अर्द्धचालक (semiconductor) ऐसे पदार्थ होते है जिसकी विधुत चालकता(Electrical Conductivity) चालक से कम तथा कुचालक (insulator)से ज्यादा होती है।
अर्द्धचालक के अविष्कार के बाद ट्रांजिस्टर ,मॉस्फेट ,डायोड आदि फ़ास्ट स्विचिंग डिवाइस बनाई गयी। सेमीकंडक्टर ने इस दुनिया को ही बदल दिया। आज इस पोस्ट में हम अर्द्धचालक के प्रकार के बारे में जानेंगे। उम्मीद है यह पोस्ट आप सभी पाठको को पसंद आएगी। इंजीनियरिंग में अर्द्धचालक को पढ़ने के लिए दो भागों में बाटा गया है :-
- Intrinsic Semiconductor
- Extrinsic Semiconductor
Intrinsic Semiconductor
सिलिकॉन तथा जर्मेनियम जैसे शुद्ध अर्द्धचालक पदार्थ को Intrinsic Semiconductor कहा जाता है। Intrinsic Semiconductor में अशुद्धियाँ बहुत ही कम होती है। सामान्य तापमान पर शुद्ध सिलिकॉन तथा जर्मेनियम छोटे स्तर पर विधुत का चालन करते है क्योकि सामान्य तापमान पर इन पदार्थो में फ्री इलेक्ट्रान की संख्या बहुत ही कम होती है।जर्मेनियम तथा सिलकॉन परमाणु के बाह्य कक्षा में चार इलेक्ट्रान होते है जो नाभिक से बँधकर इसके चारों तरफ एक आंतरिक क्रोड का निर्माण करते है।
ये सभी परमाणु एक क्रम में ऐसे व्यवस्थित होते है की प्रत्येक परमाणु एक सम चतुष्फलक के किसी एक कोने पर स्थित होता है। नीचे दिया गया चित्र एक शुद्ध अर्द्धचालक के क्रिस्टल के परमाणुओं की व्यवस्था को दर्शाता है।
दिए गए चित्र से ज्ञात होता है की अर्द्धचालक परमाणु के बाह्य कक्षा में उपस्थित सभी चार इलेक्ट्रान अपने बगल के अन्य चार परमाणुओं के इलेक्ट्रान से साझेदारी कर Covalent bond बनाते है।
इससे मालूम होता है की शुद्ध अर्द्धचालक परमाणु में कोई भी इलेक्ट्रान फ्री नहीं रहता है इसलिए अर्धचालक को विधुत का कुचालक होना चाहिए लेकिन यह सत्य नहीं है और इसका कारण यह है की सामान्य तापमान पर अर्द्धचालक परमाणु के कुछ Bond टूट जाते है जिससे कुछ फ्री इलेक्ट्रान विधुत चालन के लिए क्रिस्टल में उपलब्ध हो जाते है।
जब अर्द्धचालक को गर्म किया जाता है तो ऊर्जा मिलने के कारण इसके परमाणु कम्पन करने लगते है जिससे इनके बंधन तेजी से टूटने लगते है और ज्यादा मात्रा में फ्री इलेक्ट्रान उपलब्ध हो जाते है और जब अर्द्धचालक के दोनों सिरों के बीच कोई विभवांतर (Potential Difference) आरोपित किया जाता है तब
इसके अंदर एक विधुत क्षेत्र(electric field) उत्पन्न हो जाता है ,इस विधुत क्षेत्र के कारण मुक्त हुए इलेक्ट्रान विधुत क्षेत्र के विपरीत दिशा में अपने ऊपर एक बल (force)का अनुभव करते है और अपनी स्थान को छोड़कर इसी बल के दिशा में गति करने लगते है जिससे विधुत धारा प्रवाहित होने लगती है।
इलेक्ट्रान अपने जिस स्थान को छोड़कर जाता है वहां का स्थान रिक्त हो जाता है जिसे होल (Hole) कहते है। इस होल को भरने के लिए बगल के परमाणु से एक इलेक्ट्रान निकल कर आता है जिससे दूसरे परमाणु में एक होल उत्पन्न हो जाता है।
यह प्रक्रिया अर्द्धचालक के पुरे क्रिस्टल में चलता है जिससे यह होल पुरे अर्द्धचालक के क्रिस्टल में घूमता रहता है। यह होल एक धन आवेश की तरह व्यवहार करता है तथा उत्पन्न हुए विधुत क्षेत्र के दिशा में घूमता रहता है। अतः किसी गर्म किये गए अर्द्धचालक में विधुत धारा का प्रवाह मुक्त हुए इलेक्ट्रान तथा होल के कारण होता है।
Extrinsic Semiconductor
शुद्ध अर्द्धचालक नार्मल तापमान पर विधुत धारा का प्रवाह सुगमता पूर्वक एक अच्छे चालक की तरह नहीं करते है क्योकि सामान्य तापमान पर अर्द्धचालक के क्रिस्टल में फ्री इलेक्ट्रॉनों संख्या बहुत कम होती है।
