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Concept of charge In Hindi : विधुत आवेश तथा विधुत की अवधारणा

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ईशा से लगभग 610 वर्ष पूर्व यूनान के दार्शनिक थेल्स ने देखा की जब उन से एम्बर नाम के पदार्थ को रगड़ते है तब एम्बर में छोटी छोटी वस्तुओ को अपने तरफ आकर्षित करने का गुण उत्पन हो जाता है। इसके बाद इंग्लैंड के डॉ बिलियम गिल्बर्ट ने प्रयोग द्वारा पाया की केवल अम्बर ही नहीं अपितु बहुत ऐसे पदार्थ है है जो उन से रगड़े जाने के बाद छोटी छोटी वसुओं को अपनी तरफ आकर्षित करते है।

वस्तुओ को अपनी तरफ आकर्षित करने के इस गुण को सन 1646 में थॉमस ब्राउन ने इलेक्ट्रिसिटी (electricity) यानि विधुत  का नाम दिया। चुकी वस्तुओ में दूसरे छोटी छोटी वसुओं को आकर्षित करने का गुण घर्षण के बाद आता है इसलिए इस तरह के electricityको घर्षण विधुत(frictional electricity) कहते है। जिस वस्तु में इस तरह के गुण आ जाता है उसको electrified या आवेशित कहते है। वस्तुओ के  मतलब उस वस्तु ने आवेश ग्रहण कर लिया है। 

Concept of Positive and Negative Charge या धन तथा ऋण आवेश कि अवधरणा 

किसी वस्तु को आपस में रगड़ने पर उसमे दूसरे वस्तुओ को अपनी तरफ आकर्षित करने का गुण आ जाता है। 
जैसे कांच के छड़ को रेशम से रगड़ने पर वह आवेशित हो जाती है। इसी प्रकार एबोनाइट की छड़ को बिल्ली के खाल(skin of cat ) से रगड़ा जाता है तो यह भी आवेशित हो जाता है लेकिन इन दोनों वस्तुओ के आवेश एक दूसरे से भिन्न होते है।

 रेशम से रगड़ने से आवेशित हुई दो छडे एक दूसरे को प्रतिकर्षित करती है। उसी प्रकार कांच के छड़ को रेशम से रगड़ने से आवेशित हुई दो छडे एक दूसरे को प्रतिकर्षित करती है। लेकिन जब एबोनाइट तथा कांच के छड़ दोनों को एक दूसरे के पास लाते है तब ये दोनों एक दूसरे को आकर्षित करते है।

इससे यह साबित होता है आवेश दो तरह के होते है। सन 1750 में अमेरिकी वैज्ञानिक बेन्जामिन फ्रैंकलिन ने कांच के छड़ में उत्पन आवेश को धन आवेश (positive charge) था एबोनाइट के छड़ में उत्पन आवेश को ऋण आवेश (Negative charge) का नाम  दिया।

इसके अलावा बेंजामिन ने बताया की यदि कोई भी आवेशित वस्तु कांच की छड़ से प्रतिकर्षित होता है तो उसे धन आवेशित माना जायेगा तथा आकर्षित होने पर उसे ऋण आवेशित माना  जायेगा। इस तरह से बेंजामिन ने आवेश को दो तरह से विभाजित कर दिया
  • धन आवेश (Positive Charge )
  • ऋण आवेश (Negative Charge ) 
ऊपर दिए गए प्रयोग के आधार पर बेंजामिन ने आवेश से सम्बंधित दो नियम भी बनाये जो आज भी फिजिक्स में मान्य है जो इस तरह है:-

(1) दो सजातीय आवेश (identical charge ) एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है।
(2)दो विजातीय आवेश (unlike charge) एक दूसरे को आकर्षित करते है।

विधुत का आधुनिक इलेक्ट्रान सिंद्धांत (modern electron theory of electricity)

charge

विधुत के आधुनिक इलेक्ट्रान सिद्धांत के अनुसार दुनिया के सभी पदार्थ छोटे छोटे कणो से मिलकर बना हुआ है जिसे परमाणु (atom) कहते है। परमाणु का केंद्रीय भाग नाभिक (Nucleus) कहलाता है। परमाणु का नाभिक प्रोटोन तथा न्यूट्रॉन से बना हुआ है।

प्रोटोन एक धन आवेशित तथा न्यूट्रॉन अनावेशित कण होता है। नाभिक में प्रोटोन के उपस्थिति के कारण नाभिक धनावेशित होता है। नाभिक के चारो तरफ निश्चित कक्षा में इलेक्ट्रान चक्कर लगाते है। इलेक्ट्रान ऋण आवेशित कण होते है।

