इंडक्टर क्या होता है?
इलेक्ट्रॉनिक्स तथा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में Inductor तथा इससे संबंधित शब्द Inductance, पढ़ने को बहुत ही ज्यादा मिलता है। यह एक प्रकार का Passive इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स होता है। लोगो को Inductor को समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है क्योकि इससे Magnetic Field के साथ Electric Field भी उत्पन्न करता है।
यदि आप इलेक्ट्रॉनिक्स या इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से संबंधित कोई कार्य करते है तब आपको भी Inductor सर्किट में देखने को बहुत ही ज्यादा मिलता होगा। यदि आप Inductor तथा Inductance के बारे में पहले से ही जानते है तब बढ़िया है। यदि नहीं जानते है तो अपनी जानकारी में वृद्धि के लिए हमारे इस लेख को अंत तक पढ़िए।
What is Inductor? | Inductor Definition
Inductor एक प्रकार का Passive Electronics कंपोनेंट्स होता है। यह अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स के सामान ही एक साधारण सा इलेक्ट्रॉनिक्स कॉम्पोनेन्ट है। Inductor कपैसिटर की तरह ही Electrical Energy Storing डिवाइस होता है। यह विद्दुत ऊर्जा का संचयन (Storage) चुंबकीय क्षेत्र के रूप में करता है।
जब किसी वायर को आपस में मोड़कर एक गोलाकार आकार दे दिया जाता है और इसके दोनों अंतिम सिरों के बीच एक विभवांतर (Potential Difference) को आरोपित किया जाता है तब इसमें विधुत धारा के प्रवाह होने की वजह से इसके चारों तरफ एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार बने electrical Components को Inductor कहा जाता है। Inductor में इस प्रकार चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की गुण को Inducatnce कहते है।
Difference Between Inductor and Capacitor In Hindi
हमने अपने कपैसिटर वाले पोस्ट में ,कपैसिटर से संबंधित जानकरी को देखा था। आज के इस में इंडक्टर तथा कपैसिटर के बीच क्या अंतर होता है। इसको जानते है।
कपैसिटर तथा इंडक्टर दोनों विधुत ऊर्जा का संचयन करते है। लेकिन दोनों में ऊर्जा संचयन अलग अलग तरीके से होता है। कपैसिटर के दोनों टर्मिनल के बीच Voltage आरोपित किया जाता है तब कपैसिटर के दोनों प्लेट के बीच एक विधुत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जिससे विधुत ऊर्जा का संचयन होने लगता है।
जबकि इंडक्टर को किसी सर्किट में जोड़ा जाता है तब इसमें से होकर विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है और इस विधुत धारा के कारण इंडक्टर में एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है और इस चुंबकीय क्षेत्र के कारण इंडक्टर में विधुत धारा का संचयन होने लगता है।
कपैसिटर किसी भी विधुत सर्किट में अचानक हुए वोल्टेज परिवर्तन को रोकता है और किसी कारण से Voltage कम हो जाता है तब अपने अंदर Store किए गए विधुत ऊर्जा से Voltage को Circuit में मेन्टेन करता है। अर्थात कपैसिटर विधुत सर्किट में एक Voltage Source की तरह कार्य करता है।
कपैसिटर के विपरीत Inductor किसी विधुत सर्किट में अचानक हुए विधुत धारा प्रवाह को रोकता है। यदि किसी कारण विधुत सर्किट में प्रवाहीत विधुत में कमी आ जाती है तब इंडक्टर अपने अंदर Store किय गए विधुत ऊर्जा से इस प्रकार उत्पन्न हुए विधुत धारा के कमी को पूरा करता है। अर्थात इंडक्टर विधुत सर्किट में एक Current Source की तरह कार्य करता है।
Working of Inductor In Hindi
हम विधुत धारा के चुंबकीय प्रभाव के बारे पहले से ही जानते है। इसके अनुसार जब किसी भी चालक से विधुत धारा का प्रवाह होता चालक के चारो तरफ एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। लेकिन जब हम अपने घर में लगे वायर से प्रवाहीत विधुत धारा तथा वायर के नजदीक किसी नाल चुम्बक को ले जाते है तब उसमे किसी भी प्रकार का डिफ्लेक्शन नहीं होता है। तब हमें लगता है की विधुत धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न नहीं होता है। लेकिन यह सही नहीं है।
हमारे घर में लगे वायर प्रवाहीत विधुत धारा के काऱण जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है उसका परिमाण बहुत ही कम होता है। इंडक्टर से शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए मोटे तथा लंबे वायर को किसी लोहे के रड पर लपेटकर उसमे विधुत धारा प्रवाहीत की जाती है।
जब बहुत लम्बे वायर को किसी लोहे के ऊपर लपेटा जाता है तब इसकी टर्न संख्या बहुत ही ज्यादा होती है और जब इस प्रत्येक टर्न से विधुत धारा का प्रवाह होता है तब प्रत्येक टर्न से विधुत क्षेत्र उत्पन्न होता है।
इन सभी टर्न द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के सदिश योग (Vector Sum) के बराबर Inductor का चुंबकीय क्षेत्र होता है। चूँकि चुम्बकीय क्षेत्र एक सदिश राशि है इसलिए इंडक्टर द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के लिए Right hand Thumb Rule का उपयोग किया जाता है।
Inductor के Inductance के परिमाण को कैसे ज्ञात किया जाता है ?
