रेक्टीफायर क्या होता है?
Rectifier विशेष प्रकार का विधुत सर्किट होता है जिसका उपयोग ए०सी विधुत धारा को डीसी विधुत धारा में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है। यह Switching डिवाइस जैसे डायोड या थायरिस्टर तथा विधुत वायर की मदद से बनाया जाता है। जहा भी डीसी विधुत धारा की जरुरत होती है उस स्थान पर ए०सी को डीसी में बदलने के लिए Rectifier का उपयोग किया जाता है।
Rectifier कितने प्रकार के होते है?
Rectifier से प्राप्त डीसी आउटपुट के Controlling के आधार पर इसे मुख्य दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है :
- अन कंट्रोल्ड रेक्टीफायर (Uncontrolled Rectifier)
- कंट्रोल्ड रेक्टीफायर (Controlled Rectifier)
इसके अतिरिक्त रेक्टीफायर को उसको दी जाने वाली ए०सी वोल्टेज के फेज के अनुसार दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।यदि रेक्टीफायर को सिंगल फेज इनपुट दिया जाता है तब उसे सिंगल फेज ब्रिज रेक्टीफायर कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जब इनपुट में थ्री फेज दिया जाता है तब उसे थ्री फेज ब्रिज रेक्टीफायर कहा जाता है।
Uncontrolled रेक्टीफायर क्या होता है?
वैसा ब्रिज रेक्टीफायर जिसके आउटपुट वोल्टेज को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है उसे Uncontrolled Bridge Rectifier कहा जाता है। यह थ्री फेज तथा सिंगल फेज दोनों प्रकार के ए०सी वोल्टेज में उपयोग किया जाता है। रेक्टीफायर में ए०सी को डीसी में बदलने के लिए Switching डिवाइस जैसे डायोड ,थायरिश्टर (thyristor) आदि का उपयोग किया जाता है।
चूँकि डायोड एक बिना नियंत्रण वाला इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस होता है जो फॉरवर्ड बायस के कंडीशन में विधुत धारा को प्रवाहित होने देता है। जब इसके टर्मिनल को रिवर्स बायस किया जाता है तब इससे विधुत धारा का प्रवाह नहीं होता है। इसके विपरीत थायरिस्टर एक कंट्रोल्ड डिवाइस होता है जो गेट पल्स मिलने पर ही विधुत धारा को प्रवाहित होने देता है।
इससे यह निष्कर्ष निकलता है की यदि आउटपुट वोल्टेज को कंट्रोल करना है तब रेक्टीफायर में Thyristor का उपयोग करना होगा तथा इसके विपरीत आउटपुट वोल्टेज को कंट्रोल्ड नहीं करना है तब रेक्टिफायर में डायोड का उपयोग करना होगा।
Rectification के आधार पर Uncontrolled रेक्टिफायर को पुनः दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
- हाफ वेव रेक्टिफायर (half Wave Rectifier)
- फुल वेव रेक्टिफायर (Full Wave Rectifier)
हाफ वेव रेक्टिफायर क्या होता है?
वैसा रेक्टिफायर जो ए०सी विधुत धारा के आधे Cycle को डीसी विधुत धारा में परिवर्तित करता है उसे हाफ वेव रेक्टिफायर कहा जाता है। इस रेक्टिफायर में एक डायोड का उपयोग किया जाता है। ए०सी विधुत धारा के आधे cycle में डायोड फॉरवर्ड बायस होता है और विधुत धारा को प्रवाहित होने देता है। और जब यह अगले आधे cycle में रिवर्स बायस हो जाता है तब विधुत धारा के प्रवाह को ब्लाक कर देता है। जैसे की निचे के चित्र में दिखाया गया है।
सिंगल फेज हाफ वेव रेसिफायर विधुत सर्किट
इस प्रकार से प्राप्त आउटपुट में DC वोल्टेज या Current पूर्ण रूप से डीसी नहीं होता है। इसलिए इसका उपयोग सीधे तौर पर डीसी के लिए नहीं किया जाता है। इस प्रकार के सर्किट से प्राप्त आउटपुट में बहुत ही ज्यादा मात्रा में रिप्पल मौजूद रहता है इसलिए इस रिप्पल को दूर करने के लिए लोड के समांतर में एक कैपासिटर को जोड़ दिया जाता है।
जैसे की ऊपर के विधुत सर्किट में दिखाया गया है। लोड के समांतर क्रम में जोड़ा गया कैपासिटर C लोड के दोनों टर्मिनल के बीच मौजूद वोल्टेज के परिमाण को नियत बनाये रखता है। समांतर क्रम में कैपासिटर इसलिए जोड़ा जाता है क्योकि यह वोल्टेज में अचानक हुए बदलाव का विरोध करता है। इस सर्किट से प्राप्त होने वाली आउटपुट वोल्टेज के परिमाण को निचे दिए फार्मूला से ज्ञात किया जाता है
फुल वेव रेक्टिफायर क्या होता है?
वैसा रेक्टिफायर जो ए०सी विधुत वोल्टेज के पुरे चक्र (Cycle) को डीसी वोल्टेज में परिवर्तित करता है उसे फुल वेव रेक्टिफायर कहा जाता है। इसमें चार एक ही प्रकार के डायोड का उपयोग किया जाता है। इन चारो डायोड को एक चतुर्भुज के आकार में आपस में जोड़ दिया जाता है। जैसे की निचे के चित्र में दिखाया गया है।
फुल वेव रेक्टिफायर कैसे कार्य करता है?
जब ब्रिज रेक्टिफायर को ए०सी विधुत धारा दिया जाता है तब आधे चक्र के लिए टर्मिनल A धनात्मक तथा टर्मिनल B ऋणात्मक वोल्टेज पर होता है . इस समय डायोड D2 तथा D4फॉरवर्ड बायस हो जाता है जिससे विधुत धारा डायोड D2से होते हुए लोड में प्रवेश करती है तत्पश्चात लोड से निकलकर बिंदु C से होकर डायोडD4 से होते हुए पुनः ए०सी विधुत श्रोत में चली जाती है और विधुत परिपथ पूरा हो जाता है .
इसके विपरीत जब ब्रिज रेक्टिफायर को ए०सी विधुत धारा दिया जाता है तब अगले आधे चक्र के लिए टर्मिनल A ऋणात्मक तथा टर्मिनल B धनात्मक वोल्टेज पर होता है . इस समय डायोड D3 तथा D1 फॉरवर्ड बायस हो जाता है जिससे विधुत धारा डायोड D3से होते हुए लोड में प्रवेश करती है तत्पश्चात लोड से निकलकर बिंदु C से होकर डायोडD1 से होते हुए पुनः ए०सी विधुत श्रोत में चली जाती है और विधुत परिपथ पूरा हो जाता है . इस प्रकार पुरे चक्र के दौरान विधुत लोड से विधुत धारा एक ही दिशा में प्रवाहित होता रहता है .
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