IGBT in Hindi : परिभाषा ,कार्य सिध्दांत तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

 IGBT क्या होता है?

मोस्फेट तथा अन्य दुसरे स्विचिंग डिवाइस की तरह IGBT भी एक स्विचिंग डिवाइस है। जिसमे तीन टर्मिनल होते है। यह एक पावर इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस है जिसका उपयोग हाई वोल्टेज तथा हाई करंट वाले विधुत सिस्टम में स्विचिंग के लिए किया जाता है। इसका  का पूरा नाम इंसुलेटेड गेट बाइपोलर ट्रांजिस्टर होता है। उच्च दक्षता तथा उच्च स्विचिंग गुणधर्म की वजह से इसका उपयोग आज के समय में मॉस्फेट तथा ट्रांजिस्टर की जगह पर IGBT का उपयोग किया ज रहा है। IGBT के पास मॉस्फेट तथा ट्रांजिस्टर दोनों  का गुणधर्म होता है। इसका इनपुट गुणधर्म ट्रांजिस्टर तथा आउटपुट गुणधर्म मॉस्फेट के जैसा होता है। इसलिए इसके टर्मिनल के नाम भी मॉस्फेट तथा ट्रांजिस्टर के टर्मिनल से ही लिए गए जिन्हे गेट (G) कलेक्टर(C ) तथा एमिटर (E) कहते है। 

IGBT का सिंबल क्या होता है? 

चूँकि IGBT में ट्रांजिस्टर का इनपुट तथा मॉस्फेट का आउटपुट गुण होता है। इसलिए इसका सिंबल भी दोनों के सिंबल से मिलाकर ही तैयार किया गया है जिसे आप निचे के चित्र में देख सकते है। 
IGBT in hindi

IGBT की आंतरिक संरचना कैसी होती है ?

 दो ट्रांजिस्टर (एक NPN तथा एक PNP) तथा एक मोस्फेट के कॉम्बिनेशन से IGBT का निर्माण किया जाता है। IGBT में दो ट्रांजिस्टर की वजह से Saturation वोल्टेज लो तथा इनपुट इम्पीडेन्स हाई तथा मोस्फेट की वजह से फ़ास्ट स्विचिंग जैसे गुण आ जाते है। जैसे की आप निचे के डायग्राम में देख सकते है। 
IGBT इन हिंदी
IGBT के आंतरिक संरचना को दो ट्रांजिस्टर(NPN तथा PNP ) तथा एक मोस्फेट से बने सर्किट के  समतुल्य दिखाया जा सकता है। जैसे की ऊपर के सर्किट में दिखाया गया है। चूँकि मोस्फेट वोल्टेज से नियंत्रित होने वाला इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस होता है इसलिए IGBT के गेट पर लो वोल्टेज को कलेक्टर तथा एमिटर के बीच प्रवाहित होने वाली विधुत धारा को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। 

IGBT की कंस्ट्रक्शन कैसी होती है ? 

 चार अशुद्ध अर्ध्दचालक की परत (PNPN) से IGBT का निर्माण किया जाता है। IGBT का कलेक्टर टर्मिनल(C) P परत से जुड़ा हुआ रहता है जबकि एमिटर टर्मिनल (E),   तथा परत  के बीच स्थित होता है। IGBT के निर्माण के लिए हाइली डोप्ड (P+) प्रकार के अर्ध्द्चालक का उपयोग किया जाता है। इस P+ परत के उपर एक ,कम डोपिंग वाले Nटाइप अर्ध्द्चालक (N-) को रखा जाता है जिससे PN जंक्शन (J1) का निर्माण होता है। पहले जंक्शन के उपर दो P - टाइप अर्ध्द्चालक को रखा जाता है जिससे दुसरे PN जंक्शन का निर्माण होता है। P क्षेत्र का निर्माण कुछ इस तरह से किया जाता है की इस क्षेत्र के बीच में गेट (G) को fabricate किया जा सके। हाइली डोप्ड N+  क्षेत्र को P क्षेत्र में diffused किया जाता है जैसे की निचे दिए चित्र में दिखाया गया है। ये N + क्षेत्र P क्षेत्र से तीसरे जंक्शन J3 का निर्माण करते है। 
IGBT हिंदी
Image Credit:www.electricaltechnology.org

एमिटर टर्मिनल सीधे N+ क्षेत्र से जुडा हुआ होता है जबकि गेट टर्मिनल तथा N क्षेत्र के बीच में सिलिकॉन डाइऑक्साइड की पतली परत रहती है जो गेट को N क्षेत्र से अलग करती है। 

IGBT कैसे कार्य करता है?

