ट्रांजिस्टर क्या होता है?
ट्रांजिस्टर एक तीन टर्मिनल्स वाला इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस है। इसके तीन टर्मिनल एमिटर ,कलेक्टर तथा बेस कहलाते है। ट्रांजिस्टर के अविष्कार के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स में क्रांति आ गयी। इसने पूरी दुनिया को ही बदल दिया। ट्रांजिस्टर के अविष्कार के ही कारण आज हम डिजिटल दुनिया में जी रहे है। सन 1951 में विलियम तथा उसके टीम ने बेल की प्रयोगशाला में ट्रांजिस्टर का अविष्कार किया था। इस अविष्कार के लिए उन्हें दुनिया का सर्वश्रेस्ट नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था।
आज के युग में जितने भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक्स सर्किट बनाये जा रहे है उन सभी में ट्रांजिस्टर का उपयोग किया जा रहा है। Transistor का उपयोग रेडियो टेलीविज़न आदि में Low सिग्नल को Amplify करने के लिए किया जाता है। ट्रांजिस्टर से पहले एम्पलीफिकेशन के लिए Vaccum Tube का इस्तेमाल किया जाता था।
लेकिन टांसिस्टर के अविष्कार हो जाने के बाद ,ट्रांजिस्टर ने Vaccum Tube का स्थान ले लिया क्योकि Vaccum Tube के तुलना में ट्रांजिस्टर के पास निम्न खुबिया थी :-
- ट्रांजिस्टर बहुत ही Low Current पर कार्य करता है।
- वैक्यूम Tube के तुलना में ट्रांजिस्टर की दक्षता (Efficiency) बहुत ही ज्यादा होती है।
- ट्रांजिस्टर का आकार बहुत ही छोटा होता है।
- Vaccum Tube की तरह इसमें Thermal Emission नहीं होता है।
हमने ऊपर देखा की Transistor एक तीन टर्मिनल वाला डिवाइस होता है जिसे एमिटर ,बेस तथा कलेक्टर कहते है। ट्रांजिस्टर को इलेक्ट्रॉनिक्स सर्किट में आवश्यकतानुसार तीन तरह से कनेक्ट किया जाता है। जिन्हे
- Common Base
- Common Emitter
- Common Collector
कहा जाता है। इलेक्ट्रॉनिक्स सर्किट में ट्रांजिस्टर का उपयोग Current या Voltage को आवर्धित (Amplify) करने के लिए किया जाता है। यदि एक छोटे आयाम वाले सिग्नल को Common Base Configuration में जुड़े Transistor के Base पर दिया जाए तो इस ट्रांजिस्टर के Collector terminal पर आरोपित सिग्नल का Amplify Version का सिग्नल मिलेगा यदि Transistor एक्टिव Region में कार्य रहा है तो। इस तरह Transistor एक Amplifer की तरह कार्य करता है।
ट्रांजिस्टर द्वारा सिग्नल का Amplification,सिग्नल को एक बहुत ही Low Resistance वाले क्षेत्र से ,एक बहुत High Resistance वाले क्षेत्र में ट्रांसफर कर के किया जाता है। इसी प्रोसेस के कारण ही ट्रांजिस्टर का नाम कुछ इस तरह रखा गया। Transfer Resistor इन दो शब्दों में से Transfer का पहला चार अक्षर (Tran) तथा Resistor का अंतिम छह अक्षर (Sistor) को मिलाकर Transistor बनाया गया।
Transfer Resistor = Transistor
Types of transistor In Hindi
Transistor अशुद्ध अर्धचालक (P-Type तथा N-Type) से बनाया जाता है।ट्रांजिस्टर मुख्यतः दो प्रकार के होते है।
- Unipolar Junction Transistor(UJT)
- Bipolar Junction Transistor (BJT)
Unijunction Transistor (UJT) में विधुत धारा का प्रवाह एक प्रकार के ही आवेशवाहक (इलेक्ट्रॉन्स या होल्स) के कारण होता है जबकि Bipolar Junction Transistor(BJT) में विधुत धारा का प्रवाह दो प्रकार के आवेश वाहक(होल्स तथा इलेक्ट्रॉन्स ) कारण होता है। जिन्हे इलेक्ट्रान तथा होल्स कहते है।
Bipolar Junction transistor (BJT) भी दो तरह का होता है।