इलेक्ट्रान पर ऋण आवेश की मात्रा ठीक उतनी ही होती है जितनी प्रोटोन पर धन आवेश की मात्रा होती है। सामान्य अवस्था में परमाणु उदासीन (neutral) होता है इसका कारण परमाणु में ऋणावेशित  इलेक्ट्रान तथा धनावेशित प्रोटोन की संख्या सामान होती है। इलेक्ट्रान नाभिक  के बाहरी कक्षा में एक कमजोर बल से  नाभिक से बंधे रहते है ,जबकि न्यूट्रॉन तथा प्रोटोन एक दूसरे के साथ मजबूती के साथ बंधे रहते है।

जब किसी परमाणु के अंदर के इलेक्ट्रोनो तथा प्रोटॉनों की संख्या बराबर नहीं होती है तब वह परमाणु एक आवेश की तरह व्यवहार करने लगता है। जब परमाणु के अंदर से एक या एक से ज्यादा इलेक्ट्रान को किसी विधि द्वारा निकाल दिया जाता है तब उस परमाणु के अंदर इलेक्ट्रान का प्रभाव कम हो जाता है और वह परमाणु एक धन आवेश के तरह व्यवहार करने लगता है।

 इसके विपरीत अगर किसी परमाणु के अंदर एक या एक से ज्यादा इलेक्ट्रान को किसी विधि द्वारा डाल दिया जाये तब उस परमाणु के अंदर प्रोटोन का प्रभाव इलेक्ट्रान की तुलना में थोड़ा कम हो जाता है और वह परमाणु एक ऋण आवेश की तरह व्यवहार  करने लगता है। इससे यह साबित हो जाता है की इलेक्ट्रान की कमी से कोई वस्तु धन आवेशित तथा  इलेक्ट्रान के अधिकता से ऋण आवेशित हो जाता है।

जब दो वस्तु को आपस में रगड़ते है तो घर्षण के कारन उष्मीय ऊर्जा उत्पन होती है इस ऊर्जा को अवशोषित कर इलेक्ट्रान एक वस्तु से निकलकर दूसरे वस्तु में चले जाते है। जो वस्तु इलेक्ट्रान को खोती है वह वस्तु धन आवेशित  तथा जो वस्तु इलेक्ट्रान को प्राप्र्त करती है वह ऋण आवेशित हो जाती है। घर्षण के कारण उत्पन इलेक्ट्रान किस वस्तु से निकलकर किस वस्तु में जायेंगे यह वस्तु के बंधन ऊर्जा पर निर्भर करता  है।

आवेश का संरक्षण सिंद्धांत (Conservation of Charge )

आवेश का संरक्षण सिंद्धांत ऊर्जा के संरक्षण सिंद्धांत के जैसा है। आवेश संरक्षण सिंद्धांत के अनुसार 'आवेश न तो उत्पन किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। किसी भी आइसोलेटेड (विलगित )सिस्टम में आवेशो का कुल योग नियत रहता है। 

आवेश का क्वाण्टमीकरण और मूल आवेश की अवधारणा (Concept of fundamental charge and Quantisation of Charge )

आवेश के न्यूनतम मात्रा को मूल आवेश कहते है। प्रकृति में न्यूनतम आवेश की मात्रा इलेक्ट्रान के आवेश को माना जाता है। प्रोटोन पर इलेक्ट्रान के आवेश के मात्रा के बराबर और विपरीत मात्रा का आवेश होता है। आवेश के इस न्यूनतम मात्रा को अंग्रेजी के e से दर्शाया जाता है।

इससे काम मात्रा वाला आवेश कण अभी तक ज्ञात नहीं है। किसी भी आवेशित कण में आवेश की मात्रा हमेशा e के गुणज(multiple) के रूप में ही मिलती है। किसी भी आवेशित कण में आवेश की मात्रा e के भिन्नात्मक गुणज के रूप में कभी भी नहीं मिल सकती है।

 इससे साबित होता है की आवेश को अनिश्चित रूप से विभाजित नहीं किया जा सकता है। आवेश के इसी गुण को आवेश का क्वाण्टमीकरण कहते है। 
आवेश की सबसे छोटी इकाई e है जिसकी मात्रा =1.6 x 10^-19 कूलम्ब के बराबर होता है। 
यदि किसी वस्तु में आवेश की मात्रा Q है तो उस वस्तु में कुल आवेश को कुछ इस तरह से लिखा जा सकता है

Q = -+ne

जहा n एक पूर्ण संख्या है। 

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