चूँकि इंडक्टर इलेक्ट्रिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में उपयोग किया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण कॉम्पोनेन्ट है। इसलिए इसके परिमाण को मापना बहुत ही जरुरी है। इंडक्टर द्वारा उत्पन्न किए गए चुम्बकीय क्षेत्र के Intensity के आधार पर ही उसके परिमाण को मापा जाता है और हम जानते है की वायर से जितनी ज्यादा विधुत धारा प्रवाहीत होती है उतनी ही ज्यादा मात्रा में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। इंडक्टर के Inductance तथा प्रवाहीत विधुत धारा के बीच निम्न संबंध होता है।
V = L(di/dt)
ऊपर दिए समीकरण में V इंडक्टर के दोनों टर्मिनल के बीच आरोपित वोल्टेज ,L इंडक्टर की Inductance , इंडक्टर से प्रवाहीत विधुत धारा तथा t समय है। इस प्रकार ज्ञात किय गए Inductance को हैनरी में मापते है। यह Inductance का SI मात्रक है।
यदि इंडक्टर को किसी लोहे के कोर पर लपेटकर बनाया गया है तब इसके Inductance को निम्न फार्मूला द्वारा ज्ञात किया जाता है।
L = 2NμA/l
इस प्रकार दिए गए फार्मूला में
N = लपेटे गए कुल टर्न की संख्या
हमने ऊपर देखा की जब इंडक्टर से विधुत धारा प्रवाहीत होती है तब इसमें विधुत ऊर्जा का संचयन हो जाता है। इंडक्टर किसी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में एक बाल्टी की तरह विधुत ऊर्जा का संचयन करता है। कोई इंडक्टर कितनी मात्रा में विधुत ऊर्जा का संचयन कर सकता है यह उसके Inductance तथा उससे प्रवाहीत विधुत धारा के परिमाण पर निर्भर करता है। किसी इंडक्टर द्वारा संचयीत विधुत ऊर्जा को निम्न फार्मूला से ज्ञात किया जा सकता है।
E = 1/2 ( LI2)
जब इंडक्टर से Alternating विधुत धारा को प्रवाहीत की जाती है तब प्रवाहीत विधुत धारा तथा आरोपित वोल्टेज के बीच लगभग 90 डिग्री का फेज डिफरेंस उत्पन्न हो जाता है। जब वोल्टेज तथा विधुत धारा को ग्राफ के मदद से दिखाया जाता है तब यह Phaser Diagram कहलाता है। जैसे की नीचे दिखाया गया है।
इस प्रकार दिए गए फार्मूला में
N = लपेटे गए कुल टर्न की संख्या
μ = इंडक्टर के अंदर माध्यम की चुंबकशीलता
A = इंडक्टर के Cross Sectional Area
L = Inductor का Inductance
l = इंडक्टर की लंबाई
ऊपर दी गयी सभी राशियो को SI मात्रक में मापा जाए तब Inductance का परिमाण हैनरी में होगा।
Inductor का AC तथा DC के साथ व्यावहार
हमने ऊपर देखा जब इंडक्टर को विधुत धारा के श्रोत से जोड़ते है तब यह अपने चारो तरफ चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। चूँकि हम सभी जानते है की विधुत धारा दो प्रकार का होता है (1) AC (2) DC . अब हम इन दोनों प्रकार के विधुत धारा के प्रभाव को को देखेंगे।
AC का इंडक्टर के साथ संबंध
चूँकि इंडक्टर वायर को लपेटकर बनाया जाता है और सभी प्रकार के वायर में कुछ प्रतिरोध होता है इसलिए इस प्रकार बनाये गए इंडक्टर में भी प्रतिरोध होता है। जब Alternating Current को इंडक्टर से प्रवाहीत किया जाता है तब इस Alternating Current का विरोध करने के लिए पहले से मौजूद प्रतिरोध के अलावा एक अलग प्रकार का प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है जिसे Inductive Reactance कहते है।
Inductive Reactance ,इंडक्टर में केवल Alternating Current प्रवाहीत करने पर ही उत्पन्न होता है। इस प्रकार इंडक्टर से प्रवाहीत Alternating Current का विरोध दो प्रकार से प्रतिरोध द्वारा किया जाता है।