- NPN Transistor
- PNP Transistor
NPN Transistor In Hindi
अब हम इस टॉपिक में NPN Transistor In Hindi तथा PNP Transistor In Hindi के बारे में जानेंगे।
जब दो N-Type अशुद्ध अर्द्धचालक के बीच में एक P-Type अर्द्धचालक को लगा दिया जाता है तब इस प्रकार बने हुए ट्रांजिस्टर को NPN ट्रांजिस्टर कहते है। जैसा की ऊपर के चित्र में दिखाया गया है।
इसके विपरीत दो P-Type अर्द्धचालक के बीच में एक N-Type अशुद्ध अर्द्धचालक को रख दिया जाता है तो इस प्रकार बने हुए ट्रांजिस्टर को PNP Transistor कहते है। जैसा की नीचे के चित्र में दिखाया गया है।
दोंनो प्रकार के Transistor के बीच वाले हिस्सा को Transistor का Base कहते है। यह क्षेत्र बहुत ही पतला तथा lightly Doped होता है। Base के अलावा बचे हुए दो अन्य क्षेत्र Emitter तथा Collector कहलाते है। Emitter तथा Collector,Base की तुलना में Highly Doped तथा इनकी चौड़ाई भी ज्यादा होती है। Emitter की तुलना में Collector की चौड़ाई थोड़ा ज्यादा होती है तथा यह थोड़ा हाइली Doped होता है।
किसी भी Bipolar Junction Transistor(BJT) में दो Junction है। एक Junction Emitter तथा Base के बीच जिसे Emitter-Base Junction कहते है।तथा दूसरा Junction Collector तथा Base के बीच होता है जिसे Collector-Base Junction कहते है। इस प्रकार हम कह सकते है की Transistor को दो Back to Back जुड़ा हुआ Diode होता है। जैसा की निचे के चित्र में दिखाया गया है।
लेकिन दो Diode को Back-to-Back जोड़ कर एक ट्रांजिस्टर की तरह उपयोग नहीं किया जा सकता है क्योकि :-
- Transistor में Base,Emitter तथा Collector की चौड़ाई तथा Dopping असामान्य होती है। जिसे यह एक ट्रांजिस्टर की तरह कार्य करता है। परन्तु Diode में दोनों प्रकार के अर्धचालक की Dopping सामान होती है जिससे यह एक ट्रांजिस्टर की तरह कार्य नहीं कर सकता है।
- Transistor में Emitter-Base Junction को Forward Bias तथा Collector-Base Junction को Reverse Bias में कनेक्ट किया जाता है जिससे Diffusion के कारण Emitter से प्रवाहित विधुत धारा Collector तक पहुंच जाती है। यदि दो Diode को Back-to-Back जोड़कर Emitter-Base Junction को Forward Bias तथा Collector-Base Junction को Reverse Bias में कनेक्ट किया जाये तो Emitter से चलने वाला विधुत धारा Collector तक तो पहुंच ही नहीं पायेगा क्योकि Collector-Base Junction की चौड़ाई लगभग बराबर होगी तथा यह Reverse-Bias है।
Biasing of Transistor In Hindi | Biasing of NPN and PNP Transistor
यदि ट्रांजिस्टर के टर्मिनल्स को किसी भी बाह्य विधुत श्रोत से जोड़ा नहीं जाये तो इस प्रकार के ट्रांजिस्टर को Unbiased transistor कहते है। जब तक ट्रांजिस्टर को किसी बाह्य विधुत श्रोत से जोड़ा नहीं जाता है तब तक यह दो Back-to-Back जुड़े Diode की तरह लगता है। तथा दोनों Junction पर Depletion layer उपलब्ध रहता है।
एक ट्रांजिस्टर को Proper तरीके से कार्य करने के लिए तीनो टर्मिनलो को किसी बाह्य विधुत श्रोत से जोड़ना होता है।टर्मिनलो को बाह्य ऊर्जा श्रोत से जोड़ने की प्रक्रिया Biasing of transistor कहलाती है।Transistor के टर्मिनल को तीन तरीके से जोड़ा जा सकता है,तीन तरीके से जोड़ने पर ये तीन तरह से कार्य करते है जिन्हे हम :-
- Active Region
- Cut-off-Region
- Saturation Region
Active Region क्या होता है ?