यदि किसी बाह्य श्रोत से इलेक्ट्रान को अर्धचालक के क्रिस्टल में डाल दे या क्रिस्टल के अंदर होल को उत्पन्न कर दे तो इसकी चालकता बढ़ जाएगी।
अर्थात शुद्ध अर्द्धलाक के क्रिस्टल में बाह्य पदार्थ को मिलाने से इसकी विधुत चालकता बढ़ जाती है और इस प्रकार बने नए अर्द्धचालक को Extrinsic Semiconductor कहते है।
शुद्ध अर्द्धचालक में प्रायः ऐसे पदार्थ को मिलाया जाता है जिसकी संयोजकता (Valency) पांच या तीन हो।
जैसे एंटीमनी ,आर्सेनिक ,इंडियम ,बोरोन आदि। इन पदर्थो की थोड़ी सी मात्रा शुद्ध अर्द्धचालक पदार्थ के साथ मिलाई जाती है।
इन पदार्थों की थोड़ी सी मात्रा मिला देने से शुद्ध अर्द्धचालक की चालकता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। शुद्ध अर्द्धचालक में बाह्य पदार्थ को मिलाने की प्रक्रिया Doping कहलाती है। Extrinsic Semiconductor दो प्रकार के होते है :- (a) P-type (b) N-type
N-type Extrinsic Semiconductor
जब कोई बाह्य पदार्थ जिसकी संयोजकता (Valency) पांच (जैसे - फॉस्फोरस ,ऐंटिमनी ,आर्सेनिक )हो ,शुद्ध अर्द्धचालक के साथ मिलाई जाती है तो शुद्ध अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती है। बाह्य पदार्थ के Valence शेल में मौजूद पांच इलेक्ट्रान अर्द्धचालक के Valence शेल में मौजूद अन्य चार इलेक्ट्रान से साझेदारी कर Covalent Bond बना लेते है तथा एक इलेक्ट्रान बिना बंध बनाये रह जाता है जो पुरे क्रिस्टल में घूमने के लिए आज़ाद रहता है और यही फ्री इलेक्ट्रान विधुत प्रवाह के लिए उत्तरदायी होता है।
इस प्रकार शुद्ध अर्द्धचालक में बाह्य पदार्थ मिलाने फ्री इलेक्ट्रॉनों की संख्या अपेक्षाकृत बढ़ जाती है जिससे शुद्ध अर्द्धचालक की चालकता (Electrical Conductivity) बढ़ जाती है।
चूँकि इस प्रकार बाह्य पदार्थ मिलाने से शुद्ध अर्द्धचालक में आवेश वाहक का काम ऋणात्मक (negatively Charged ) इलेक्ट्रान करते है अतः इस प्रकार के अशुद्ध अर्द्धचालक को N-Type अर्द्धचालक कहते है।
P-type Extrinsic Semiconductor
जब कोई बाह्य पदार्थ जिसकी संयोजकता तीन (जैसे-बोरोन ,एल्युमिनियम ,इंडीयम आदि)हो ,शुद्ध अर्द्धचालक के साथ मिलाई जाती है तो शुद्ध अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती है। बाह्य पदार्थ के Valence शेल में मौजूद तीन इलेक्ट्रान अर्द्धचालक के Valence शेल में मौजूद तीन इलेक्ट्रान से साझेदारी कर Covalent Bond बना लेते है तथा शुद्ध अर्द्धचालक का एक इलेक्ट्रान बिना बंध बनाये रह जाता है। इस प्रकार एक स्थायी Covalent Bond बनाने के लिए एक इलेक्ट्रान की कमी हो जाती है।
यह फ्री इलेक्ट्रान अपने बगल के परमाणु के इलेक्ट्रान के साथ Covalent Bond बना लेता है जिससे उस परमाणु में एक इलेक्ट्रान की कमी हो जाती है ,परमाणु में इलेक्ट्रान के कमी के कारण एक स्थान रिक्त हो जाता है जिसे होल (Hole) कहते है।
यह होल अपने अगले परमाणु से एक इलेक्ट्रान को ग्रहण कर स्थाई हो जाता है लेकिन बगल वाले परमाणु में एक स्थान रिक्त हो जाता है और यह प्रक्रिया समूचे क्रिस्टल में होते रहता है। इस प्रकार बने अशुद्ध अर्द्धचालक के पर विधुत क्षेत्र लगाया जाता है तो इलेक्ट्रान इस होल की तरफ भागते है जिससे विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है।
चूँकि इस प्रकार बाह्य पदार्थ मिलाने से शुद्ध अर्द्धचालक में आवेश वाहक का कार्य धनात्मक (Positively Charged ) होल करते है अतः इस प्रकार के अशुद्ध शुद्ध अर्द्धचालक को P-Type अर्द्धचालक कहते है।
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