ऊष्मागतिकी के सिद्धान्त क्या है?
जब हम बल आरोपित कर किसी वस्तु को एक स्थान से दुसरे स्थान तक विस्थापित करते है ,तब वस्तु का वह सतह जो धरती के संपर्क में रहता है गर्म हो जाता है। वस्तु के सतह गर्म होने से हमारा मतलब हुआ की उसका तापमान बढ़ जाता है और तापमान में वृद्धि ऊष्मा की वजह से होती है। वस्तु पर बल आरोपित कर उसको विस्थापित करने में यांत्रिक कार्य करना पड़ता है और यह कार्य में परिवर्तित होकर उसके सतह तापमान को बढ़ा देता है। इससे यह साबित होता है की उर्जा तथा यांत्रिक कार्य के बीच संबंध होता है। उर्जा तथा कार्य के बीच संबंध को आसानी से समझने के लिए कुछ नियम बनाए गए है जिसे उष्मागतिकी के सिध्दांत कहते है। ऊष्मा गति के ये तीन नियम निम्न है :-
- उष्मा गतिकी का प्रथम नियम (First law of thermodynamics)
- ऊष्मा गतिकी का द्वितीय नियम (Second law of thermodynamics)
- ऊष्मागतिकी का शुन्यकोटि नियम (Zeroth law of thermodynamics)
ऊष्मागतिकी का शुन्यकोटि नियम क्या है?
इस नियम के अनुसार यदि दो वस्तुए(A तथा B ) एक दुसरे के साथ ऊष्मीय संतुलन(thermal equilibrium) अवस्था में है और कोई एक तीसरी वस्तु C ,B के साथ उष्मीय संतुलन में है तब वस्तु A भी वस्तु C के साथ उष्मीय संतुलन में होगा। ऊष्मा गति के दूसरे नियम के अनुसार किसी निम्न तापमान वाली `वस्तु से उच्च तापमान वाली वस्तु में उष्मा का प्रवाह स्वतः नहीं हो सकता है। इस नियम को दो कथन से समझा जा सकता है जो निम्न है :'-
उष्मा गतिकी का प्रथम नियम क्या है?
ऊष्मा गति का प्रथम नियम किसी निकाय से संबंधित आंतरिक उर्जा ,कार्य तथा निकाय को बाहर से दी जाने वाली उष्मीय उर्जा के बीच संबंध स्थापित करता है। यह उर्जा संरक्षण सिध्दांत का विस्तृत रूप है। इस नियम के अनुसार किसी निकाय को बाहर से ऊष्मा के रूप में दी जाने वाली उर्जा की कुछ मात्रा निकाय की आंतरिक उर्जा को परिवर्तित करने में खर्च होता है तथा शेष बची हुई उर्जा की मात्रा निकाय द्वारा कार्य करने में खर्च हो जाती है।
यदि निकाय को बाहर से दी जाने वाली ऊष्मा = Q
निकाय द्वारा किया गया कार्य = W
निकाय के आंतरिक उर्जा में परिवर्तन = △E
तब ऊष्मा गति के प्रथम नियम को गणितीय रूप में निम्न तरीके से व्यक्त किया जा सकता है।
दी जाने वाली ऊष्मा = आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन + निकाय द्वारा किया गया कार्य
ऊष्मा गति के प्रथम नियम की सीमाएं
- प्रथम ऊष्मा गति नियम से ऊष्मा प्रवाह के दिशा का ज्ञान नहीं होता है।
- इस नियम से यह ज्ञात नहीं होता है की कोई प्रक्रिया स्पोंटेनीयस है या नहीं।
- प्रथम नियंम से यह ज्ञात नहीं होता है की वास्तविक जीवन में कौन सा प्रोसेस होगा और कौन सा प्रोसेस नहीं होगा
- प्रथम नियम के अनुसार निकाय को दी जाने वाली कुल ऊष्मा कार्य में परिवर्तित हो सकती है।
उष्मा गतिकी का द्वितीय नियम क्या है?
- केल्विन प्लांक का कथन
- क्लासियस का कथन
केल्विन प्लांक कथन क्या है?
यह नियम ऊष्मा इंजन(Heat Engine)के कार्य सिध्दांत की व्याख्या करता है। इसके अनुसार श्रोत से प्राप्त की गई उष्मा का कुछ भाग इंजन द्वारा कार्य में परिवर्तित कर दिया जाता है और शेष उष्मा शीतलक में चली जाती है। ऐसा कभी कोई इंजन नहीं बनाया जा सकता है जो श्रोत से प्राप्त उष्मा को पूर्ण रूप से कार्य में परिवर्तित कर सके। अर्थात 100 प्रतिशत दक्षता वाली उष्मा इंजन का निर्माण असंभव है।
क्लासियस का कथन क्या है?
यह कथन रेफ्रीजिरेटर के कार्य सिध्दांत की व्याख्या करता है। इसके अनुसार किसी ठंडी वस्तु से गर्म वस्तु के तरफ उष्मा प्रवाहित करने के लिए बाहर से कुछ कार्य करना पड़ता है। ठंडी वस्तु पर बिना कार्य किये ऊष्मा का प्रवाह असंभव है।
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