किसी भी प्रकार के ट्रांजिस्टर चाहे वह NPN हो या PNP के Emitter-Base Junction को Forward Bias तथा Base Collector Junction को Reverse Biased में कनेक्ट कर दिया जाता है तब इसे इसके कार्य करने के तरीका को Active Region में कहा जाता है। Active Region में जोड़े गए Transistor का सर्किट निचे दिया गया है।
Active Region में दोनों प्रकार के ट्रांजिस्टर (NPN या PNP) एक ही तरह कार्य करते है। अंतर बस इतना होता है की आवेश वाहक बदल जाते है। NPN ट्रांजिस्टर में मुख्य आवेश वाहक के रूप में इलेक्ट्रान कार्य करते है तथा PNP ट्रांजिस्टर में मुख्य आवेश वाहक के रूप में होल्स कार्य करते है। आवेश वाहक बदल जाने के कारण, प्रवाहित विधुत धारा की दिशा भी बदल जाती है।
जैसा की ऊपर के ट्रांजिस्टर के Symbol में दिखाया गया है की PNP ट्रांजिस्टर में विधुत धारा का परवाह Emitter से ट्रांजिस्टर में प्रवेश करता है जबकि NPN ट्रांजिस्टर में विधुत धारा Emitter से निकलता है।
अन्य दो प्रकार के Region के बारे में आगे चर्चा करेंगे।
NPN Transistor Working In Hindi | PNP Transistor Working In Hindi
अभी तक हमने Transistor के बारे में जाना। जिसमे हमने ट्रांजिस्टर के Construction तथा इसे बनाने में उपयोग होने वाले पदार्थ की जानकारी प्राप्त की। अब हम यहाँ ट्रांजिस्टर के Working Principle को Hindi में जानेंगे। हम जानते है की ट्रांजिस्टर के तीन टर्मिनल होते है जिन्हे Emitter Base तथा Collector कहा जाता है। इन तीनो टर्मिनलों को विभिन्न तरीके से जोड़कर सर्किट में उपयोग किया जाता है। Transistor को मुख्यतः तीन तरीके से जोड़ा जाता है जो इस प्रकार है:-
- Common Emitter Configuration
- Common Base Configuration
- Common Collector Configuration
चाहे हम किसी भी प्रकार के Configuration में ट्रांजिस्टर को जोड़े,ट्रांजिस्टर को Active Region में कार्य करने के लिए Emitter-Base Junction को हमेशा Forward Bias तथा Base Collector Junction को Reverse Bias में ही जोड़ना होगा।
Working of NPN transistor In Hindi
नीचे दिए गए Circuit Diagram में एक NPN Transistor को Active Region में जोड़ा गया है जिसमे Base-Emitter Junction को एक बैटरी VEE द्वारा Forward Bias किया गया है। जैसे की हम सभी जानते है Forward Bias होने के कारण Depletion Layer की चौड़ाई कम हो जाती है।
Base-Collector Junction को एक दूसरे बैटरी VCC द्वारा Reverse-Bias किया गया है। Base-Collector Junction को Reverse-Bias होने की वजह से इससे संबंधित Depletion Layer की चौड़ाई बढ़ जाती है। Emitter-Base Junction Forward Bias होने की वजह से N-Type Region से इलेक्ट्रान निकलकर Base की तरफ चलने लगते है जिससे एक विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है और इस विधुत धारा को Emitter-Current(IE) कहते है।जब ये इलेक्ट्रान Base से गुजरते है तब Base में मौजूद होल्स के साथ Recobine हो जाते है।
