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Hartley Oscillator in Hindi : परिभाषा ,कार्य ,सर्किट डायग्राम - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

 हार्टले ओसिलेटर क्या होता है?

यह हर्मोनिक्स ओसिलेटर है जिसकी आवृति LC सर्किट द्वारा नियंत्रित की जाती है। हार्टले ओसिलेटर द्वारा रेडियो फ्रीक्वेंसी उत्पन्न किया जाता है।हार्टले ऑसिलेटर्स का आविष्कार 1915 में अमेरिकी इंजीनियर राल्फ हार्टले ने किया था। हार्टले ओसिलेटर की विशेषता यह है कि ट्यूनिंग सर्किट (LC Tuned ) में  श्रेणी क्रम में जुड़े हुए दो प्रेरकों के साथ समानांतर में  एक कैपेसिटर जुड़ा हुआ होता है और दोलन के लिए आवश्यक फीडबैक सिगनल दोनो  प्रेरकों के केंद्र कनेक्शन से लिया जाता है। जैसे की निचे के सर्किट डायग्राम में दिखाया गया है। 
hartley oscillator in hindi
जैसे ऊपर दिए गए सर्किट डायग्राम में कॉमन बेस कांफिगुरेसन में एक ट्रांजिस्टर को रखकर एक एम्पलीफायर बनाया गया है। इस एम्पलीफायर के लिए प्रतिरोध R1तथा R एक वोल्टेज डीवाइडर के रूप में ट्रांजिस्टर को बायस्ड करने के लिए लगाए गए है। ट्रांजिस्टर के कलेक्टर टर्मिनल से जुड़ा एक प्रतिरोध Rतथा एमिटर से जुड़ा प्रतिरोध RE है जो एम्पलीफायर को स्थिरता प्रदान करता है। 

इसके अतिरिक्त इनपुट कैपासिटर(Ci) तथा आउटपुट कैपासिटर(Co)लगाया गया है इन दोनों कैपासिटर के अतिरिक्त एमिटर टर्मिनल से (CE) जुड़ा हुआ है जो आवर्धित सिगनल को बायपास करता है। एम्पलीफायर के आउटपुट से एक LC टैंक परिपथ लगाया गया है जो आवर्त रूप से डैम्प दोलन उत्पन्न करता है। 

जब इस परिपथ को चालू (On)किया जाता है। ट्रांजिस्टर एक नार्मल एम्पलीफायर की तरह कार्य करता शुरू कर देता है। इसके फलस्वरूप कलेक्टर से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा की वजह से टैंक सर्किट का कैपासिटर C आवेशित (Charging) होने लगता है। 

जब टैंक सर्किट का यह कैपासिटर पूर्ण चार्ज हो जाता है तब इसमें स्टोर विधुत ऊर्जा इंडक्टर(L1) तथा (L2) की तरफ़ प्रवाहित होने लगती है जिससे कैपासिटर डिस्चार्ज होने लगता है।का और यह विधुत उर्जा इंडक्टर में स्टोर होने लगती है।जब कैपासिटर पूर्ण डिस्चार्ज हो जाता है तब इंडक्टर से पुनः दुबारा विधुत उर्जा कैपासिटर के तरफ चलने लगता है जिसके फलस्वरूप इस टैंक सर्किट में एक ज्या वक्रीय(Sinusoidal) डैम्प दोलन शुरू हो जाता है। 
टैंक सर्किट में दोलन उत्पन्न होने की वजह से दोनों  इंडक्टर के दोनों टर्मिनल पर प्रत्यावर्ती विधुत धारा उत्पन्न हो जाता है जो एक दुसरे से 180 डिग्री आउट ऑफ़ फेज होता है।  

ऊपर दिए गए सर्किट से यह साफ दिख रहा है की एम्पलीफायर का आउटपुट इंडक्टर (L1) से जुड़ा हुआ है जिसका मतलब यह हुआ की एम्पलीफायर का आउटपुट तथा इस इंडक्टर में उत्पन्न प्रत्यावर्ती वोल्टेज दोनों एक ही फेज में है और दोनों इंडक्टर के आंतरिक प्रतिरोध की वजह से जो उर्जा ह्रास टैंक सर्किट में होता है उसकी आपूर्ति भी एम्पलीफायर के आउटपुट द्वारा हो जाती है। जबकि इंडक्टर (L2) का टर्मिनल एम्पलीफायर के बेस से जुड़ा हुआ है जो फीडबैक की तरह कार्य करता है। इंडक्टर(L2) में उत्पन्न प्रत्यावर्ती वोल्टेज ,इंडक्टर में उत्पन्न प्रत्यावर्ती वोल्टेज से 180 डिग्री आउट ऑफ़ फेज होता है और जब यह फीडबैक से होकर दुबारा एम्पलीफायर में प्रवेश करता है तब ट्रांजिस्टर द्वारा पुनः 180 आउट ऑफ़ फेज कर दिया जाता है जिससे यह 360 आउटपुट ऑफ़ फेज हो जाता है और एम्पलीफायर के आउटपुट पर प्राप्त होता है। और यह प्रक्रिया लगातार चलता रहता है। और यह सर्किट एक Oscillator की तरह कार्य करता रहता है। इस ओसिलेटर की आवृति को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है। 
f =\frac{1}{2\pi\sqrt{LC}}
यहाँ L दोनों इंडक्टर का प्रभावी प्रेरकत्व है। इसका मान (L = L1 +L2) या (L = L1 +L2+2M ) के बराबर होगा। M दोनों इंडक्टर का म्यूच्यूअल इन्दुक्टांस है। जब दोनों Inductor एक कोर पर लपेटे गए हो तब M का उपयोग किया जायेगा .

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