मित होते है। परमाणुओं के इस प्रकार से आपस में जुडी हुई व्यवस्था को जालक कहते है। जालक को अंग्रेजी में Lattice कहा जाता है। इस लैटिस के बाहर मजूद इलेक्ट्रान की वजह से विधुत धारा का प्रवाह ठोस पदार्थ से होता है। जब तक ये इलेक्ट्रान रैखिक गति करते है तब तक चालक से विधुत धारा का प्रवाह आसानी से होता रहता है लेकिन जब किसी बाहरी कारण से ये इलेक्ट्रॉन्स विखर जाते है तब विधुत धारा के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होने लगता है जिसे प्रतिरोध कहा जाता है। किसी विशेष पदार्थ के लिए इलेक्ट्रान एक निश्चित तापमान पर रैखिक गति करते है जिसे क्रांतिक ताप कहा जाता है।
जब किसी पदार्थ का आंतरिक प्रतिरोध शून्य हो जाता है तब लैटिस में मौजूद दो इलेक्ट्रॉन्स पर एक क्आषीण आकर्पषण बल कार्सय करने लगता है जिससे ये आपस में जुड़कर इलेक्ट्रान पेयर बनाते है जिसे कूपर पेयर कहा जाता है। क्रांतिक ताप के निचे तापमान पर ये इलेक्ट्रान पेयर बिना किसी टक्कर के आसानी से गति करते है जिससे विधुत धारा का प्रवाह आसानी से होता है। चूँकि ये इलेक्ट्रान पेयर किसी दुसरे अणु या लैटिस से टकराते नहीं है इसलिए किसी भी प्रकार के विधुत उर्जा की हानि नहीं होती है। अतिचालकता के घटना को पूर्णरूप से अभी तक व्याख्या नहीं की जा सकी है।
अतिचालक की विशेषता क्या है ?
अतिचालक पर चुंबकीय क्षेत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। किसी बाहरी चुंबक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र ,अतिचालक से दूर भागने की कोशिश करता है। अतिचालक के इस प्रभाव को माइजनर प्रभाव कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जब दो अतिचालक के बीच में किसी कुचालक पदार्थ को रखा जाता है तब उस कुचालक पदार्थ से विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है। अतिचालक के वजह से कुचालक में विधुत धारा प्रवाह के इस घटना को जोसेफसन प्रभाव कहा जाता है।
अतिचालक का उपयोग क्या है ?
ऐसा कोई विधुत परिपथ जो अतिचालक से बनाया गया हो उसमे एक बार किसी विधुत श्रोत से विधुत धारा प्रवाही कर दी जाए तब विधुत श्रोत को परिपथ से हटा लेने के बाद भी उस परिपथ में विधुत धारा का प्रवाह बहुत समय तक प्रवाहित होता रहेगा। अतिचालक के मदद से बिना विधुत ऊर्जा क्षय के ही विधुत उर्जा को एक स्थान से दुसरे स्थान तक ले जाया सकता है। अतिचालक के मदद से सुपर कंप्यूटर तथा उच्च शक्ति वाले विधुत चुंबक का निर्माण किया जा सकता है।
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