परमाणु में ऊर्जा बैंड क्या होता है ?
हम सभी जानते है की किसी भी परमाणु के अंदर इलेक्ट्रान का वितरण शेल तथा सब-शेल में होता है तथा प्रत्येक शेल नाभिक से एक निश्चित दुरी पर होता है तथा नाभिक के सापेक्ष प्रत्येक शेल का अपनी ऊर्जा स्तर(Energy level) होता है।
नाभिक के सबसे नजदीक (पहले) वाले शेल में चक्कर लगाने वाला इलेक्ट्रान नाभिक के साथ एक मजबूत आकर्षण बल के साथ बंधा रहता है तथा इस इलेक्ट्रान की ऊर्जा भी अन्य इलेक्ट्रान की तुलना में बहुत कम होती है।
जो इलेक्ट्रान नाभिक से जितना दूर रहता है वह नाभिक से उतनी ही कम आकर्षण बल के साथ बंधा रहता है तथा उसकी ऊर्जा स्तर भी बहुत ज्यादा होती है।
अतः परमाणु के सबसे बाह्य कक्षा (Valence शेल ) के इलेक्ट्रान की ऊर्जा स्तर बहुत ज्यादा होती है। और यह नाभिक के साथ एक कमजोर आकर्षण बल के साथ बंधा रहता है। कमजोर बल से बंधने के कारण यह इलेक्ट्रान आसानी से अपनी कक्षा से बाहर निकल सकता है तथा रसायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है।
ठोस (Solid) पदार्थ में परमाणु एक दूसरे के काफी नजदीक होते है इसलिए बाह्य कक्षा के इलेक्ट्रान दो या दो से अधिक परमाणु द्वारा साझेदारी कर लिए जाते है। Valence शेल के इलेक्ट्रान पर दूसरे परमाणुओं तथा इसके इलेक्ट्रान का प्रभाव भी रहता है।
बाह्य शेल के इलेक्ट्रान अपने अगल बगल के परमाणुओं के इलेक्ट्रान के साथ साझेदारी कर रासायनिक बंध (Chemical Bond)बनाते है। इलेक्ट्रान साझेदारी के कारण बने हुए रासायनिक बंधन को सहसंयोजक बंधन (Covlent Bond ) कहते है। अतः किसी ठोस पदार्थ के परमाणु में मौजूद इलेक्ट्रान मुक्त अवस्था (Free) में नहीं रहते है।
चूँकि बाह्य कक्षा के इलेक्ट्रान की ऊर्जा सबसे ज्यादा होती है तथा ठोस पदार्थ में ये इलेक्ट्रान एक परमाणु से दूसरे परमाणु में Merge होकर रासायनिक बंधन बनाते है इसी तरह इन इलेक्ट्रानो से संबंधित ऊर्जा भी एक दूसरे के साथ Merge होकर ऊर्जा का बैंड बनाता है जिसे ऊर्जा बैंड(Energy Band) कहते है।
इसी तरह किसी भी परमाणु के विभिन्न ऊर्जा स्तर जैसे पहली दूसरी ,तीसरी आदि एक दूसरे परमाणु के ऊर्जा स्तर से Merge होकर ऊर्जा बैंड का निर्माण करता है। इन सभी ऊर्जा स्तर को तीन भाग में बांटा गया है इस प्रकार है :-
- Valence Band
- Conduction Band
- forbidden Band
Valence Band
Valence शेल के आपस में विलीन (Merge) होने से जो नया ऊर्जा बैंड बनता है valence बैंड कहलाता है।Conduction Band
ठोस पदार्थ में मौजूद फ्री इलेक्ट्रान के आपस में Merge होने से जो नया बैंड बनता है उसे Conduction Band कहते है।Forbidden Band
Valence Band तथा Conduction band के बीच के अंतर को forbidden Band कहाँ जाता है। इसे Eg से सूचित किया जाता है। विभिन्न क्रिस्टल में Eg का मान भिन्न भिन्न होता है। कुछ ठोस पदार्थ में Eg = 0 होता है। जिस पदार्थ में Conduction बैंड तथा Valence बैंड एक दूसरे पर ओवरलैप होते है वह पदार्थ ठोस चालक होता है।Conduction Band ,Valence Band तथा forbidden Gap के आधार पर ही ठोस पदार्थो को चालक (Conductor) कुचालक (Insulator) तथा अर्धचालक (Semiconductor) में विभाजित किया जाता है।चालक ,अर्धचालक तथा कुचालक
