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P-N Junction Diode : संरचना तथा कार्य सिद्धांत - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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PN Junction डायोड क्या होता है?

जब P-Type तथा N-Type अर्द्धचालक को किसी स्पेशल विधि द्वारा आपस में जोड़ा  जाता है ,और जिस स्थान पर ये दोनों  अर्द्धचालक एक दूसरे से संयोजित होते है उस स्थान को P-N Junction कहते है। Junction के उपरांत बने हुए डिवाइस के लक्षण डायोड वाल्व के जैसे होते है। इसलिए इस डिवाइस को P-N Junction Diode कहते है।
जब दोनों प्रकार के अशुद्ध अर्द्धचालक को आपस में मिलाते है तब Junction पर आवेश वाहकों (फ्री इलेक्ट्रान तथा होल ) का Junction के आर पार विषरण होने  लगता है। P-Type अर्द्धचालक से होल (Hole)  निकलकर  N-Type अर्द्धचालक में तथा N-Type अर्द्धचालक से इलेक्ट्रान निकलकर P-Type अर्द्धचालक में विसरित हो जाते है। विसरण के बाद ये आवेश वाहक अपने अपने विपरीत आवेश को उदासीन (Neutralize)कर देते है। इस प्रकार Junction के दोनों तरफ एक पतली उदासीन परत (Thin Layer) बन जाती है। इस उदासीन परत में किसी भी प्रकार का कोई आवेश वाहक नहीं होता है। इस उदासीन परत को Depletion Layer कहते है। इस परत की चौड़ाई लगभग 10-6m के बराबर होता है। 
संधि (Junction) में आवेश वाहकों के विसरण के कारण संधि (Junction) के नजदीक n-क्षेत्र में धनावेशित होल तथा P- क्षेत्र में ऋणावेशित इलेक्ट्रान की संख्या बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप Junction के आर पार Depletion Layer के बीच एक विभवांतर (Potential Difference) उत्पन्न हो जाता है जिसे Barrier Potential कहते है। इस विभवांतर के कारण Junction पर एक आंतरिक विधुत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जिसकी दिशा  n-क्षेत्र से P- क्षेत्र की तरफ होती है। कुछ समय के बाद यह क्षेत्र इतना मजबूत हो जाता है की आवेश वाहको का विषरण (Diffusion) रुक जाता है।

P-N Junction डायोड से विधुत धारा का प्रवाह (Flow of electric current Through  P-N Junction Diode)

जब किसी बाह्य विधुत ऊर्जा श्रोत (बैटरी ,सेल आदि ) को डायोड के टर्मिनल से जोड़ा जाता है तब डायोड से विधुत धारा का प्रवाह होने लगता है। विधुत ऊर्जा श्रोत के अनुपस्थिति में डायोड से किसी भी तरह के विधुत धारा का प्रवाह नहीं होता है। P-N Junction Diode को विधुत ऊर्जा श्रोत से दो तरह से जोड़ा जाता है :-
  • (a) Forward Biased 
  • (b) Reverse Biased  . 

Forward Biased क्या होता है ? (What is Forward Biased?)

PN Junction Diode में जब P-Type क्रिस्टल को बैटरी के पॉजिटिव टर्मिनल से तथा N-Type क्रिस्टल को बैटरी के नेगेटिव टर्मिनल से जोड़ा जाता है ,तो इसे Forward Biased कहते है। Forward Biased की स्थिति में डायोड में  P- क्षेत्र  से  n-क्षेत्र  की और एक विधुत क्षेत्र स्थापित हो जाता है और यह विधुत क्षेत्र आंतरिक विधुत क्षेत्र को समाप्त कर देता है। इस नए विधुत क्षेत्र(Electric Field ) के दिशा में होल P-क्षेत्र से N-क्षेत्र की ओर गति करने लगते है तथा इलेक्ट्रान N- क्षेत्र से P-क्षेत्र की ओर विधुत क्षेत्र के विपरीत दिशा में गति करने लगते है। 

Diode forward bias in hindi
N-क्षेत्र में होल इलेक्ट्रान से संयोजित होकर विलुप्त हो जाते है तथा इसी प्रकार P-क्षेत्र में होल इलेक्ट्रान से संयोजित होकर विलुप्त हो जाते है। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रान बैटरी से आते रहते है। P-क्षेत्र में होल के कमी होने के कारण कुछ नए बंध (Bond) टूटते है ,इस बंध से निकले इलेक्ट्रान बैटरी के पॉजिटिव टर्मिनल के तरफ  तथा होल नेगेटिव टर्मिनल के तरफ भागते है जिससे डायोड में  विधुत धारा प्रवाहित होने लगती है। डायोड के टर्मिनल के बीच में विभवांतर को बढ़ाने से विधुत धारा भी बढ़ती है।

Reverse Biased  क्या होता है?

PN Junction Diode में जब P-Type क्रिस्टल को बैटरी के नेगेटिव टर्मिनल तथा N-Type क्रिस्टल को बैटरी के पॉजिटिव टर्मिनल से जोड़ा जाता है ,तो इसे Reverse  Biased कहते है। Revers Bias के बाद Junction पर उत्पन्न हुए विधुत क्षेत्र  की दिशा N-क्षेत्र से P-क्षेत्र की ओर होती है और यह आंतरिक विधुत क्षेत्र की मदद करती है। इस प्रकार Reverse Bias में Depletion Layer की चौड़ाई बढ़ जाती है क्योकि Opposite Polarity से जुड़े होने के कारण P-क्षेत्र में होल बैटरी के नेगेटिव टर्मिनल तथा N-क्षेत्र में इलेक्ट्रान पॉजिटिव टर्मिनल के तरफ भागते है जिससे आवेश वाहक Junction से दूर भागने लगते है।
Diode reverse bias in hindi
P तथा N क्षेत्र में उष्मीय विक्षोभ के कारण कुछ इलेक्ट्रान तथा होल विध्यमान रहते है। P तथा N क्षेत्र में उपस्थित इन इलेक्ट्रान तथा होल को Minority Charge Carriers कहते है।इन minority Charge Carriers के कारण Reverse Bias में डायोड से एक बहुत ही छोटे मान का विधुत धारा प्रवाहित होता है जिसे Reverse Current कहते है। जब  Reverse Bias में डायोड के टर्मिनल के बीच के विभवांतर को बढ़ाया जाता है तो वोल्टेज के एक बड़े मान तक डायोड से कोई विधुत धारा प्रवाहीत नहीं होती है लेकिन विभवांतर को लगातार बढ़ाये तो वोल्टेज के निश्चित मान के बाद डायोड से अचानक विधुत धारा का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है। वोल्टेज के इस मान को  Zenor Voltage कहते है। 

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