Inductive Reactance ,इंडक्टर में केवल Alternating Current प्रवाहीत करने पर ही उत्पन्न होता है। इस प्रकार इंडक्टर से प्रवाहीत Alternating Current का विरोध दो प्रकार से प्रतिरोध द्वारा किया जाता है।
चूँकि इंडक्टर में Alternating Current प्रवाहीत की जाती है तब इस विधुत धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की प्रवृति भी Alternating ही होती है। अर्थात इस प्रकार इंडक्टर में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण भी समय के साथ बदलता रहता है। जब इंडक्टर के अंदर किसी लोहे के टुकड़े को डाल दिया जाता है तब यह एक स्थाई चुम्बक बन जाता है।
DC का इंडक्टर के साथ संबंध
जब इंडक्टर से डीसी प्रवाहीत की जाती है तब यह मामूली चुंबक की तरफ कार्य करता है। इसके अंदर पहले से मौजूद प्रतिरोध ही डीसी का विरोध करता है। डीसी प्रवाहीत करने से भी इसमें चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है लेकिन यह चुंबकीय क्षेत्र परिवर्ती न होकर स्थाई होता है। इसके अपने दक्षिण तथा उत्तरी ध्रुव नियत रहते है।
Types of Inductor | इंडक्टर का प्रकार
ऐसे तो इंडक्टर का कार्य चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करना होता है। जब इंडक्टर से होकर विधुत धारा को प्रवाहीत किया जाता है तब इसके चारो तरफ चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। जब किसी बाहरी पदार्थ को इंडक्टर के अंदर डाल दिया जाता है तब इसके चुम्बकीय क्षेत्र पर उसका ज्यादा असर पड़ता है। इंडक्टर से सम्बंधित चुम्बकीय क्षेत्र की क्षमता को बढ़ने के लिए फेराइट मटेरियल का उपयोग किया जाता है जो की एक प्रकार का आयरन का ऑक्साइड होता है। इस प्रकार उपयोग किए मटेरियल के आधार पर ही इंडक्टर को वर्गीकृत किया जाता है। जैसे :-
Air Core Inductor
जैसे की नाम से मालूम पड़ता है की इस प्रकार के इंडक्टर में कोर के रूप में आयरन के जगह पर हवा का उपयोग किया गया है। इस प्रकार के इंडक्टर का Inductance बहुत ही कम होता है। (5μH )
चूँकि इस प्रकार के इंडक्टर का Inductance कम होता है इसलिए इससे प्रवाहीत विधुत धारा का Rise rate भी बहुत तेज होता है इसलिए यह आसानी से उच्च फ्रीक्वेंसी को हैंडल कर लेता है। इस प्रकार के इंडक्टर का उपयोग ज्यादातर RF सर्किट में किया जाता है।
आयरन Core Inductor
इस प्रकार के इंडक्टर में आयरन का उपयोग किया जाता है। चूँकि आयरन की चुंबकशीलता (Permability) अन्य पदार्थ की तुलना में ज्यादा होती है इसी कारण आयरन को इंडक्टर के कोर के लिए उपयोग किया जाता है। इस प्रकार के इंडक्टर की Inductance बहुत ज्यादा होती है। इस प्रकार के इंडक्टर का उपयोग Low फ्रीक्वेंसी के सर्किट में फ़िल्टर की तरह किया जाता है।
फेराइट Core Inductor
Image Credit :www.robu.in |
इस प्रकार के इंडक्टर में फेराइट को कोर की तरह उपयोग किया जाता है। फेराइट आयरन का ऑक्साइड होता है। इस ऑक्साइड को अन्य मटेरियल के साथ मिलकर कोर बनाया जाता है तथा इस पर वायर को लपेटकर इंडक्टर तैयार की जाती है। यह इंडक्टर बहुत ही ज्यादा उपयोग किया जाता है।
Inductor Formula List
Energy Store
|
1/2(LI2)
|
Current Rise
|
dI/dt
|
Impedance
|
2πFL
|
L (Inductance)
|
2NμA/l
|
Energy Store In Inductor
Energy Store In Inductor
जहाँ
E = संचयीत ऊर्जा का परिमाण
L = Inductor का Inductance
I =इंडक्टर से प्रवाहीत विधुत धारा