सिंगल फेज ट्रांसफार्मर क्या होता है?
ट्रांसफार्मर एक ऐसा इलेक्ट्रिकल मशीन होता है जो प्रत्यावर्ती विधुत धारा (AC Voltage) के वोल्टेज को एक लेवल से दुसरे लेवल में परवर्तित करता है। ट्रांसफार्मर द्वारा प्रत्यावर्ती विधुत धारा के आवृति (फ्रीक्वेंसी) में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है।यह केवल वोल्टेज को ही बदलता है। या तो यह लो वोल्टेज को हाई वोल्टेज में बदलता है या हाई वोल्टेज को लो वोल्टेज में।जब ट्रांसफार्मर सिंगल फेज AC वोल्टेज पर कार्य करता है तब इसे सिंगल फेज ट्रांसफार्मर कहते है। इसके विपरीत यदि ट्रांसफार्मर थ्री फेज पॉवर सप्लाई पर कार्य करता है तब उसे थ्री फेज ट्रांसफार्मर कहते है।
ट्रांसफार्मर का कार्य सिधांत
किसी भी प्रकार का ट्रांसफार्मर फैराडे के म्यूच्यूअल इंडक्शन सिधांत पर कार्य करता है। म्यूच्यूअल इंडक्शन सिधांत के अनुसार यदि किसी चालक तथा चुम्बकीय क्षेत्र के बीच सापेक्षिक गति रहे तब चालक के दोनों सिरों के बीच एक EMF (वोल्टेज) उत्पन्न हो जाता है।
सिंगल फेज ट्रांसफार्मर की संरचना
सिंगल फेज ट्रांसफार्मर में दो कोईल (Coil) होती है जो एक चुम्बकीय कोर पर लपेटी गयी होती है। इनमे से एक को प्राइमरी तथा दूसरे को सेकेंडरी Coil कहा जाता है। सिंगल फेज ट्रांसफार्मर में मैग्नेटिक कोर चुम्बकीय फ्लक्स के लिए रास्ता बनाता है। ट्रांसफार्मर के चुम्बकीय कोर के निर्माण के लिए उच्च किस्म के पतले सिलिकॉन के चादर का प्रयोग किया जाता है।
संरचना के आधार पर ट्रांसफार्मर को मुख्य रूप से दो भाग में विभाजित किया जाता है :-
ट्रांसफार्मर का कोर टाइप संरचना (Construction)
कोर टाइप ट्रांसफार्मर में ,चुम्बकीय पथ दो उर्ध्वाधर (vertical) तथा दो क्षैतिज (Horizontal) लिम्बस जिसे Yokes कहते है को आपस में जोड़ कर बनाया जाता है। ट्रांसफार्मर में लीकेज फ्लक्स (Leakage Flux) को कम करने के लिए वाइंडिंग के आधे आधे भाग को कोर के दोनों लिम्बस पर सेट किया जाता है। ट्रांसफार्मर में उपयोग होने वाले इंसुलेटिंग मटेरियल को कम करने के लिए लो वोल्टेज वाइंडिंग को चुम्बकीय कोर के बगल में तथा हाई वोल्टेज वाइंडिंग को इसके चारो तरफ लपेटा जाता है। कोर टाइप ट्रांसफार्मर में इस प्रकार रखे गए प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग एक सकेंद्रिय Coil का निर्माण करते है इसलिए इसे सकेंद्रिय वाइंडिंग भी कहा जाता है। कोर टाइप ट्रांसफार्मर को निचे के चित्र में दिखाया गया है।
शेल टाइप ट्रांसफार्मर का संरचना
शेल टाइप ट्रांसफार्मर में दोनों प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग को एक ही बीच वाले लिम्बस पर लपेट दिया जाता है तथा अन्य लिंब बाहर से एक चुम्बकीय फ्लक्स के लिए कम प्रतिरोध का रास्ता बनाते है। लीकेज फ्लक्स को कम करने के लिए प्राइमरी वाइंडिंग को सबसे पहले बीच वाले लिंब पर चढाते है इसके ऊपर सेकेंडरी वाइंडिंग चढ़ाया जाता है जिससे प्राइमरी में उत्पन्न होने वाले अधिकतम चुंबकीय फ्लक्स सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक हो पाता है। जैसा की नीचे के चित्र में दिखाया गया है।
सिंगल फेज ट्रांसफार्मर कैसे कार्य करता है ?
सिंगल फेज ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग को जब किसी प्रत्यावर्ती विधुत धारा के श्रोत से जोड़ा जाता है तब इसमें विधुत धारा के चुम्बकीय प्रभाव के कारण एक प्रत्यावर्ती प्रकृति का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यह चुम्बकीय क्षेत्र कोरे के क्षेत्रफल से लिंक होकर एक भौतिक राशी का निर्माण करता है जिसे चुंबकीय फ्लक्स कहते है। यह चुंबकीय फ्लक्स जब ट्रांसफार्मर के कोरे से होते हुए सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक होता है। तब फैराडे के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन सिद्धांत के अनुसार सेकेंडरी वाइंडिंग में एक EMF उत्पन्न हो जाता है। जब सेकेंडरी वाइंडिंग को किसी लोड से जोड़ा जाता है तब उसमे एक विधुत धारा प्रवाहित होने लगता है।
ट्रांसफार्मर EMF समीकरण क्या होता है ?
ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग में आरोपित प्रत्यावर्ती विधुत धारा के कारण सेकेंडरी वाइंडिंग में उत्पन्न विधुत धारा को एक समीकरण द्वारा दिखाया जाता है। इसी समीकरण को ट्रांसफार्मर का EMF समीकरण कहा जाता है। ट्रांसफार्मर का EMF समीकरण प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग के कुल लपेटो (Turns) संख्या र निर्भर करता है। इसे निम्न तरीके से दिखाया जाता है :-
V1= प्राइमरी वाइंडिंग में आरोपित वोल्टेज
V2 = सेकेंडरी वाइंडिंग में उत्पन्न वोल्टेज
N1= प्राइमरी वाइंडिंग में कुल टर्न संख्या
N2= सेकेंडरी वाइंडिंग में कुल टर्न संख्या
सिंगल फेज ट्रांसफार्मर का उपयोग
- टीवी सेट में वोल्टेज रेगुलेटर के रूप में
- कम वोल्टेज पर कार्य करने वाले विधुत यन्त्र में
- घरेलु उपयोग वाले इन्वर्टर में
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