प्रत्येक ठोस पदार्थ के परमाणुओं में कुछ ऐसे इलेक्ट्रान होते है जो परमाणुओं के नाभिक के आकर्षण बल के बंधन से मुक्त होते है तथा समस्त पदार्थ में घूमने के लिए स्वतन्त्र होते है इन इलेक्ट्रानो को मुक्त इलेक्ट्रान (free Electron) कहते है। धातुओं (Metal)में विधुत चालन के लिए विधुत वाहक के रूप में ये इलेक्ट्रान ही कार्य करते है इसलिए इन्हे चालन इलेक्ट्रान भी कहते है।
ये फ्री इलेक्ट्रान समूचे पदार्थ में कही भी घूम सकते है परंतु ये पदार्थ को छोड़कर बाहर नहीं जा सकते है। ठोस पदार्थो में विधुत चालकता (Conductivity) का सीधा संबंध Conduction बैंड तथा Valence बैंड के ऊर्जा अंतर पर निर्भर करता है।
इस ऊर्जा अंतर को Forbidden Energy Gap कहते है। इसे Eg से सूचित किया जाता है। इसके आधार ही ठोस पदार्थो को चालक (Conductor) कुचालक (Insulator) तथा अर्धचालक (Semiconductor) में विभाजित किया जाता है।
इन पदार्थो में Conduction बैंड तथा Valence बैंड एक दूसरे के ऊपर ओवर लैप होते है इसलिए इनके बीच कोई भी Forbidden Energy Gap नहीं होता है। अर्थात Eg = 0 होता है।
ये फ्री इलेक्ट्रान समूचे पदार्थ में कही भी घूम सकते है परंतु ये पदार्थ को छोड़कर बाहर नहीं जा सकते है। ठोस पदार्थो में विधुत चालकता (Conductivity) का सीधा संबंध Conduction बैंड तथा Valence बैंड के ऊर्जा अंतर पर निर्भर करता है।
इस ऊर्जा अंतर को Forbidden Energy Gap कहते है। इसे Eg से सूचित किया जाता है। इसके आधार ही ठोस पदार्थो को चालक (Conductor) कुचालक (Insulator) तथा अर्धचालक (Semiconductor) में विभाजित किया जाता है।
चालक या धातु (Conductor या Metal)
जिस पदार्थ में फ्री इलेक्ट्रानो की संख्या बहुत ज्यादा होती है ,विधुत चालक कहलाता है। जैसे चाँदी ,सोना ,तांबा आदि ये सभी विधुत चालक है। इन पदार्थो में फ्री इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। इन पदार्थो की प्रतिरोधकता(resistivity) बहुत ही कम होती है तथा विधुत चालकता(Conductivity) बहुत ज्यादा होती है।इन पदार्थो में Conduction बैंड तथा Valence बैंड एक दूसरे के ऊपर ओवर लैप होते है इसलिए इनके बीच कोई भी Forbidden Energy Gap नहीं होता है। अर्थात Eg = 0 होता है।
Conductor band theory In hindi
कुचालक या विधुतरोधी (Insulators)
वैसे पदार्थ जिनसे विधुत धारा का परवाह आसानी से नहीं होता है। कुचालक कहलाता है। कुचालक पदार्थ में फ्री इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत ही कम होती है। जैसे एबोनाइट ,काँच ,मोम गंधक आदि ये सभी पदार्थ विधुत का चालन नहीं करते है।
इन पदार्थो की प्रतिरोधकता बहुत अधिक तथा चालकता बहुत कम होती है। इन पदार्थो में Valence बैंड तथा Conduction बैंड के बीच बहुत बड़ा अंतर होता है। जिससे forbidden energy gap ( Eg ) बहुत ज्यादा होता है।
जैसे हीरा के लिए Eg = 6eV होता है। इसका मतलब यह हुआ की यदि हीरा के एक परमाणु में 6eV ऊर्जा दी जाएगी तब Valence band से electron निकलकर Conduction Band में पहुंचेंगे तब हीरा विधुत धारा का चालन करेगा।
अर्द्ध-चालक (Semiconductor)
