Potential Transformer In Hindi : परिभाषा ,कंस्ट्रक्शन ,कार्य सिध्दांत तथा उपयोग -हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी - हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी -->

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Potential Transformer In Hindi : परिभाषा ,कंस्ट्रक्शन ,कार्य सिध्दांत तथा उपयोग -हिंदी इलेक्ट्रिकल डायरी

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 पोटेंशियल ट्रांसफार्मर क्या होता है?

यह एक प्रकार का इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर है अर्थात इसका उपयोग इलेक्ट्रिकल में औजार की तरह किया जाता है। इसका उपयोग हाई वोल्टेज को मापने के लिए किया जाता है। इसके मदद से हाई वोल्टेज को लो वोल्टेज में परिवर्तित कर दिया जाता है और इस लो वोल्टेज को किसी भी कम परिमाण वाले वोल्टमीटर से माप लिया जाता है। इसके अतिरिक्त पोटेंशियल ट्रांसफार्मर सुरक्षा के लिए भी उपयोग किये जाते है।  

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का कंस्ट्रक्शन कैसे किया जाता है?

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर के कोर निर्माण में उच्च किस्म के पदार्थ का उपयोग किया जाता है जिससे कोर को चुम्बकित (Magnetized) करने के लिए छोटे परिमाण के विधुत धारा का प्रवाह हो। हाई वोल्टेज को लो वोल्टेज में परिवर्तित करने क लिए कोर टाइप वाले पोटेंशियल ट्रांसफार्मर का निर्माण किया जाता है। वैसे शेल टाइप पोटेंशियल ट्रांसफार्मर भी निर्मित किये जाते है लेकिन इनकी संख्या कोर टाइप के तुलना में बहुत कम होता है। 

लीकेज Reactance को कम करने के लिए सह अक्षीय (Coaxial) रूप से coil को लगाया जाता है। इंसुलेशन कॉस्ट तथा डैमेज से बचाने के लिए हाई वोल्टेज वाले प्राइमरी वाइंडिंग को अनेक छोटे छोटे सेक्शन में बाट दिया जाता है। इंसुलेशन कॉस्ट को कम करने के लिए वार्निश तथा कॉटन टेपके मदद से कइल को एक दूसरे से अलग किया जाता है।  इसके अतिरिक्त फाइबर से बने हुए सेपरेटर का भी उपयोग किया जाता है। 7000 वोल्ट से ज्यादा वोल्टेज पर कार्य करने वाले ट्रांसफार्मर में दो कोइल के बीच में ट्रांसफार्मर आयल का उपयोग किया जाता है।

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर कैसे कार्य करता है ?

जिस हाई वोल्टेज परिपथ या ट्रांसमिशन लाइन का वोल्टेज मापना होता है उस ट्रांसमिशन लाइन के साथ समांतर क्रम में पोटेंशियल ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग को जोड़ा जाता है। प्राइमरी वाइंडिंग में प्रवाहित होने वाली विधुत धारा की वजह से चुंबकीय फ्लक्स उत्पन्न होता है जो सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक होकर ,सेकेंडरी वाइंडिंग में EMF उत्पन्न कर देता है। चूँकि सेकेंडरी वाइंडिंग में coil के कुल फेरो की संख्या ,प्राइमरी वाइंडिंग के तुलना में बहुत कम रहता है। इसलिए सेकेंडरी वाइंडिंग में उत्पन्न emf का परिमाण बहुत कम होता है। जिसे किसी भी वोल्टमीटर से मापा जा सकता है। 
Potential Transformer in hindi
माना की ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग में कुल फेरो की संख्या = N1
 ट्रांसफार्मर के सेकेंडरी वाइंडिंग में कुल फेरो की संख्या = N
 प्राइमरी वाइंडिंग वोल्टेज  = हाई वोल्टेज = V
सेकेंडरी  वाइंडिंग वोल्टेज  = V2

तब ट्रांसफार्मर के सेकेंडरी वाइंडिंग में उत्पन्न वोल्टेज को निम्न तरीके से व्यक्त किया जा सकता है 
V_2= (\frac{N_{2}}{N_{1}}) V_1
जैसे की हम जानते है की प्राइमरी वाइंडिंग में फेरो की संख्या सेकेंडरी वाइंडिंग के फेरो की संख्या से बहुत ज्यादा होती है इसलिए  ऊपर के सूत्र में मौजूद (N2/ N1) का आंकिक मान  एक से कम होगा जिससे (N1/N2)V का मान Vसे हमेशा कम होगा। अर्थात ट्रांसफार्मर के  सेकेंडरी वाइंडिंग में उत्पन्न हुआ वोल्टेज हमेशा प्राइमरी वाइंडिंग में आरोपित वोल्टेज से कम होगा जिसे किसी भी छोटे वोल्टमीटर से आसानी से मापा जा सकता है। 

उदहारण : एक पोटेंशियल ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग में कुल फेरो संख्या 2200 तथा सेकेंडरी वाइंडिंग में 100 है। 11000 वोल्टेज को मापने के लिए वोल्टमीटर की रेंज कितनी होनी चाहिए। 

दिया गया है :
 N= 2200 
N= 100 
V=11000 V 
माना की पोटेंशियल ट्रांसफार्मर के सेकेंडरी वाइंडिंग का वोल्टेज = V2
V_2= (\frac{N_{2}}{N_{1}}) V_1
V_2= (\frac{100}{2200})\times11000 =500 V
अतः 11000 वोल्टेज को 500 वोल्ट रेंज वाले वोल्टमीटर से मापा जा सकता है। 

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर उपयोग 

  • विधुत सुरक्षा प्रणाली में इसका उपयोग किया जाता है। 
  • रिले में इसका  उपयोग किया जाता है। 
  • फीडर के सुरक्षा में इसका उपयोग किया जाता है। 
  • जनरेटर को सिंक्रोनाइजेशन में इसका  उपयोग किया जाता है। 

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