चूँकि Base की Dopping हल्की होती है इसलिए बहुत ही कम इलेक्ट्रान होल्स के साथ Recobine हो पाते है और इन इलेक्ट्रॉन्स का एक छोटा सा हिस्सा Base से होते हुए बैटरी में चला जाता है और इसके कारण Base में भी एक छोटा सा Current चलने लगता है जिसे Base Current (IB) कहते है। Recombine तथा Base से निकले इलेक्ट्रान की संख्या ,Emitter से निकले इलेक्ट्रॉन्स की कुल संख्या का बहुत ही कम हिस्सा (3% से 4%)होता है। शेष सभी इलेक्ट्रान Base को पार कर Collector में चले जाते है और Collector टर्मिनल से होते हुए वापस बैटरी में चले जाते है। इन इलेक्ट्रॉन्स के कारण ही Collector से Collector-Current(IC) का परवाह होता है। Emitter-Current तथा Collector-Current की तुलना में Base-Current का वैल्यू बहुत ही कम होता है। इन तीनों प्रकार के करंट में निम्न सम्बंध होता है।
IC+IB = IE
PNP Transistor In Hindi
ऊपर दिए गए चित्र में एक PNP Transistor को Active Region में कनेक्ट किया गया है। चित्र के अनुसार Emitter-Base Junction को Forward Bias तथा Base-Collector Junction को Reverse Bias में कनेक्ट किया गया। ट्रांजिस्टर के P-Type क्षेत्र से होल्स निकलकर Base के तरफ चलने लगते है जिससे होल्स के दिशा में एक करंट चलने लगता है जिसे Emitter-Current कहते है।
इन होल्स का एक बहुत ही कम हिस्सा N-Type क्षेत्र में मौजूद इलेक्ट्रान से Recobine कर जाते है कुछ होल्स Base से होकर निकलते है जिससे Base में एक विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है जिसे Base-Current कहते है। शेष सभी होल्स Base को पार कर Collector में चले जाते है जिसे Collector से भी एक विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है जो Collector-Current कहलाता है। NPN Transistor की तरह PNP Transistor में भी प्रवाहीत विधुत धारा के बीच एक संबंध होता है जो निम्न है :-
Transistor का Use कहा होता है? (Application of Transistor)
- Transistor का उपयोग ज्यादातर Inverter के सर्किट में एक फ़ास्ट स्विच की तरह होता है।
- Transistor का उपयोग एम्पलीफायर में Weak Signal Amplify करने के लिए किया जाता है।
- Transistor का उपयोग विभिन्न प्रकार के डिजिटल गेट बनाने के लिए किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त ट्रांजिस्टर का उपयोग विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बनाने के लिए किया जाता है।
क्या NPN ट्रांजिस्टर के जगह PNP ट्रांजिस्टर का उपयोग हो सकता है ?
यह एक सामान्य सा पूछा जानी वाला प्रश्न है। हमने ऊपर बताया है की दोनों प्रकार के ट्रांजिस्टर एक ही तरह के कार्य करते है। अंतर सिर्फ धारा प्रवाह का होता है। अगर किसी सर्किट में NPN ट्रांजिस्टर यूज़ किया गया है और हम उसके जगह एक PNP ट्रांजिस्टर लगते है तो उस सर्किट में विधुत धारा का परवाह बदल जाएगा और धारा का परवाह बदलने से उस सर्किट में लगे दूसरे इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पोनेन्ट सुचारु रूप से कार्य नहीं करेंगे। अगर फिर भी हम उस जगह पर PNP ट्रांजिस्टर लगाना चाहते है तो हमें उस सर्किट में इस PNP ट्रांजिस्टर के Biasing की व्यवस्था अलग से करनी होगी।
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