अर्द्ध चालक उन पदार्थो को कहते है जिनकी विधुत चालकता कुचालको से ज्यादा परन्तु चालकों से कम होती है। अर्थात अर्द्धचालक की विधुत चालकता कुचालक तथा चालक के मध्यान्तर (Intermediate) होत है।
अर्द्धचालक परम शून्य ताप पर विधुत के कुचालक होते है परन्तु ताप बढ़ाने पर इनकी चालकता लगातार बढ़ने लगती है। सिलिकॉन ,जर्मेनियम कार्बन ऐसे पदार्थ है। इन पदार्थो में फ्री इलेक्ट्रॉनों की संख्या चालकों से कम तथा कुचालको से ज्यादा होती है।
अर्द्धचालक परमाणु के इलेक्ट्रान नाभिक के साथ एक सामान्य आकर्षण बल के साथ बंधे रहते है। इस बल का परिमाण न ही ज्यादा होता है और न ही कम।
अर्द्धचालक परम शून्य ताप पर विधुत के कुचालक होते है परन्तु ताप बढ़ाने पर इनकी चालकता लगातार बढ़ने लगती है। सिलिकॉन ,जर्मेनियम कार्बन ऐसे पदार्थ है। इन पदार्थो में फ्री इलेक्ट्रॉनों की संख्या चालकों से कम तथा कुचालको से ज्यादा होती है।
अर्द्धचालक परमाणु के इलेक्ट्रान नाभिक के साथ एक सामान्य आकर्षण बल के साथ बंधे रहते है। इस बल का परिमाण न ही ज्यादा होता है और न ही कम।
अर्द्धचालक ऊर्जा सिद्धांत
अर्द्धचालक परमाणु में Valence Band तथा Conduction Band के बीच का अंतर बहुत ही कम होता है। परम शून्य ताप (absolute Temperature) पर इसके Conduction बैंड में कोई भी फ्री इलेक्ट्रान मौजूद नहीं होता है तथा वैलेंस बैंड में इलेक्ट्रान भरे रहते है।
जैसे ही किसी बाह्य ऊर्जा श्रोत से परमाणु के Valence शेल में मौजूद इलेक्ट्रान को ऊर्जा मिलती है वह कूदकर Conduction Band में चला आता है और विधुत वाहक के रूप में कार्य करने लगता है। इसलिए अर्द्धचालक की चालकता तापमान बढ़ने के साथ बढ़ती है।
जैसे ही अर्द्धचालक को Frobidden Energy Gap (Eg) के बराबर या इससे अधिक ऊर्जा मिलती है ,परमाणु के बंधन टूटने लगते है तथा इलेक्ट्रान मुक्त होकर Conduction Band में आने लगते है जिससे अर्द्धचालक की चालकता बढ़ने लगती है। जैसे सिलिकॉन के लिए Eg = 1.1 eV तथा जर्मेनियम के लिए Eg = 1.1 eV
जैसे ही किसी बाह्य ऊर्जा श्रोत से परमाणु के Valence शेल में मौजूद इलेक्ट्रान को ऊर्जा मिलती है वह कूदकर Conduction Band में चला आता है और विधुत वाहक के रूप में कार्य करने लगता है। इसलिए अर्द्धचालक की चालकता तापमान बढ़ने के साथ बढ़ती है।
जैसे ही अर्द्धचालक को Frobidden Energy Gap (Eg) के बराबर या इससे अधिक ऊर्जा मिलती है ,परमाणु के बंधन टूटने लगते है तथा इलेक्ट्रान मुक्त होकर Conduction Band में आने लगते है जिससे अर्द्धचालक की चालकता बढ़ने लगती है। जैसे सिलिकॉन के लिए Eg = 1.1 eV तथा जर्मेनियम के लिए Eg = 1.1 eV
सामान्य तापमान पर उष्मीय विक्षोभ के कारण कम ऊर्जा से अर्द्धचालक के परमाणु के कुछ बंधन टूटने लगते है जिससे कुछ इलेक्ट्रान मुक्त हो जाते है और Conduction band में पहुंच जाते है जिससे अर्द्धचालक सामान्य तापमान पर भी चालक के तरह कार्य करने लगता है।इस प्रकार परमाणुओं के बंधन टूटने के कारण इलेक्ट्रान फ्री हो जाते है जिससे परमाणु में इलेक्ट्रान का जगह खाली हो जाता है। इस खाली जगह को होल(Hole) कहते है।
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