IGBT में विधुत धारा का प्रवाह कलेक्टर तथा एमिटर टर्मिनल के बीच होता है जबकि इस धारा प्रवाह को गेट द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ट्रांजिस्टर तथा मोस्फेट की तरह ही जब एमिटर - गेट (E-G) तथा कलेक्टर -एमिटर (C-E) को बायस किया जाता है तब यह कार्य करता है। कलेक्टर एमिटर टर्मिनल को  वोल्टेज श्रोत से ऐसे जोड़ा जाए  की  एमिटर की तुलना में कलेक्टर का वोल्टेज ज्यादा रहे तब इस प्रकार जोड़ने की वजह से प्रथम जंक्शन J1 फॉरवर्ड बायस तथा दूसरा जंक्शन J2 रिवर्स बायस हो जाता है। इस परिस्थिति में गेट पर कोई भी वोल्टेज नहीं रहता है और दूसरा जंक्शन J2 रिवर्स बायस की अवस्था में रहता है जिससे IGBT से किसी भी तरह का कोई करंट नहीं चलता है अर्थात IGBT बंद रहता है। 

जब गेट को एमीटर की तुलना में पॉजिटिव वोल्टेज से जोड़ा जाता है ,तब सिलिकॉन डाइऑक्साइड के निचे ऋणावेशित इलेक्ट्रान इकट्ठा होने लगते है। जैसे जैसे  पर आरोपित वोल्टेज को बढ़ाया जाता है वैसे वैसे ज्यादा मात्रा में इलेक्ट्रान इकट्ठा होने लगते है ,जब गेट पर आरोपित वोल्टेज थ्रेशोल्ड वोल्टेज के बराबर हो जाता है तब इन इलेक्ट्रान वजह से एक N परत का निर्माण हो जाता है जो N+ तथा N- क्षेत्र को आपस में जोड़ देता है। 

इस दशा में इलेक्ट्रान  एमीटर से  होते हुए N+ क्षेत्र से  N- क्षेत्र के तरफ़ प्रवाहित होने लगते है। इसके विपरीत धनात्मक होल्स  कलेक्टर से P+ क्षेत्र से N- क्षेत्र  के तरफ प्रवाहित होने लगते है जिससे एमीटर तथा कलेक्टर के बीच विधुत धारा प्रवाह होने लगता है। यदि गेट पर आरोपित वोल्टेज के परिमाण को कम कर दिया जाए तब उत्पन्न इलेक्ट्रान की संख्या कम हो जाएगी और विधुत धारा का प्रवाह भी कम हो जायेगा। इस प्रकार गेट वोल्टेज को नियंत्रित कर एमीटर तथा कलेक्टर के बीच प्रवाहित होने वाली विधुत धारा को नियंत्रित किया जा सकता है। 

IGBT के लाभ एवं हानि क्या है?

IGBT के निम्न लाभ एवं हानि है :-

लाभ 

  • इसका उपयोग उच्च वोल्टेज तथा उच्च विधुत धारा पर किया जाता है। 
  • इसका इनपुट इम्पीडेन्स बहुत ज्यादा  होता है। 
  • बहुत ही कम परिमाण के गेट वोल्टेज द्वारा हाई करंट के परवाह  नियंत्रित किया जा सकता है। 
  • यह एक वोल्टेज कण्ट्रोल डिवाइस होता है। 
  • गेट पर आरोपित वोल्टेज को नियंत्रित करने वाले सर्किट का निर्माण सरल और सस्ता होता है। 
  • यह गेट पर पॉजिटिव वोल्टेज आरोपित करने से  आसानी से ऑन तथा नेगेटिव वोल्टेज से ऑफ हो जाता है। 
  • इसका पावर गेन मॉस्फेट तथा ट्रांजिस्टर से अधिक होता है। 
  • इसकी स्विचिंग गति ट्रांजिस्टर से तेज होती है। 

हानि 

  • यह मॉस्फेट तथा ट्रांजिस्टर से महंगा होता है। 
  • इसकी स्वीचिंग गति मॉस्फेट से कम होती है। 
  • इससे विधुत धारा का प्रवाह एक दिशा में होता है। 

IGBT का उपयोग कहा किया जाता है ?

IGBT का उपयोग निम्न जगह पर किया जाता है :-
कंप्यूटर के पावर सप्लाई में 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Star Delta Starter :- परिभाषा ,कार्य सिद्धान्त तथा उपयोग - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

Active ,Reactive and Apparent Power In Hindi

Energy meter in Hindi : परिभाषा ,संरचना ,कार्य सिद्धांत तथा उपयोग -हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी